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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  10.24 II

।। अध्याय      10.24 II

॥ श्रीमद्‍भगवद्‍गीता ॥ 10.24

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्‌ ।

सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥

“purodhasāḿ ca mukhyaḿ māḿ,

viddhi pārtha bṛhaspatim..।

senānīnām ahaḿ skandaḥ,

sarasām asmi sāgaraḥ”..।।

भावार्थ: 

हे पार्थ! सभी पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति मुझे ही समझ, मैं सभी सेनानायकों में कार्तिकेय हूँ, और मैं ही सभी जलाशयों में समुद्र हूँ। (२४)

Meaning:

Among the spiritual teachers, know me as Brihaspati the foremost, O Paartha. Among the military commanders I am Skanda, and among water bodies I am the ocean.

Explanation:

Further enumerating Ishvara’s expressions, Shri Krishna says that Ishvara is expressed as Brihaspati, who is the foremost among the spiritual teachers and the priests of the deities. Brihaspati is described in the Puraanaas as the “purodha” or guru of Indra, who is the king of all the deities. He was the son of Sage Angiras, one of the seven original rishis or Sapta- Rishis. The word Purōdhaḥ; the one who is kept in front as a guide; puraha dattē, the one who is placed in front, one who is seated in front and who guides me when I do rituals, is called purōhitā. His counterpart in the world of the demons or Asuras was Sage Shukrachaarya.

A priest discharges the function of performing ritualistic worship and ceremonies in temples and homes. However, in the Śhrīmad Bhāgavatam, verse 11.16.22, Shree Krishna states that amongst the priests he is Vashishtha. Why is he differing in the two places? This implies that we should not attach importance to the object, but to the opulence of God that manifests in that object. All the objects of glory that Shree Krishna is describing here should also be understood in the same light. It is not the object that is being emphasized, rather God’s opulence that is manifesting in it.

Next, Shri Krishna says that Isvara is expressed through Skandah, the most powerful army commander in the world.  Skandaḥ means the one who flowed out; who emerged out of Lord’s Śivā’s third eye; to destroy some rākṣasās who had extra ordinary strength.  Skandah is also known as Kaartikeya and he is the son of Lord Shiva. He is described as having six faces and twelve arms. When the army of the deities began the war to kill the asura named Taraka, a celestial voice proclaimed that victory could be possible only if Skanda was made army commander.

The earth is filled with several water bodies, ranging from tiny rain puddles to lakes that are visible from outer space. But the most expansive body of water is the ocean. Some estimates suggest that there is 1260 million trillion litres of water on planet earth. On average, the ocean is around 1 kilometre deep and can go to 11 kilometres in some places. The ocean sustains life on this earth and is home to thousands of species. This vast and awe- inspiring ocean is one of the most powerful expressions of Ishvara.

With this in mind, we should be able to see Ishvara in our teachers, in military prowess used for just means, and when we drink water.

।। हिंदी समीक्षा ।।

मैं पुरोहितों में बृहस्पति हूँ गुरु ग्रह के अधिष्ठाता बृहस्पति को ऋग्वेद में ब्रह्मणस्पति कहा गया है, जो स्वर्ग के अन्य देवों में उनके पद को स्वत: स्पष्ट कर देता है। देवताओं के वे आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं।

मंगल कार्य भी बृहस्पति तारे को देख कर किये जाते है। बृहस्पति देवराज इंद्र के गुरु, देवताओ के कुल गुरु, विद्या बुद्धि में सर्वश्रेष्ठ है। यहां पुरोधा शब्द का उपयोग किया गया है, जिस का अर्थ है जो मेरे धार्मिक अनुष्ठान में अग्रणी हो कर कार्य को सम्पन्न करवाए। बृहस्पति एक पद भी है इसलिए बृहस्पति का विभिन्न पुराणों में अलग अलग वर्णन है।

स्कन्द (कार्तिकेय) शंकरजीके पुत्र हैं। इन के छः मुख और बारह हाथ हैं। ये देवताओं के सेनापति हैं और संसार के सम्पूर्ण सेनापतियों में श्रेष्ठ हैं। स्कंद देवताओ के सेनापति वीरता के प्रतीक है जिन्होंने जन्म के सातवें दिन ही तारकासुर का वध किया था। कार्तिकेय को तारकासुर वध के बाद दक्षिण भेज कर वहां शिव की उपासना एवम धर्म का प्रचार किया, इसलिये दक्षिण भारत मे शिव एवम कार्तिकेय की पूजा ज्यादा की जाती है। परमात्मा ने वीरता के प्रतीक स्कन्द को अपना स्वरूप बताया। स्कंध का अर्थ भगवान शिव की तीसरी आंख से तेज से महाप्रतापी देव की उत्पत्ति है जो राक्षसों का संहार   करने में समर्थ है।

मैं जलाशयों में सागर हूँ इन समस्त उदाहरणों में एक बात स्पष्ट होती है कि भगवान् न केवल स्वयं के समष्टि या सर्वातीत रूप को ही बता रहे हैं, वरन् अपने व्यष्टि या वस्तु व्यापक स्वरूप को भी। विशेषत इस श्लोक में निर्दिष्ट उदाहरण देखिये। निसन्देह ही, गंगाजल का समुद्र के जल से कोई संबंध प्रतीत नहीं होता। यमुना, गोदावरी, नर्मदा, सिन्धु या कावेरी, नील, टेम्स या अमेजन जगत् के विभिन्न सरोवरों का जल, ग्रामों के तालाबों का जल और सिंचाई नहरों का जल, व्यक्तिगत रूप से, स्वतन्त्र हैं, जिनका उस समुद्र से कोई संबंध नहीं है, जो जगत् को आलिंगन बद्ध किये हुए हैं। और फिर भी, यह एक सुविदित तथ्य हैं कि इस विशाल समुद्र के बिना ये समस्त नदियाँ तथा जलाशय बहुत पहले ही सूख गये होते। इसी प्रकार चर प्राणी और अचर वस्तुओं का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व प्रतीत होता है, जिसका सत्य के असीम समुद्र से सतही दृष्टि से कोई संबंध प्रतीत न हो, किन्तु भगवान् सूचित करते हैं कि इस सत्य के बिना यह दृश्य जगत् बहुत पहले ही अपने अस्तित्व को मिटा चुका होता।

