।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 10.26 II
।। अध्याय 10.26 II
॥ श्रीमद्भगवद्गीता ॥ 10.26॥
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः॥
“aśvatthaḥ sarva- vṛkṣāṇāḿ,
devarṣīṇāḿ ca nāradaḥ..।
gandharvāṇāḿ citrarathaḥ,
siddhānāḿ kapilo muniḥ”..।।
भावार्थ:
मैं सभी वृक्षों में पीपल हूँ, मैं सभी देवर्षियों में नारद हूँ, मै सभी गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और मै ही सभी सिद्ध पुरूषों में कपिल मुनि हूँ। (२६)
Meaning:
Among the trees I am Ashvattha, among the divine sages I am Naarada. Among the Gandharvas I am Chitraratha and among the Siddhas I am sage Kapila.
Explanation:
Elaborating upon Ishvara’s expressions, Shri Krishna says that the Aswattha tree is Ishvara’s expression, as it is the foremost among trees. The Peepul tree, as it is more commonly known, is used to symbolically describe the human condition in the 15th chapter of the Gita. However, chapter 15 reflected on Aswattha tree represent Sansara Tree. In India, women traditionally worship this tree for obtaining a good husband. In general, trees are given the status of saints in India. Like saints, trees always give back more to the world than they take.
The peepal tree (sacred fig tree) has a very soothing effect on people who sit under it. Since it expands by sending down aerial roots, it is huge and provides cooling shade in a large area. The Buddha meditated and attained enlightenment under a peepal tree (sacred fig tree).
We had already encountered Sage Naarada earlier in this chapter in 10.13. The celestial sage Narad is the Guru of many great personalities such as Ved Vyas, Valmiki, Dhruv, and Prahlad. He is always engaged in singing the glories of God and doing divine works throughout the three worlds. He is also famous for deliberately creating quarrels and problems, and people sometimes misunderstand him to be a mischief-maker. However, it is his desire to purify famous personalities that makes him create quarrels around them, which ultimately result in self-introspection and purification.
Shri Krishna references Gandharvas next. Gandharvas are celestial beings who are accomplished singers, musicians and dancers. Among these, he considers Chitraratha foremost, and a manifestation of Ishvara. The word Chitraratha means one who has a wonderful chariot. In the Mahabhaarata, Chitraratha taught the fine arts to Arjuna, and advised the Paandavas to appoint a sage to guide them.
We now come to the notion of “siddhis”. A siddhi is a superhuman power. Most people are drawn to sages who demonstrate superhuman powers. But just because someone has superhuman powers does not necessarily mean that he has achieved liberation. Sage Kapila was one of those rare individuals who not only had superhuman powers but also had achieved liberation. He is credited as the originator of the Saankhya school of philosophy. he also delivered a sermon to his mother which is known as the Kapila Gita.
।। हिंदी समीक्षा ।।
वृक्षो में अनेक नाम जिस में स्वर्ग के पारिजात एवम धरती में चंदन भी है किंतु गुणों के आधार पर परमात्मा ने पीपल को अपना स्वरूप बताया। पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तो में भगवान हरि एवम फल में देवता सदा निवास करते है। वैद्यक दृष्टिकोण से भी इस जड़, छाल, पत्ते, फल सभी रोग नाशक है। इस पर जल चढ़ाना देवताओ से ले कर पितरों तक अर्पण है। इस कि लकड़ी हवन में काम आती है एवम यही वृक्ष रात में भी आक्सीजन ही देता है एवम कार्बन सोखता है। इस लिये यह अश्वस्थ वृक्ष मैं ही हूँ।
अश्व का एक अर्थ कल तक जो रहेगा, ऐसा नही कहा जा सकता भी है। इस कि जड़े ऊपर एवम शाखाएं नीचे है, जिसे परमात्मा एवम प्रकृति से जोड़ा गया है।
