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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  11.33II

।। अध्याय      11.33 II

॥ श्रीमद्‍भगवद्‍गीता ॥ 11.33

तस्मात्त्वमुक्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ्‍क्ष्व राज्यं समृद्धम्‌ ।

मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्‌  ॥

“tasmāt tvam uttiṣṭha yaśo labhasva,

jitvā śatrūn bhuńkṣva rājyaḿ samṛddham..।

mayaivaite nihatāḥ pūrvam eva,

nimitta-mātraḿ bhava savya-sācin”..।।

भावार्थ: 

हे सव्यसाची! इसलिये तू यश को प्राप्त करने के लिये युद्ध करने के लिये खडा़ हो और शत्रुओं को जीतकर सुख सम्पन्न राज्य का भोग कर, यह सभी पहले ही मेरे ही द्वारा मारे जा चुके हैं, तू तो युद्ध में केवल निमित्त बना रहेगा। (३३)

Meaning:

Therefore, you arise, obtain valour by conquering your enemies, and enjoy the prosperity of your kingdom. All these (warriors) have been previously killed by me, so you become just an instrument, O Savyasaachin.

Explanation:

Shree Krishna has revealed to Arjun his will that the Kauravas should perish and the kingdom of Hastinapur should be administered by the Pandavas in accordance with rules of dharma. He has already decided the annihilation of the unrighteous and the victory of the righteous as the outcome of the battle. His grand scheme for the welfare of the world cannot be averted by any means.

When we buy a ticket to any Bollywood blockbuster, we know that no matter what happens, the hero will save the heroine from the clutches of the villain. But even though the ending is no surprise to anyone, we still want to sit for over two hours in a movie theatre. Why is that? We enjoy the drama, the emotional ups and downs, the fight sequences, the songs and so on. We want the movie to entertain us. Just because we know the ending, we don’t stop watching movies.

Ishvara’s grand spectacle, his “leela”, works in similar ways. Shri Krishna had pre- planned the ending of the war and had orchestrated the events in such a manner that it would result in the destruction of the Kauravaas. Knowing this, Arjuna would have liked very much to flee the war. Addressing Arjuna as Savyasaachin, one who could use both his hands in archery, Shri Krishna encouraged him to fight with all his might, defeat his enemies and enjoy the result of his actions. This is because Arjuna, like all of us, had a role to play in Ishvara’s grand play of the universe, his “leela”.

He now informs Arjun that he wishes him to be the nimitta- mātram, or the instrument of his work. God does not need the help of a human for his work, but humans attain eternal welfare by working to fulfill God’s wish. Opportunities that come our way to accomplish something for the pleasure of the Lord are a very special blessing. It is by taking these opportunities that we attract his special grace and achieve our permanent position as the servant of God.

Here is the crux of karma yoga. If we fulfil our duties with a spirit of detachment, we align ourselves with Ishvara’s vision. We become a “nimitta” or an instrument of Ishvara. But if we assert our selfish desires and our will, we only entrap ourselves in the material world and set ourselves up for a painful existence. Furthermore, Shri Krishna, in his generosity, was more than happy to let Arjuna take credit for his work. In fact, he encouraged him to do so. And in the midst of all this, there is no favouritism. The Kauravaas were annihilated as a result of their actions, not because of Shri Krishna’s partiality towards the Pandavaas.

There is no free-will at all, it appears; therefore, is only one doer; who is the doer; Bhagavān alone is the doer of everything; Bhagavān determines everything; there is nothing in our hands at all. This will be the wrong conclusion which can come out of these two lines. And therefore, we have to spend some time to eliminate this false idea of fatalism and we have to reinstate the freewill. Human beings do have the freewill to handle things. As per shastra, every human has right on his karma, and the result of his work converted into fate. Hence, Fate is nothing but karma phalam choose by a person in his present or earlier life. Therefore, we are selected by our destiny based on our efforts, hardship, attitude and working, not merely on fate.

So now, who are the people who would be killed in the war? We shall see in the next shloka.

