।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 10.24 II Additional – 2 II
।। अध्याय 10.24 II विशेष – 2 II
।। कार्तिकेय ।। गीता विशेष 2 – 10. 24 ।।
कार्तिकेय या मुरुगन एक लोकप्रिय हिन्दु देव हैं और इनके अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इन की पूजा मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में की जाती है इस के अतिरिक्त विश्व में जहाँ कहीं भी तमिल निवासी/प्रवासी रहते हैं जैसे कि श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर आदि में भी यह पूजे जाते हैं। इन के छ: सब से प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडु में स्थित हैं। तमिल इन्हें तमिल कडवुल यानि कि तमिलों के देवता कह कर संबोधित करते हैं। यह भारत के तमिल नाडु राज्य के रक्षक देव भी हैं। ये भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे बड़े पुत्र हैं । इन के छोटे भाई बहन हैं देवी अशोकसुन्दरी , भगवान अय्यपा , देवी ज्योति , देवी मनसा और भगवान गणेश हैं। इन की दो पत्नियां हैं जिन के नाम हैं देवसेना और वल्ली । देवसेना देवराज इंद्र की पुत्री हैं जिन्हें छठी माता के नाम से भी जाना जाता है। वल्ली एक आदिवासी राजा की पुत्री हैं । ऋषि जरत्कारू और राजा नहुष के बहनोई हैं और जरत्कारू और इन की छोटी बहन मनसा देवी के पुत्र महर्षि आस्तिक के मामा ।
षण्मुख, द्विभुज, शक्तिघर, मयूरासीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित हैं ये ब्रह्मपुत्री देवसेना-षष्टी देवी के पति होने के कारण सन्तान प्राप्ति की कामना से तो पूजे ही जाते हैं, इन को नैष्ठिक रूप से आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय भी है। संसार का चक्र लगाने की प्रतियोगिता में माता-पिता का चक्र लगा कर लड्डू गणेश जी द्वारा खा लेने से नाराज हो कर ये वहां से निकल कर दक्षिण भारत मे बस गए।
तारकासुर के अत्याचार से पीड़ित देवताओं पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने पार्वती जी का पाणिग्रहण किया। भगवान शंकर भोले बाबा ठहरे। उमा के प्रेम में वे एकान्तनिष्ठ हो गये। अग्निदेव सुरकार्य का स्मरण कराने वहाँ उज्ज्वल कपोत वेश से पहुँचे। उन अमोघ वीर्य का रेतस धारण कौन करे? भूमि, अग्नि, गंगादेवी सब क्रमश: उसे धारण करने में असमर्थ रहीं। अन्त में शरवण (कास-वन) में वह निक्षिप्त होकर तेजोमय बालक बना। भगवान कार्तिकेय छ: बालकों के रूप में जन्मे थे तथा इन की देखभाल कृतिका (सप्त ऋषि की पत्निया) ने की थी, इसीलिए उन्हें कार्तिकेय धातृ भी कहते हैं। कृत्तिकाओं ने उसे अपना पुत्र बनाना चाहा। बालक ने छ: मुख धारण कर छहों कृत्तिकाओं का स्तनपान किया। उसी से षण्मुख कार्तिकेय हुआ वह शम्भुपुत्र। देवताओं ने अपना सेनापतित्व उन्हें प्रदान किया। तारकासुर उनके हाथों मारा गया।
स्कन्द पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय (स्कन्द) ही हैं। समस्त भारतीय तीर्थों का उस में माहात्म्य आ गया है। पुराणों में यह सबसे विशाल है।
स्वामी कार्तिकेय सेनाधिपति हैं। सैन्यशक्ति की प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन इनकी कृपा से सम्पन्न होता है। ये इस शक्ति के अधिदेव हैं। धनुर्वेद पद इनकी एक संहिता का नाम मिलता है, पर ग्रन्थ प्राप्य नहीं है।
।। हरि ॐ तत सत ।। गीता विशेष 2 – 10.24 ।।
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