एक दृष्टिकोण में सागर शब्द का उपयोग राजा सगर के पुत्रों द्वारा यज्ञ के घोड़े की रक्षा के प्राण देने से गंगा सागर से भी लिया है, जिस में स्नान से गंगा के स्नान के समान ही पूण्य मिलता है। समुन्दर की मर्यादा एवम वर्षा के चक्कर को सभी जानते है। पुराणिक कथा के अनुसार जब इंद्र ने सगर सम्राट के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम में पाताल लोक में छुपा  दिया था। तो सगर के 60000 पुत्रों ने घोड़े को ढूंढने के लिए जमीन को खोद दिया। उस से विशालकाय गड्ढा बन गया और उस का नाम सागर हुआ।

सागर को विभूति कहने के साथ जो प्रसंग गंगा अवतरण का जुड़ा हुआ है, वह भी महत्वपूर्ण है। सगर के 60000 पुत्रों के कपिल ऋषि द्वारा भस्म हो जाने से उन के उद्धार के लिए, सगर के एक पुत्र असमंजस ने तप किया किंतु वह सफल नहीं हुआ, फिर उस के पुत्र अंशुमान ने तप किया किंतु उसे भी सफलता नहीं मिली। इस के बाद उस के बाद उस के पुत्र भागीरथ ने तप किया तो गंगा मिली जिसे पृथ्वी में शिव ने अपनी जटाओं में धारण कर के एक जटा से छोड़ा। किंतु आगे जाहनु ऋषि के आश्रम को बहाने के कारण, ऋषि ने उस का गंगा को पी लिया। और भागीरथ की प्रार्थना से द्रवित हो कर कान से गंगा को पुनः भी छोड़ दिया और इसी कारण गंगा जाह्नवी भी कहलाई। इस के बाद गंगा सगर पुत्रों की राख के पास सागर में मिली और उन का उद्धार किया। वह स्थान गंगा सागर कहलाया। शाब्दिक कथा में आध्यात्मिक अर्थ ब्रह्म तत्व के ज्ञान के स्वरूप में गंगा का उतरना माना गया है, जिसे शरीर के सातवे चक्र सहस्त्रार में धारण कर के अल्प स्वरूप में लोककल्याण हेतु प्रवाहित किया गया। किंतु इस को आगे ज्ञानियों ने समझा और कान अर्थात श्रुति के माध्यम से जगत को दिया। यह श्रुति ही जन्म – मरण में फसे जीव को मोक्ष प्रदान करने का साधन बनी और इस ब्रह्म ज्ञान को सब के कल्याण हेतु प्राप्त करने के लिए भागीरथ अर्थात कठिन प्रयास करना होता है।

विभूतियों का अर्थ ही गंभीर है, इसलिये त्याग, ज्ञान, बुद्धिमान, नियमो से पालन कराने वाले बृहस्पति, वीरता एवम संचालन क्षमता के साथ लोक कल्याण के असुर से युद्ध करने वाले के प्रतीक स्कन्द एवम सम्पूर्ण जलाशय का आधार धीर एवम गम्भीर सागर जो अपनी मर्यादा को कभी नही तोड़ता, को परमात्मा ने अपना स्वरूप बताया है। विभूतियों का चयन का आधार नाम नहीं है, उन का आधार उन के गुण है। इसी कारण श्रीमद भागवत पुराण में पुरोहितों में वशिष्ठ जी को अपनी विभूति कहा गया है। वेदों में सामवेद के अतिरिक्त यजुर्वेद को भी विभूति कहा गया है। ऐश्वर्य, संपत्ति, धन, दिव्य या अलौकिक शक्ति जिस के अंतर्गत अणिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियाँ हैं।  इसलिए क्षेत्र के अनुसार जो भी सात्विक गुणों से और अपने अथक प्रयास और अभ्यास से अपने कर्तव्य कर्म के अनुसार श्रेष्ठ और सम्पन्न है, वही परमात्मा की विभूति है।

परमात्मा की विभूतियों में हम ने बचपन से अभी तक उन मूर्तियों को ही परमात्मा समझा जिन्हें हम पूजा गृह में नमन करते है। परमात्मा का अपना कोई स्वरूप नही है, वह अव्यक्त है किंतु सभी के हृदय में बसता है।  कर्म, ज्ञान, आचरण, लोककल्याण, ऐष्वर्य, बल, शक्ति, तेज आदि के आधार पर अपनी विभूतियों को बतलाने का उद्देश्य यही है कि हमे संकुचित विचारधारा को त्याग कर परमात्मा के स्वरुप को संसार के प्रत्येक स्वरूप में उस अव्यक्त परमात्मा को देखना आना चाहिये। यदि इस मे भूल हो जाये तो क्या हो सकता है, इसे भी आगे चर्चा करते है। अभी कुछ और विभूतियों को पढ़ते है।

।। हरि ॐ तत सत।। 10.24।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

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