Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wordpress-seo domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/fwjf0vesqpt4/public_html/blog/wp-includes/functions.php on line 6121
% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  10.26 II Additional – 3 II

।। अध्याय      10.26 II विशेष – 3 II

।। गंधर्व – चित्ररथ ।। विशेष 3 -10.26 ।।

गंधर्वों को देवताओं का साथी माना गया है। गंधर्व विवाह, गंधर्व वेद और गंधर्व संगीत के बारे में आप ने सुना ही होगा। एक राजा गंधर्वसेन भी हुए हैं जो विक्रमादित्य के पिता थे। गंधर्व नाम से देश में कई गांव हैं। गांधार और गंधर्वपुरी के बारे में भी आप ने सुना ही होगा। आओ जानते हैं कि ये गंधर्व कौन और गंधर्व साधना क्या है।

1. दरअसल, गंधर्व नाम की एक जाति प्राचीनकाल में हिमालय के उत्तर में रहा करती थी। उक्त जाति नृत्य और संगीत में पारंगत थी। वे सभी इंद्र की सभा में नृत्य और संगीत का काम करते थे। पौराणिक साहित्य में गंधर्वों का एक देवोपम जाति के रूप में उल्लेख हुआ है।

2. गन्धर्व नाम से एक अकेले देवता थे, जो स्वर्ग के रहस्यों तथा अन्य सत्यों का उद्घाटन किया करते रहते थे। वे देवताओं के लिए सोम रस प्रस्तुत करते थे। 

3. विष्णु पुराण के अनुसार वे ब्रह्मा के पुत्र थे और चूंकि वे मां वाग्देवी का पाठ करते हुए जन्मे थे, इसीलिए उनका नाम गंधर्व पड़ा। दरअसल, ऋषि कश्यप की पत्नी अरिष्ठा से गंधर्वों का जन्म हुआ। 

4. गंधर्वों का प्रधान चित्ररथ था और उनकी पत्नियां अप्सराएं हैं। 

5. अथर्ववेद में गंधर्वों की गणना देवजन, पृथग्देव और पितरों के साथ की गई है। अथर्ववेद में ही उनकी संख्या 6333 बतायी गई है।

6. दुर्योधन को गंधर्वों की सेना ने घेर लिया था तब पांडवों ने गंधर्वों के साथ युद्ध करके उसकी जान बताई थी।

7. बहुत से लोग गंधर्वों की पूजा और साधना करते हैं। गंधर्व साधना से ऋद्धि-सिद्धि और समृद्धि की प्राप्ति होती है। कलाकार लोग कहते हैं गंधर्व की साधना। जिन लोगों को सुंदर स्त्री की कामना रहती हैं वे भी करते हैं गंधर्व साधना। गंधर्व और अप्सराओं को प्राय: एक साथ ही स्मरण किया जाता है।

8. गंधर्व गायत्री मंत्र :

ॐ प्रतद्दोचेदमृतंनुविद्दान्गन्धर्वो धमबिभृतंगुहासत्।

त्रीणिपदानिनिहितागुहास्य यस्तानिवेदसपितु: पितासत्।

ॐ भूर्भुव: स्व: भोगंधर्वइहा० ॐ गंधर्वाय नम:।।

9. महाभारत के सभापर्व में वर्णन है कि कुछ गंधर्व इन्द्र की सभा में और कुछ गंधर्व कुबेर की सभा में उपस्थित होते हैं। चित्रसेन 27 गंधर्वों और अप्सराओं के साथ युधिष्ठिर की सभा में इसलिए आए थे कि वे अर्जुन के मित्र थे। अर्जुन ने इनसे संगीत सीखा था।

10. गन्धर्वों के दूसरे नाम ‘गातु’ और ‘पुलम’ भी हैं। महाभारत में गन्धर्व नाम की एक ऐसी जाति का भी उल्लेख हुआ है, जो पहाड़ों और जंगलों में रहती थी। ऋग्वेद में गंधर्व वायुकेश, सोमरक्षक, मधुर-भाषी, संगीतज्ञ और स्त्रियों के ऊपर अतिप्राकृत रूप से प्रभविष्णु बतलाए गए हैं।  शास्त्रों के अनुसार देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं। ये 11 अप्सराएं हैं-कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थी।

अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है। कुछ नाम और- अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, उमलोचा आदि।

पांडवों के साथ कुंती ने पांचाल देश की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में गंगा नदी के किनारे सोमाश्रयायण नामक तीर्थ पड़ता था। रात्रि की बेला में वे वहाँ जा निकले। उस समय गंगा में गंधर्वराज अंगारपर्ण चित्ररथ अपनी पत्नी के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उस एकांत में पांडवों की पदचाप सुनकर वह क्रुद्ध हो उठा। पांडवों में सबसे आगे हाथ में मशाल लिये अर्जुन थे।

चित्ररथ ने कहा कि रात्रि का समय गंधर्व, यक्ष तथा राक्षसों के विचरण के लिए निश्चित है, अत: उनका आगमन अनुचित था। उसने अर्जुन पर प्रहार किया।

अर्जुन ने उस पर आग्नेयास्त्र छोड़ दिया, जिससे वह मूर्च्छित हो गया। उसकी पत्नी कुंभीनसी ने युधिष्ठिर की शरण ग्रहण की।

पांडवों ने चित्ररथ को छोड़ दिया। चित्ररथ ने कृतज्ञता प्रदर्शन करते हुए उन्हें चाक्षुषी विद्या सिखायी। इस विद्या के प्रभाव से, जिसे जिस रूप में देखने की इच्छा हो, देखा जा सकता है।

चित्ररथ ने प्रत्येक पांडव को गंधर्वलोक के सौ-सौ घोड़े प्रदान किये, जो स्वेच्छा से आकार-प्रकार तथा रंग बदलने में समर्थ थे। वे घोड़े कभी भी स्मरण करने पर उपस्थित हो सकते थे।

अर्जुन ने चित्ररथ को दिव्यास्त्र (आग्नेयास्त्र) की विद्या प्रदान की। चित्ररथ का रथ उस युद्ध में खंडित हो गया था, अत: उसने अपना नाम चित्ररथ के स्थान पर दग्धरथ रख लिया।

भगवान श्री कृष्ण ने चित्ररथ को अपनी विभूति कहा है।

।। हरि ॐ तत सत ।। गीता विशेष 3- 10.26 ।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

Leave a Reply