।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 09.07 II
।। अध्याय 09.07 II
॥ श्रीमद्भगवद्गीता ॥ 9.7॥
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्॥
“sarva- bhūtāni kaunteya,
prakṛtiḿ yānti māmikām..।
kalpa-kṣaye punas tāni,
kalpādau visṛjāmy aham”..।।
भावार्थ:
हे कुन्तीपुत्र! कल्प के अन्त में सभी प्राणी मेरी प्रकृति (इच्छा-शक्ति) में प्रवेश करके विलीन हो जाते हैं और अगले कल्प के आरम्भ में उनको अपनी इच्छा-शक्ति (प्रकृति) से फिर उत्पन्न करता हूँ। (७)
Meaning:
All beings attain my Prakriti when an age ends, O Kaunteya. I project them again when (another) age begins.
Explanation:
Previously, Shri Krishna compared wind in space to the multitude of beings in Ishvara. Here, he asserts that all those beings go to Ishvara’s Prakriti at the end of a “kalpa” or age. They then come back into existence when the kalpa starts all over again.
In the last chapter, Shri Krishna had explained the process of creation and dissolution. He spoke about the day and night of Lord Brahma. Here, he adds more detail by revealing the orchestrator of creation and dissolution. It is Prakriti. In an earlier context, this word was translated as nature. In this context, we will keep the original word since the meaning is a little different.
So here Krishna says, before creation of this universe, the universe was already existent in me, in unmanifest form or potential form; because nothing can be newly created. According to the law of conservation of matter and energy; nothing can be newly created; even an ounce of matter cannot be created by anyone including God. Even though God is omnipotent; even an ounce of matter cannot be created. Therefore God says, I do not create a world at all; the world was already existent in Me; but only difference is what; not in this unfolded manner. The world was existent in seed form; potential form; unmanifest form, just as a huge tree, existing within a seed; or as a baby exists in the womb of the mother. So when a look up at a grown up child; and the mother says. This is my son; that fellow is one foot above the mother. And then you wonder; how can such a big person be in the stomach of the mother; even though he is so big now; previously he was a tiny fetus, who was existing in unmanifest form. So in the DNA, they say information contained in the smallest DNA is so much, that 300 books of information can be extracted out of it; because the child’s or the man’s all the features must be there encoded. If your hair has to turn grey at the 43rd year, remember it is already coded in your DNA.
Now, you can understand by Dream you see. What is dream? All the dream that you have are nothing but the impressions that you will have gathered from your observation and experience; You can never dream what you have not experienced; you can have a peculiar permutation combination. So the man- body and buffalo- head; the combination will be mind and brain might do; but you have experienced a buffalo; you have experienced a man; and if at all you say no no no; I saw something which I have never experienced; then I say you have forgotten it. And still if you claim; no no no; I have never experienced; I am damn sure; I say that you have experienced in your previous janma; because mind continues from previous janma; therefore today’s dream is already in the waker, in what form?; in potential form. Today’s dream of yours is already in your mind in potential form; already we VCR has worked; VCR means video cassette recorder. You have recorded in your mental tape, and the VCR operation will stop, the moment you go to bed. And VCR operation will be replaced by VCP. And what will be played; whatever has been recorded. Therefore, what I want to say is your dream is potentially there in you, the waker. Similarly, the dream like world is in Brahman; in unmanifest form; which is called māya or prakr̥ti.
Prakriti is a system that tracks the karmas or actions of each and every being in the universe. When every being’s karma is exhausted, Shri Krishna, through the medium of Prakriti, begins the process of dissolution, just like we go to sleep when we exhaust all our actions for the day. When the time is right for the next set of actions to begin manifesting, Prakriti “wakes” up everyone and begins the process of creation.
Now, we notice that Shri Krishna does not use the word “create” here. Instead, he uses the word “project”. Prakriti is similar to a movie projector in that it does not create anything new, but projects names and forms on the screen, just like waves and foam in the ocean. As we saw earlier, creation and dissolution is a matter of perspective. A child only sees waves and foam. The adult, seeing the very same waves and foam, knows that it is ultimately water.
Similarly, creation and dissolution on a cosmic scale is “real” only if we get stuck at the level of names and forms. The jnyaani or the wise seeker sees the names and forms come and go, but knows that everything, ultimately, is only Ishvara. The difference between the jnyaani and everyone else is that the wise seeker’s perspective that comes from having the knowledge of Ishvara. This knowledge is paramount.