।। हिंदी समीक्षा ।।

यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को सीधे और स्पष्ट शब्दों में आश्वस्त करते हैं कि उस को उठ खड़े हो कर काल के आश्रय से सफलता और वैभव को प्राप्त करना चाहिए। अधर्मियों की शक्ति और सार्मथ्य कितनी ही अधिक क्यों न हो, लोक क्षयकारी महाकाल की शक्ति ने पहले ही उन्हें मार दिया है। अर्जुन को केवल आगे बढ़कर एक वीर पुरुष की भूमिका निभाते हुए विजय के मुकुट को प्राप्त कर लेना है।

जीव का सब से बड़ा अज्ञान यही है कि योगमाया से ग्रसित हो कर अपने आप को कर्ता एवम भोक्ता समझता है। जब की जो कुछ भी हो रहा है या होगा यह प्रकृति के नियत कार्य द्वारा निश्चित है। इसलिये किसी कार्य करने की प्रेरणा, अवसर और साधन और निमित्त बनने का अवसर प्रकृति ही मनुष्य के कर्तव्य धर्म के अनुसार तय करती है। महाकाल जिन का अंत करना होता है, उन की बुद्धि और क्षमता का हरण कर लेता है और जिसे नायक बनाना होता है, उसे वह क्षमता और बुद्धि भी प्रदान कर देता है। अतः परमात्मा कहते है कि हे सव्यसाचिन् ( जो दोनों हाथों से धनुष चला सके) ये मेरे द्वारा ये मारे ही हुए हैं। तुम केवल निमित्त बनो।

वस्तुतः प्रत्येक विचारशील पुरुष को इस तथ्य का स्पष्ट ज्ञान होता है कि जीवन में वह ईश्वर के हाथों में केवल एक निमित्त ही है। परन्तु, सामान्यत हम इस तथ्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं होते, क्योंकि हमारा गर्वभरा अभिमान इतनी सरलता से निवृत्त नहीं होता कि हमारा शुद्ध दिव्य स्वरूप अपनी सर्वशक्ति से हमारे द्वारा कार्य कर सके। जीवन के सभी कार्य क्षेत्रों में प्राप्त की गयी उपलब्धियों पर यदि हम विचार करें, तो हमें ज्ञात होगा कि प्रत्येक उपलब्धि में प्रकृति के योगदान की तुलना में हमारा योगदान अत्यन्त क्षुद्र और नगण्य है। अधिक से अधिक हम केवल उन वस्तुओं का संयोग या मिश्रण ही कर सकते हैं जो पहले से ही विद्यमान हैं और इस संयोग के फलस्वरूप उनमें पूर्व निहित गुणों को व्यक्त करा सकते हैं। फिर भी हमारा अभिमान यह होता है कि हमने उस फल को उत्पन्न किया है

रेडियो, वायुयान, इंजिन, जीवन संरक्षक औषधयां, संक्षेप में, यह सम्पूर्ण नवीन जगत् और प्रगति में इसकी उपलब्धियां ये सब ईश्वर की गोद में बैठे बच्चों के खेल के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं। ईश्वर ने ही हमारे लिए विद्युत्, लोहा, आकाश, वायु इत्यादि उपलब्ध कराये और हमें उसका उपयोग करने के लिए स्वीकृति और स्वतन्त्रता प्रदान की। इन मूलभूत वस्तुओं के बिना कोई भी उपलब्धि संभव नहीं हो सकती और उपलब्धि का अर्थ है, ईश्वर प्रदत्त वस्तुओं का बुद्धिमत्तापूर्वक समायोजन करना।

हम ने पहले भी पढ़ा है कि इस सृष्टि को परमात्मा ही प्रकृति द्वारा अपनी माया एवम त्रियामी सत-रज-तम गुणों से चलाता है। हर चर-अचर निमित्त मात्र है क्योंकि जो होना है वो तो तय है। यह संसार चल चित्र की भांति है। अतः प्रश्न यह भी है जब हर घटना पूर्व निश्चित है तो हम क्यों कर्म करे। अक्सर सिनेमा में हीरो की जीत सुनिश्चित होते हुए भी उसे एक्शन करते हुए देखना अच्छा लगता है। इसलिये परमात्मा ने कर्तव्य पालन करने को कहा क्योंकि कर्म करने से यश, सुख आदि का उपभोग कर सकते है। निष्काम हो कर प्रकृति के कार्य संचालन में सहयोगी हो सकते है। काल चक्र में अर्जुन ने वो देखा जो वो देखना चाहता था, किन्तु जो बच गए, वो भी समयांतर में काल के हाथों ग्रसित हुए ही है, काल किसे भी नही छोड़ता। मृत्यु लोक में मानव लीला करने वाले परमात्मा को भी देह त्यागनी पड़ी।

कर्म का अधिकार और कर्तव्य धर्म का पालन ही हमे वह कुछ करने के निमित्त बनाता है जिस से हम सृष्टि यज्ञ चक्र में निष्काम भाव से लोकसंग्रह हेतु अपना दायित्व का पालन कर सके।

