।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 10.38 II Additional II
।। अध्याय 10.38 II विशेष II
।। मौन – एक रहस्य और आन्तरिक ऊर्जा ।। विशेष – गीता 10.38 ।।
मौन एक अदभुत शक्ती है| बहुत से लोग और मैं भी, यह मानता हुं की, मौन ही सारे विपदाओं का निवारण है। जब हम अपने मन को नियंत्रित कर पाते हैं। तभी मौन का सत्य अनुभव मिलता है|यदि आप बाहर से मौन दिखा रहे हो, पर अंतर्गत मन में विचारों से विचलित रहते है, तो आपको यह अनुभव प्राप्त नही होगा। अपने अंतरिम ज्ञान को जानने के लिए, मौन आध्यात्मिकता में पहला Step माना जाता है। मौन से हानी नहीं बल्की सिर्फ लाभ ही लाभ होते है।
एक बार भष्काली ने अपने गुरु से उपनिषदों में वर्णित ब्रह्म के बारे में प्रश्न किया कि ब्रह्म कहाँ है। प्रत्युत्तर में ब्रह्म का रहने का स्थान अनन्त शांति अर्थात “अयम आत्मा सन्तो” आत्मा शांत मौन ही ब्रह्म है। मौन ही सत्य है, मौन ही अमर आत्मा है, मौन ही ईश्वर है। मौन ही इस मन, प्राण और शरीर का आधार है। मौन ही इस ब्रह्मांड का क्षेत्र है, मौन ही जीवित शक्ति है, वह शक्ति जो सब ज्ञान से परे है। जीवन का उद्देश्य मौन है, किसी के अस्तित्व का ध्येय भी मौन है।
प्रगाढ़ निंद्रा में हम मौन के निकट तक पहुंच कर अविद्या से उस से अलग रहते है। कहते है जब सत-असत कुछ भी न था, तो वह परब्रह्म स्वयं में मौन ही था। इसलिये मौन चित है, मौन आनंद है, मौन पवित्र है, मौन सर्व व्यापक है, मौन अमेद्य हैं और जागृति है।
इस संसार में जो भी है वह सब कुछ एक ऊर्जा से ही उत्पन्न हुआ है। सभी बातों में किसी ना किसी शक्ती का ही उपयोग होता है। सर Isaac न्यूटन के नियम अनुसार , ऊर्जा को कभी भी निर्माण और नष्ट नही किया जा सकता, सिर्फ उसे एक रूप से दुसरे रुप में Convert कर सकते है। पर इस ऊर्जा का स्त्रोत क्या हैं? ऐसी कौन सी शक्ती हे जो हर क्षण में, हर स्थान मेें और हर एक घटक में उपलब्ध रहती है?
शक्ति
हिंदू धर्म मान्यता अनुसार मां देवी को ही सृष्टी की ऊर्जा का स्त्रोत कहा गया है और इसी गुणविशेष की वजह से उन्हे ‘शक्ती’ के नाम से भी जाना जाता है। देवी ही इस जगत के पूर्ण अस्तित्व को शक्ती प्रदान करती है और मनः शक्ती को उजागर करने में भी वही सहायता करती है।
मौन की वजह से हम हमारे स्त्रोत यानि शक्ती के संपर्क में आते है|इस शांती स्वरूप मौन से विश्राम मिलता है और पुनश्च नवचैतन्य प्राप्त करने की संधी प्राप्त होती है, पर यहा विश्रांती का अर्थ सिर्फ शारीरिक क्रिया कलाप से ही विश्राम नहीं, बल्की मानसिक स्तर पर भी विश्राम मिलता है|हमारे मन में पलती चंचलता की वजह से ही हमारे शक्ती का ऱ्हास होता है और इसी वजह से हम उस विश्राम के अनुभव से वंचित रहते है।
संपूर्ण विश्व, ऊर्जा से परिपूर्ण भरा हुआ है, ऐसी ऊर्जा जिसका उपयोग कर हम पुनश्च चैतन्यदायी हो सकते हैं। इस विशाल ऊर्जा स्त्रोत का लाभ लेने हेतु हमे केवल आंतरिक स्थूलता से मिलाप करना होता है, जब मन स्थिर हो जाता है, तब हम बाहरी ऊर्जा को ग्रहण कर, विस्तारित होते है। इस वजह से हमारी सजगता बढती है और मनः शांती का लाभ होता है, बेचैनी कम होती हैं और मन की कार्यक्षमता बढ जाती है और मौन के साथ वह अनुभव अधिक समृद्ध होता है।