So then, what is the relationship between Ishvara, Prakriti and us? This is explained in the next shloka.
।। हिंदी समीक्षा ।।
पूर्व अध्याय को पुनवलोकन करते है तो हम ने पढ़ा था ब्रह्मा का दिन मनुष्य के 4.32 करोड़ दिन के बराबर होता है। ब्रह्मा दिन में सृष्टि की रचना करते है एवम रात्रि में सृष्टि उन में विलीन हो जाती है। ब्रह्मा का एक दिन एक कल्प होता है। ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष की है अतः 100 वर्ष के बाद महाप्रलय होता है और समस्त सृष्टि परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस को कल्पक्षय बोला गया है।
परमात्मा अपने निसर्ग होने के साथ अपनी क्रियाशीलता का परिचय भी देते हुए कहते है कि ब्रह्मा की रात्रि में समस्त प्रकृति उन में लीन हो जाती है एवम ब्रह्मा सोते है। तो दिन में पुनः उस का निर्माण वो ही करते है। कल्पक्षय में प्रकृति के साथ ब्रह्मा भी लीन हो जाते है। अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्मांड परमात्मा में लीन हो जाता है।
पिछले दो श्लोकों में श्रीकृष्ण ने यह व्याख्या की है कि सभी जीव उन में स्थित रहते हैं। उन के इस कथन से यह प्रश्न उत्पन्न होता है-“जब महाप्रलय होती है तब समस्त संसार का संहार हो जाता है तब सभी प्राणी कहाँ जाते हैं?” इसका उत्तर इस श्लोक में दिया गया है।
कल्पो के अंत मे समस्त शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, भोग सामग्री और लोको के सहित समस्त प्राणियों का प्रकृति में लय हो जाना अर्थात उन के गुणकर्मो के संस्कार – समुदाय रूप कारण शरीर सहित उन का मूल प्रकृति में विलीन हो जाना ही सब भूतों का प्रकृति को प्राप्त होना है।
पिछले अध्याय के सोलहवें से उन्नीसवें श्लोक में श्रीकृष्ण ने यह स्पष्ट किया था कि सृजन, स्थिति तथा प्रलय के चक्र का पुनरावर्तन होता रहता है। यहाँ ‘कल्पक्षये’ शब्द का अर्थ ‘ब्रह्मा के जीवन काल का अन्त है।’ ब्रह्मा के जीवन के 100 वर्ष जोकि पृथ्वी के 311 खरब 40 अरब वर्ष के बराबर है, पूर्ण होने के पश्चात सभी ब्रह्माण्डीय अभिव्यक्तियाँ विघटित होकर अव्यक्त अवस्था में चली जाती हैं। पंच महाभूत पंच तन्मात्राओं में विलीन हो जाते हैं और पंच तन्मात्राएँ अहंकार में, अहंकार महान में और महान माया शक्ति के आदि रूप प्रकृति में विलीन हो जाती है और प्रकृति परम पिता महाविष्णु के दिव्य शरीर में विलीन होकर उनमें स्थित हो जाती है। उस समय भौतिक सृष्टि की सभी जीवात्माएँ अव्यक्त प्रसुप्त जीवंत अवस्था में भगवान के दिव्य शरीर में स्थित हो जाती हैं।
उनका स्थूल और सूक्ष्म शरीर जड़ माया में विलीन हो जाता है। किन्तु उनका कारण शरीर बना रहता है। श्लोक 2.28 में उल्लिखित टिप्पणी में तीन प्रकार के शरीरों का विस्तार से वर्णन किया गया है। प्रलय के पश्चात जब भगवान पुनः संसार की रचना करते हैं तब माया (भौतिक शक्ति) प्रकृति- महान- अहंकार- पंचतन्मात्राओं- पंचमहाभूतों को विपरीत क्रम में प्रकट करती है तब जो जीवात्माएँ केवल कारण शरीर के साथ जीवंत सुप्त अवस्था में पड़ी थी उन्हें पुनः संसार में भेजा जाता है। अपने कारण शरीर के अनुसार वे पुनः सूक्ष्म और स्थूल शरीर प्राप्त करती हैं और ब्रह्माण्ड में जीवों की विभिन्न योनियाँ उत्पन्न होती हैं।
