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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  10.26 II Additional – 4 II

।। अध्याय      10.26 II विशेष – 4 II

।। मुनि कपिल ।। विशेष 4 – 10.26 ।।

कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली मुनि थे। कपिल ऋषि, देव और मुनि सभी हुए, इसलिए कपिल देव अर्थात अवतार से ले कर सांख्य योग का प्रतिपादन करने वाले सिद्ध पुरुष कहे जाते है। इस विषय कुछ शंका भी है कपिल ऋषि जिन के पास इंद्र ने सगर के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बांध दिया था, या सांख्य योग के सिद्धांत बनाने वाले या अनेक सिद्धियों को धारण करने वाले ज्ञानी कपिल एक ही थे या अलग अलग।

इन्हें सांख्यशास्त्र (यानि तत्व पर आधारित ज्ञान) के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है जिस के मान्य अर्थों के अनुसार विश्व का उद्भव विकासवादी प्रक्रिया से हुआ है। कई लोग इन्हें अनीश्वरवादी मानते हैं लेकिन गीता में इन्हें श्रेष्ठ मुनि कहा गया है। कपिल ने सर्वप्रथम विकासवाद का प्रतिपादन किया और संसार को एक क्रम के रूप में देखा।

संसार को स्वाभाविक गति से उत्पन्न मानकर इन्होंने संसार के किसी अति प्राकृतिक कर्ता का निषेध किया। सुख दु:ख प्रकृति की देन है तथा पुरुष अज्ञान में बद्ध है। अज्ञान का नाश होने पर पुरुष और प्रकृति अपने-अपने स्थान पर स्थित हो जाते हैं। अज्ञानपाश के लिए ज्ञान की आवश्यकता है अत: कर्मकांड निरर्थक है। ज्ञानमार्ग का यह प्रवर्तन भारतीय संस्कृति को कपिल की देन है। यदि बुद्ध, महावीर जैसे नास्तिक दार्शनिक कपिल से प्रभावित हों तो आश्चर्य नहीं। आस्तिक दार्शनिकों में से वेदान्त, योग दर्शन और पौराणिक स्पष्ट रूप में सांख्य के त्रिगुणवाद और विकासवाद को अपनाते हैं। इस प्रकार कपिल प्रवर्तित सांख्य का प्रभाव प्राय: सभी दर्शनों पर पड़ा है।

कपिल ने क्या उपदेश दिया, इस पर विवाद और शोध होता रहा है। तत्वसमाससूत्र को उस के टीकाकार कपिल द्वारा रचित मानते हैं। सूत्र छोटे और सरल हैं।

इसीलिए मैक्समूलर ने उन्हें बहुत प्राचीन बतलाया। 8वीं शताब्दी के जैन ग्रंथ ‘भगवदज्जुकीयम्‌’ में सांख्य का उल्लेख करते हुए कहा गया है–

आठ प्रकृतियाँ, सोलह विकार, आत्मा, पाँच अवयव, तीन, गुण, मन, सृष्टि और प्रलय ये सांख्य शास्त्र के विषय हैं। ‘तत्वसमाससूत्र’ में भी ऐसा ही पाठ मिलता है। साथ ही तत्वसमाससूत्र के टीकाकार भावागणेश कहते हैं कि उन्होंने टीका लिखते समय पंचशिख लिखित टीका से सहायता ली है। रिचार्ड गार्वे के अनुसार पंचशिख का काल प्रथम शताब्दी का होना चाहिए। अत: भगवज्जुकीयम्‌ तथा भावागणेश की टीका को यदि प्रमाण मानें तो ‘तत्वसमाससूत्र’ का काल ईसा की पहली शताब्दी तक ले जाया जा सकता है। इसके पूर्व इसकी स्थिति के लिए सबल प्रमाण का अभाव है। 