Silence से हमारी वाणी शुद्ध हो जाती है|और उससे हमारे Skills भी अधिक विकसित होते हैं| मौन रखने से मन शांत होकर पूर्णतः अंतर्मुखी हो जाता है। परिणाम स्वरूप हम अपनी आंतरिक गहराई तक पहुंच पाते है। मौन यानि केवल बोलना बंद कर लेना नहीं होता| बल्की उससे कई अधिक विशाल अर्थ है मौन का।
मौन के प्रकार
प्रथम
जब हम किसी व्यक्ती से बात नहीं करते और मन हमारे आसपास के किसी भी वस्तु में रस नही लेता। तब वह अंतर्मुखी हो जाता है। पूर्णतः से एकरूप होता है। इस प्रकार के मौन में हम, न बताते हुए और किसी भी प्रकार की क्रिया न करके, ऊर्जा का संग्रह करते है।
दूसरा
दुसरे प्रकार में हम विकास स्वरूप आगे जाते है और सभी प्रकार के भौतिक सुख का उपभोग लेने से बचते है, जब जब हम भौतिक सुख के पीछे भागते है, तब हमारा मन चंचलता से कार्यरत होता है। इस लिये हमे मनःशांती हेतु भौतिक सुख से बचना चाहिए।
तीसरा
तिसरे प्रकार के मौन में हमे किसी चीज की आवश्यकता महसुस नही होती। हम पूर्णतः शांत होकर, अपने ही अंतर्ज्ञान में तृप्त हो जाते है। इस कारण हमारा मन एककेंद्री होकर वह अपने आत्मपरीक्षण हेतु स्थिर होता है।
इस के अतिरिक्त शब्द या बातचीत में हम अपने रहस्य ज्ञान आदि का परस्पर संवाद द्वारा विनिमय करते है। एक बार संवाद होने से उस विषय का अधिकार एकल न हो कर विस्तृत हो जाता। गोपनीय या महत्वपूर्ण सूचनाएं समय से पूर्व सम्वाद करने से नीतिगत फैसले लेने या उन के क्रियांवयन में कठनाई आदि है। अतः सही नीति, जानकारी को गुप्त रखते हुए सफलता हासिल करना, व्यर्थ के वाद-विवाद और मिथ्या और गलत बातों से विस्तार को रोकने के लिये मौन ही सर्वोत्तम माध्यम है।
मानसशास्त्र में Silence का विश्लेषण
हमारे विचारों की चंचलता को रोकने हेतु मौन एक ध्यानप्रक्रिया है। यही मन को शांती प्रदान करने वाला योग है। इससे ही हमारी खुदसे पहचान होती है। हमे जीने के लिये एक नई दिशा मिलती है। हर मनुष्य का उद्दिष्ट आनंद एवं शांती ही होती है। चिरस्थायी स्वरूप शांती, सत्ता, पैसा, भौतिक सुख यह बाते सबको मोहीत करती है। परंतु इसके परिणाम स्वरूप तकलिफे ही ज्यादा मिलती है । इन सबसे मनः शांती नही मिलती बल्कि बेचैनी बढ जाती है।
हर रोज मौन रखना और ध्यान करना यह दोनों ही आध्यात्मिक विकास हेतु सहायक है।
मानसशास्त्र के अनुसार, हर रोज मनुष्य ६० हजार बार विचार करता है। उनमे से ९० से ९८ प्रतिशत विचार रोजाना की बातों से जुडे हुए रहते है|वह हर एक विचार मेंदू में केमिकल रिलिज करता है।
मनुष्य के Brain में १०० अरब Neurones रहते हैं। हर एक न्युरॉन, शरीर में लगभग १००० संपर्क बनाता हैं। हर संपर्क प्रतिसेकंद २०० बार Effective रहता है। इसवजह से २० हजार करोड खरब Calculations प्रति सेकंड शुरू रहते है।
जीवन मे मौन के लाभ