शरणागति तथा ईश्वर का अखण्ड स्मरण करते हुए जगत् की सेवा करने के सिद्धांतों को ऐसी व्यर्थ की कल्पनाएं नहीं समझना चाहिए जो जगत् की भौतिक सत्यता से पलायन करने के लिए विधान की गयी हों। जगत् में कुशलतापूर्वक कार्य करके सफलता पाने के लिए मनुष्य़ को अपनी योग्यता और स्वभाव को ऊँचा उठाना आवश्यक है। अखण्ड ईश्वर स्मरण वह साधन है, जिसके द्वारा हम अपने मन को सदा अथक उत्साह और आनन्दपूर्ण प्रेरणा के भाव में रख सकते हैं। अहंकारी के लिए यह जगत् एक बोझ या समस्या बना होता है। जिस सीमा तक अहंकार स्वयं को किसी महान् और श्रेष्ठ आदर्श के प्रति समर्पित कर देता है,उसी सीमा में यह जगत् और उसकी उपलब्धियां प्राप्त करना सरल और निश्चित सफलता का खेल बन जाता है। इसके पूर्व भी गीता में अनेक स्थलों पर स्पष्टत सूचित किया गया है कि अहंकार के समर्पण से हममें स्थित महानतर क्षमताओं को व्यक्त किया जा सकता है। 

निष्काम कर्म योग में यह श्लोक अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बतलाता है कि करने वाला ईश्वर है, मनुष्य उस के हाथ की कठपुतली मात्र है। किंतु जब कर्ता ईश्वर है और समस्त क्रियाएं पहले से लिखी है तो वेदांत, धर्म और शास्त्र की उपयोगिता भी क्या है। कार के संचालन में यदि एक्सीडेंट हो जाए तो चलाने वाला दोषी है, कार को कोई दोष नहीं लगता। फिर कर्म फल का दोष जीव को क्यों लगेगा, जब वह मात्र कठपुतली है।

इसलिए भगवान अर्जुन को निमित्त बनने की बात कर रहे है। निमित्त होने के कर्म करना आवश्यक है। शास्त्र कहता है यदि सभी परमात्मा करता है तो यह दुनिया का संचालन अलग अलग क्यों होगा। क्यों कोई जीव राग द्वेष में कर्म करेगा और कोई सन्यासी हो कर। हमारा शास्त्र भाग्यवाद को स्वीकार नहीं करता। उस के अनुसार परमात्मा साक्षी, अकर्ता और नित्य है, जीव अपने कर्मो को भोगता है। यह नियतिवाद है, जो भाग्यवाद को स्वीकार नहीं करता।

भाग्यवाद ज्योतिषी द्वारा जन्म के समय से ले कर अभी तक की नक्षत्र गणना से होने वाली घटनाएं नही है। भाग्यवाद आप के पूर्व के और अभी के कर्मो के फलित होने की गणना है। अतः कार्य में करने की और नहीं करने की स्वतंत्रता जीव की है और क्योंकि उस में कार्य को नहीं करना या करना या निष्काम हो कर करना या राग – द्वेष में करना और उस के कर्म फलों को भोगना ही संसार और नियति।

भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को निमित्त बनने को कह रहे है। कार्य तो वही होना है जो तय है तो निमित्त होने के लिए चयन भाग्यवाद से नहीं हो कर उस कार्य को कर सकने की पात्रता से होता है और पात्रता तभी होगी जब उस के योग्य गुण होंगे। गुण अभ्यास और कर्म करने की इच्छा और क्षमता से मिलते है। इसलिए यद्यपि जो भी संसार में होना है, वह कालचक्र में निश्चित है किंतु कर्म के निर्णय की इच्छा जीव पर है। आप को किस मार्ग पर चलने से सफलता मिल सकती है, वह मार्ग जीव को स्वयं तय करना भी होता है और उस पर चलना भी होता है।

ध्यान रहे कि परमात्मा ने कर्म का अधिकार दिया है, फल का नहीं। किन्तु जब आप को समयानुसार प्रेरित किया जाता है तो आप अपने अधिकार का प्रयोग नहीं करते तो वह कार्य अन्य कोई भी कर लेगा। युद्ध मे जिन की मृत्यु निश्चित है वो सब मरेंगे, इसलिये भगवान अर्जुन को प्रेरित करते है तू निमित्त बन और यश एवम सुख का भोग कर।

।। हरि ॐ तत सत।। 11.33।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

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