सांख्य प्रवचन सूत्र को भी कुछ टीकाकार कपिल की कृति मानते हैं। कौमुदीप्रभा के कर्ता स्वप्नेश्वर ‘सांख्यप्रवचनसूत्र’ को पंचशिख की कृति मानते हैं और कहते हैं कि यह ग्रंथ कपिल द्वारा निर्मित इसलिए माना गया है कि कपिल सांख्य के प्रवर्तक हैं। यही बात ‘तत्वसमास’ के बारे में भी कही जा सकती है। परंतु सांख्य प्रवचन सूत्र का विवरण माधव के ‘सर्वदर्शनसंग्रह’ में नहीं है और न तो गुणरत्न में ही इसके आधार पर सांख्य का विवरण दिया है। अत: विद्वान्‌ लोग इसे 14वीं शताब्दी का ग्रंथ मानते हैं। लेकिन गीता (१०.२६) में इनका ज़िक्र आने से ये और प्राचीन लगते हैं।

इन के समय और जन्मस्थान के बारे में निश्चय नहीं किया जा सकता। पुराणों तथा महाभारत में इन का उल्लेख हुआ है।कहा जाता है, प्रत्येक कल्प के आदि में कपिल जन्म लेते हैं। जन्म के साथ ही सारी सिद्धियाँ इनको प्राप्त होती हैं। इसीलिए इन को आदि सिद्ध और आदि विद्वान्‌ कहा जाता है। इन का शिष्य कोई आसुरि नामक वंश में उत्पन्न वर्षसहस्रयाजी श्रोत्रिय ब्राह्मण बतलाया गया है। परम्परा के अनुसार उक्त आसुरि को निर्माणचित्त में अधिष्ठित होकर इन्होंने तत्वज्ञान का उपदेश दिया था। निर्माणचित्त का अर्थ होता है सिद्धि के द्वारा अपने चित्त को स्वेच्छा से निर्मित कर लेना। इससे मालूम होता है, कपिल ने आसुरि के सामने साक्षात्‌ उपस्थित होकर उपदेश नहीं दिया अपितु आसुरि के ज्ञान में इनके प्रतिपादित सिद्धान्तों का स्फुरण हुआ, अत: ये ‘आसुरि’ के गुरु कहलाए। महाभारत में ये सांख्य के वक्ता कहे गए हैं। इनको अग्नि का अवतार और ब्रह्मा का मानसपुत्र भी पुराणों में कहा गया है। श्रीमद्भगवत के अनुसार कपिल विष्णु के पंचम अवतार माने गए हैं। कर्दम और देवहूति से इनकी उत्पत्ति मानी गई है। बाद में इन्होंने अपनी माता देवहूति को सांख्यज्ञान का उपदेश दिया जिसका विशद वर्णन श्रीमद्भगवत के तीसरे स्कन्ध में मिलता है।

कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली मुनि थे। उन्हे प्राचीन ऋषि कहा गया है।  इन्हें सांख्यशास्त्र (यानि तत्व पर आधारित ज्ञान) के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है जिस के मान्य अर्थों के अनुसार विश्व का उद्भव विकासवादी प्रक्रिया से हुआ है। कई लोग इन्हें अनीश्वरवादी मानते हैं लेकिन गीता में इन्हें श्रेष्ठ मुनि कहा गया है। कपिल ने सर्वप्रथम विकासवाद का प्रतिपादन किया और संसार को एक क्रम के रूप में देखा।”कपिलस्मृति” उन का धर्मशास्त्र है। ये भगवान विष्णु के अवतार हैं।

संसार में सिद्ध पुरुष और सिद्ध के साथ ज्ञानी पुरुष एवम सिर्फ ज्ञानी पुरुष – यह तीन वर्गीकरण किए गए है। इस के अतिरिक्त कुछ न ज्ञानी और न ही सिद्ध होते है किंतु उन्हे इस का भ्रम रहता है। सिद्धियों सिद्ध पुरुष की दासी हो कर कार्य करती है जब की कुछ तंत्र मंत्र से यदि कोई किसी सिद्धि को प्राप्त भी कर ले तो भी वह सिद्ध नही कहलाता क्योंकि उस की सिद्धि अस्थायी और उपयोग के बाद समाप्त होने वाली होती है। इसलिए कपिल मुनि जैसे सिद्ध और ज्ञानी दोनों कुछ ही विरले लोग होते है।

।। हरि ॐ तत सत ।। गीता विशेष 4 – 10.26 ।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

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