मैं देवर्षियों में नारद हूँ देवर्षि नारद हमारी पौराणिक कथाओं के एक प्रिय पात्र हैं। नारद का वर्णन हरिभक्त के रूप में किया गया है। वे न केवल देवर्षियों में महान् हैं, वरन् वे प्राय इस पृथ्वीलोक पर अवतरित होकर लोगों के मन में गर्व अभिमान दूर करने के लिए जानबूझकर उनकी आपस में कलह करवाते हैं और अन्त में सबको भक्ति का मार्ग दर्शाकर स्वर्ग सुख की प्राप्ति कराते हैं। सम्भवत, श्रीकृष्ण स्वयं धर्मोद्धारक और धर्मप्रचारक होने के नाते नारद जी के प्रति उनके प्रचार के उत्साह के कारण आदर भाव रखते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार अनेक अधर्मियों को धर्म मार्ग में परिवर्तित कर नारद जी ने उन्हें मोक्ष दिलाया है। नारद जी को दक्ष प्रजापति का शाप था कि वे किसी एक जगह स्थिर नही रह सकते, इसलिये वे विचरण करते रहते है। यह ब्रह्मा जी मानस पुत्र, ज्ञानी एवम निपुण मंन्त्र दृष्टा है। महाभारत के सभापर्व के पांचवे अध्याय में इन्हें वेद और उपनिषद के मर्मज्ञ, देवगणों से पूजित, इतिहास पुराणों का विशेषज्ञ, अतीत कल्पो की बातों को जानने वाला, नीतिज्ञ, मेधावी, स्मरणशील, ज्ञानी, कवि, संगीत विशारद, भगवान का भक्त, विद्या एवम गुणों का भंडार, सदाचार का आधार, सब के हितकारी आदि गुणों से सम्पन्न बतलाया गया है। दुर्भाग्य वश फिल्मों एवम कथा कारो ने नारद की सही छवि कभी प्रस्तुत नहीं की और इन को विदूषक, दो को भिड़ाने वाला जैसा ही बताया। नारद जी के विषय में हम 10.13 में भी पढ़ चुके है।
गंधर्व एक देवयोनि विशेष है जो देव लोक में गान, वाद्य एवम नाट्य अभिनय करते है। गंधर्व में जो मनुष्य पुण्य कर्मों से गंधर्व बनते है उन्हें मर्त्य कहते है एवम जो कल्प के प्रारम्भ से गंधर्व है उन्हें दिव्य कहते है। महृषि कश्यप की दो पत्नियों मोयने एवम प्राधेय की उत्पन्न संताने ही गंधर्व कहलाई। इस मे 16 मोयने एवम 14 प्राधेय हुए। गान, संगीत एवम नाट्य में सब से निपुण चित्ररथ गंधर्व में ही हूँ। चित्ररथ प्राधेय गंधर्व एवम दिव्य संगीत एवम वाद्य के निपुण संचालक है।
मैं सिद्धों में कपिल मुनि हूँ ये सिद्ध पुरुष जादूगर नहीं हैं। इस संस्कृत शब्द का अर्थ है जिस पुरुष ने अपने लक्ष्य (साध्य) को सिद्ध (प्राप्त) कर लिया है। अत आत्मानुभवी पुरुष ही सिद्ध कहलाता है।सिद्ध दो तरहके होते हैं — एक तो साधन करके सिद्ध बनते हैं और दूसरे जन्मजात सिद्ध होते हैं। कपिलजी जन्मजात सिद्ध हैं और इनको आदिसिद्ध कहा जाता है। ये कर्दमजी के यहाँ देवहूति के गर्भ से प्रकट हुए थे। ये सांख्य के आचार्य और सम्पूर्ण सिद्धों के गणाधीश हैं। ऐसे सिद्ध पुरुषों में भगवान् कहते हैं कि, मैं कपिल मुनि हूँ। मुनि शब्द से उस पारम्परिक धारणा को बनाने की आवश्यकता नहीं है, जिस में मुनि को एक बृद्ध, पक्व केश वाले, प्राय निर्वस्त्र और साधारणत अगम्य स्थानों में विचरण करने वाले पुरुष के रूप में अज्ञानी चित्रकारों के द्वारा चित्रित किया जाता है। उस के विषय में ऐसी धारणा प्रचलित हो गई है कि वह एक सामान्य नागरिक के समान न होकर जंगलों का कोई विचित्र प्राणी है, जो विचित्र् आहार पर जीता है। वस्तुत मुनि का अर्थ है मननशील अर्थात् तत्त्वचिन्तक पुरुष। वह शास्त्रीय कथनों के गूढ़ अभिप्रायों पर सूक्ष्म, गम्भीर मनन करता है। ऐसे विचारकों में मैं कपिल मुनि हूँ। आज के युग मे अनुसंधान में जुटे वैज्ञानिक भी मुनि ही है। सांख्य दर्शन के प्रणेता के रूप में कपिल मुनि सुविख्यात हैं, जिनका संकेत यहाँ किया गया है। अनेक सिद्धांतों पर गीता का सांख्य दर्शन के साथ मतैक्य है। अत भगवान् यहाँ कपिल मुनि को अपनी विभूति की सम्मानित प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं।
इस श्लोक में सर्वगुण सम्पन्न, एकाग्र चित्त, अपने कार्यो में दक्ष, ज्ञानी, वैज्ञानिक एवम अनुसधान में लगे महान कर्म करने वाले एवम जन हित कारी लगभग सभी क्षेत्र विशेष के विभूतियो को परमात्मा ने अपना स्वरूप बताया है। परमात्मा कभी कभी स्वयं प्रकट नही होता किन्तु अपनी उपस्थिति वो इन विभूतियो के द्वारा भी प्रकट करता है। श्रेष्ठता एवम नम्रता ही परमात्मा का स्वरूप है।
।। हरि ॐ तत सत।। 10.26।।
Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)