यह पुरा सिस्टम जीवन की ऊर्जा से चलता है। इस कारण अगर हम विचारों को यदि कम करना सीख जाए तो वह जीवन हेतु अधिक लाभदायी रहेगा। कुछ मिनटों के मौन से ही शरीर की ऊर्जा में वृध्दी होने में मदद होती है। विचारों में कमी लाने से हमारी सकारात्मकता में सुधार होता है। उन विचारों को नियंत्रित करने के बाद, किसी भी लक्ष्य पर हम जल्दी ध्यान केंद्रित कर पाते है। इसलिये वह विचार ज्यादा शक्तीशाली हो जाता है।
हर विचार एक रचनात्मक शक्ती होती है। इसका मतलब अगर जीवन में कोई बदलाव चाहिए , तो स्वयं में किया हुुआ बदलाव ही महत्त्वपूर्ण होता है। केवल कुछ समय के मौन धारण करने से ही, हमारे मन की आवृत्ति में बदलाव दिखाई देते हैं| मौन में अधिक फ्रीक्वेंसी की तरंगे होने की वजह से यदि कुछ विचार बाहर आते भी है| तो उनसे जीवन में अच्छे ही परिणाम मिलते हैं|और इसी वजह से मौन में कुछ भी साध्य हो सकता है।
विभिन्न महापुरुषों के मौन के प्रति विचार
सर्वज्ञो के समाज में मूर्खों का मौन रहना शोभा देता है। — भर्तहरि
आओं हम मौन रहें ताकि फ़रिस्तों की कानाफूसियाँ सुन सकें । — एमर्शन
अज्ञान की सबसे बड़ी सम्पति है मौन और जब वह इस रहस्य को जान जाता हैं। तब अज्ञान नहीं रहता। — प्लेटो
विपत्ति में मौन रहना सबसे उत्तम हैं। — ड्राइडेन
अल्पभाषी मनुष्य सर्वोत्तम हैं। — शेक्सपियर
आपद् में मौन रहना अति श्रेयस्कर है। — ड्राइडेन
इसका खेद अनेक बार हुआ कि में बोल क्यों पड़ा। — पाइथोगोरस
उपाध्याय मौन का इससे अधिक हितकर रूप कुछ नहीं हो सकता कि वह झूठे आरोप और मानहानि का उत्तर बन जाय। — जॉसेफ एडिसन
कभी आंसू भी सम्पूर्ण वक्तव्य होते हैं ।-– ओविड
कभी-कभी मौन रह जाना, सबसे तीखी आलोचना होती है।
क्रोध को जीतने में मौन जितना सहायक होता है, उतनी और कोई भी वस्तु नहीं। — महात्मा गांधी
खामोश रहो या ऐसी बात कहो जो ख़ामोशी से बेहतर हो। — पाइथोगोरस
चींटी से अच्छा कोई उपदेश नहीं देता, और वह मौन रहती है। — फ्रैंकलिन
जहाँ नदी गहरी होती है, वहाँ जलप्रवाह अत्यंत शांत व गंभीर होता हैं। — शेक्सपियर
जहाँ विचारों का सम्मान न हो और सत्य अप्रिय लगे, वहाँ मौन साध लो। — फुलर
जितना दिखाते हो उससे ज्यादा तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए।
जैसे घोंसला सोती हुई चिड़ियों को आश्रय देता है वैसे ही मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है। — रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जो अपनी जिह्वा को वश में रखता है वह जीवन-भर नियन्त्रण रखता है; किन्तु जिसका जिह्वा पर वश नहीं, वह नाश को प्राप्त होता हैं। — बाइबिल
जो झुकना जानता है, दुनिया उसे उठाती है, जो केवल अकड़ना जानता है, दुनिया उसे उखाड़ फेंकती है।
जो सही जीवन जीता है और सही है, उसके मौन में दूसरे के शब्दों से अधिक शक्ति होती है। — फिलिप्स बुक्स
तिरस्कार दिखाने का सबसे अच्छा ढंग है, मौन। — बर्नार्ड शॉ
तुम्हे प्रत्येक का उपदेश सुनना चाहिए जबकि अपना उपदेश कुछ ही व्यक्तियों को दो।
तोड़ो मौन की चट्टान, फोड़ी अहं का व्यवधान; आकुल प्राण के रस-गान, भीतर ही न जाएँ मर। बोली, जोर से बोली, व्यथा की ग्रंथियाँ खोली, संजोलो मन कि फूटें, कण्ठ से फ़िर गीत के निझर। — भारतभूषण अग्रवाल