बिग बैंग का सिद्धांत या God particle का सिद्धांत भी यहां से मिलता है कि कोई भी पदार्थ नया नही बनता, वह पहले से मौजूद है। क्रमिक विकास और संकुचन के अनुसार प्रकृति की प्रत्येक रचना छोटी से बड़ी हो कर पुनः छोटी हो जाती है। जीव एक भ्रूण के रूप में स्त्री के गर्भ में आता है और फिर जन्म ले कर बढ़ता है। यही पुनः भ्रूण में परिवर्तित होता है। वृक्ष भी बीज से बन कर पुनः बीज बन जाता है। वैसे ही ब्रह्म के गर्भ से पूरी सृष्टि की रचना सर्ग काल में होती है और प्रलय काल में सिमट कर एक कण के रूप में ब्रह्म में समा जाती है। इसलिए भगवान कल्प के अंत में संपूर्ण सृष्टि को अपने में समावेश करते है और अगले कल्प में पुनः उत्पन्न करते है।
महाप्रलय के समय अपने अपने कर्मों को लेकर प्रकृति में लीन हुए प्राणियों के कर्म जब परिपक्व होकर फल देने के लिये उन्मुख हो जाते हैं, तब प्रभु के मन में ऐसा संकल्प हो जाता है। यही महासर्ग का आरम्भ है। अर्थात् सम्पूर्ण प्राणियों का जो होनापन है, उसको प्रकट करने के लिये भगवान् का जो संकल्प है। यही विसर्ग (त्याग) है और यही आदिकर्म है। तात्पर्य यह हुआ कि कल्पों के आदि में अर्थात् महासर्ग के आदि में ब्रह्माजी के प्रकट होने पर परमात्मा पुनः प्रकृति में लीन हुए, प्रकृति के परवश हुए, उन जीवों का उन के कर्मों के अनुसार उन उन योनियों (शरीरों) के साथ विशेष, सम्बन्ध करा देता है। क्योंकि परमात्मा अकर्ता है तो यह कार्य उस के अधीन प्रकृति ही करती है।
उदाहरण के तौर में स्वप्न सभी देखते है, स्वप्न वही है जो आप ने पूर्व में देखा या सोचा होगा, उस के अतिरिक्त कोई स्वप्न नही आ सकता है। इसलिए जब भी अप्रत्याशित स्वप्न आए तो समझ लेना यह अनुभव पूर्व जन्म का अनुभव होगा।
गीता स्वयं में एक एक श्लोक द्वारा स्पष्टीकरण करती है इस लिये हम ने पहले सृष्टि का ब्रह्मा में लीन होना पढ़ा, ब्रह्मा सहित समस्त सृष्टि के परमात्मा में महाप्रलय से लीन होना पढ़ा। अब परमात्मा द्वारा संकल्प मात्र से पुनः प्रकृति द्वारा सृष्टि के विभिन्न जीव की रचना करते हुए पढ़ रहे है।
प्रकृति की रचना परमात्मा किस प्रकार करता है यह हम आगे पढ़ते है।
।। हरि ॐ तत सत।।9.07 ।।
।। आधुनिक विज्ञान और गीता ।। विशेष 9 . 07 ।।
ब्रह्मांड का इतिहास
ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विकास और प्रकृति ने सदियों से मानव जाति को मोहित और भ्रमित किया है। 20वीं शताब्दी के दौरान किए गए नए विचारों और प्रमुख खोजों ने ब्रह्मांड विज्ञान को बदल दिया – जिस तरह से हम ब्रह्मांड की अवधारणा और अध्ययन करते हैं उसके लिए शब्द – हालांकि बहुत कुछ अज्ञात है। ब्रह्माण्ड विज्ञानियों के वर्तमान सिद्धांतों के अनुसार ब्रह्मांड का इतिहास यहां दिया गया है।
बिग बैंग इन्फोग्राफिक, बिग बैंग के इतिहास और ब्रह्मांड के निर्माण खंडों के निर्माण की समयरेखा दिखा रहा है।
लौकिक मुद्रास्फीति