थोड़ा पढ़ना और अधिक सोचना, कम बोलना और अधिक सुनना, यही बुद्धिमान बनने का उपाय है।
धनुष से छूटा हुआ तीर ओर मुख से निकला हुआ शब्द कभी वापस नहीं लौटता।
नारी का मौन मनुष्य की वाणी के समान होता है। — बेन जॉन्सन
प्रत्येक स्थान और समय बोलने के योग्य नहीं होते, कभी-कभी मौन रह जाना बुरी बात नहीं।
बोलने में समझदारी से काम लेना, वाक्पटुता से अच्छा है। — बेकन
भरे बर्तन की अपेक्षा, खाली बर्तन ज्यादा शोर करते है। — जॉन ज्वेल
मुझे कभी इसका खेद नहीं हुआ कि मैं मौन क्यों रहा, परन्तु इसका खेद अनेक बार हुआ कि मैं बोल क्यों पड़ा। — साइरस
मुझे बोलने पर अक्सर खेद हुआ है; चुप रहने पर कभी नहीं। — साइरस
मौन , क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है। — स्वामी विवेकानन्द
मौन और एकांत आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। — लांगफेलो
मौन और दृढ़ विश्वास यहीं तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है। — ओल्ड टेस्टामेंट
मौन की भाषा सबसे प्रभावी भाषा हैं पर व्यक्ति इसका इस्तेमाल बहुत कम करता हैं। — अज्ञात
मौन के वृक्ष पर शान्ति के फल फलते हैं। — अरबी लोकोक्ति
मौन क्रोध का दमन करने में व्यक्ति की जितनी सहायता करता है, उतना अन्य कोई नहीं सहायता करता हैं। — महात्मा गांधी
मौन घृणा की उत्तम अभिव्यक्ति है। — जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
मौन ज्ञानियों की सभा में अज्ञानियों का अज्ञानियों का आभूषण है। — भर्नुहरि
मौन निद्रा के सदृश है। यह ज्ञान में नई स्फूर्ति पैदा करता है। — बेकन
मौन बातचीत की एक महान् कला है। — हैजलिट
मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है। — कार्लाइल
मौन रहकर मैं अन्य लोगों की कमियों को सुन लेता हूँ और अपनी कमियों को छिपा लेता हूँ। — आस्कर वाइल्ड
मौन शक्ति का उत्कृष्ट स्रोत है। — लाओत्ज़ु
मौनं सर्वार्थसाधनम् । (मौन सारे काम बना देता है) — पंचतन्त्र
मौन सर्वोत्तम भाषण है। अगर बोलना ही चाहिए, तो कम से कम बोलो, एक शब्द से काम चले, तो दो नहीं। — महात्मा गांधी
मौनं स्वीकार लक्षणम् । (किसी बात पर मौन रह जाना उसे स्वीकार कर लेने का लक्षण है।)
यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हें तुम्हारी वास्तविक योग्यता से अधिक योग्य व्यक्ति समझें तो कम बोलो। बुद्धिमानी की बात कहने की अपेक्षा बुद्धिमान प्रतीत होना अधिक आसान हैं। — ब्रुएरे
वाणी का वर्चस्व रजत है किन्तु मौन कंचन है। — रामधारीसिंह ‘दिनकर’
वाद-विवादे विष घना, बोले बहुत उपाध।
मौन गहे सबकी सहै, सुमिरै नाम अगाध । — कबीर
वार्तालाप बुद्धि को मूल्यवान बना देता है, किन्तु एकान्त प्रतिभा की पाठशाला है । — गिब्बन
वास्तविक महानता की उत्पत्ति स्वयं पर खामोश विजय से होती है।
हमारे पवित्र विचारों का मन्दिर मौन है। — श्रीमती हेल
।। हरि ॐ तत सत ।। विशेष 10.38 ।।
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