लगभग 13.8 अरब वर्ष पहले, ब्रह्मांड एक सेकंड के एक अंश के लिए प्रकाश की गति से भी अधिक तेजी से विस्तारित हुआ, इस अवधि को ब्रह्मांडीय मुद्रास्फीति कहा जाता है। वैज्ञानिक निश्चित नहीं हैं कि मुद्रास्फीति से पहले क्या आया या इसे किसने संचालित किया। यह संभव है कि इस अवधि के दौरान ऊर्जा अंतरिक्ष-समय के ताने-बाने का सिर्फ एक हिस्सा थी। ब्रह्माण्ड विज्ञानियों का मानना है कि मुद्रास्फीति ब्रह्माण्ड के कई पहलुओं की व्याख्या करती है जिन्हें हम आज देखते हैं, जैसे कि इसकी सपाटता, या सबसे बड़े पैमाने पर वक्रता की कमी। मुद्रास्फीति ने घनत्व अंतर को भी बढ़ाया हो सकता है जो स्वाभाविक रूप से अंतरिक्ष के सबसे छोटे, क्वांटम-स्तर के पैमाने पर होता है, जिसने अंततः ब्रह्मांड की बड़े पैमाने की संरचनाओं को बनाने में मदद की।
बिग बैंग और न्यूक्लियोसिंथेसिस
जब ब्रह्मांडीय मुद्रास्फीति रुक गई, तो इसे चलाने वाली ऊर्जा पदार्थ और प्रकाश में स्थानांतरित हो गई – बड़ा धमाका। महाविस्फोट के एक सेकंड बाद, ब्रह्मांड में प्रकाश और कणों का अत्यंत गर्म (18 अरब डिग्री फ़ारेनहाइट या 10 अरब डिग्री सेल्सियस) मौलिक सूप शामिल था। अगले मिनटों में, न्यूक्लियोसिंथेसिस नामक एक युग में, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन टकराए और सबसे पुराने तत्वों का उत्पादन किया – हाइड्रोजन, हीलियम, और लिथियम और बेरिलियम के निशान। पांच मिनट के बाद, आज के अधिकांश हीलियम का निर्माण हो गया था, और ब्रह्मांड इतना विस्तारित और ठंडा हो गया था कि आगे के तत्वों का निर्माण बंद हो गया। हालाँकि, इस बिंदु पर, ब्रह्मांड अभी भी इन तत्वों के परमाणु नाभिकों के लिए इलेक्ट्रॉनों को पकड़ने और पूर्ण परमाणु बनाने के लिए बहुत गर्म था। ब्रह्मांड अपारदर्शी था क्योंकि बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉनों ने एक प्रकार का कोहरा बनाया था जिससे प्रकाश बिखर गया था।
पुनर्संयोजन
बिग बैंग के लगभग 380,000 वर्ष बाद, ब्रह्मांड इतना ठंडा हो गया था कि परमाणु नाभिक इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण कर सके, इस अवधि को खगोलशास्त्री पुनर्संयोजन का युग कहते हैं। ब्रह्मांड पर इसके दो प्रमुख प्रभाव पड़े। सबसे पहले, अधिकांश इलेक्ट्रॉन अब परमाणुओं में बंधे हुए हैं, प्रकाश को पूरी तरह से बिखेरने के लिए पर्याप्त स्वतंत्र नहीं रह गए हैं, और ब्रह्मांडीय कोहरा साफ हो गया है। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया, और पहली बार, प्रकाश स्वतंत्र रूप से लंबी दूरी तक यात्रा कर सका। दूसरा, इन प्रथम परमाणुओं के निर्माण से अपना स्वयं का प्रकाश उत्पन्न हुआ। यह चमक, जो आज भी पहचानी जा सकती है, कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड कहलाती है। यह सबसे पुराना प्रकाश है जिसे हम ब्रह्मांड में देख सकते हैं।
अंधकार युग
ब्रह्मांडीय माइक्रोवेव पृष्ठभूमि के बाद, उन सभी हाइड्रोजन परमाणुओं के अवशोषित प्रभावों के कारण ब्रह्मांड फिर से छोटी तरंग दैर्ध्य पर अपारदर्शी हो गया। अगले 200 मिलियन वर्षों तक ब्रह्मांड अंधकारमय रहा। चमकने के लिए कोई सितारे नहीं थे। इस बिंदु पर ब्रह्मांड में हाइड्रोजन परमाणुओं, हीलियम और भारी तत्वों की थोड़ी मात्रा का समुद्र शामिल था।
प्रथम सितारे
पूरे ब्रह्मांड में गैस समान रूप से वितरित नहीं थी। अंतरिक्ष के ठंडे क्षेत्र गैस के घने बादलों के साथ ढेलेदार थे। जैसे-जैसे ये गुच्छे अधिक विशाल होते गए, उनके गुरुत्वाकर्षण ने अतिरिक्त पदार्थ को आकर्षित किया। जैसे-जैसे वे सघन होते गए, और अधिक सघन होते गए, इन गुच्छों के केंद्र अधिक गर्म होते गए – अंततः इतने गर्म हो गए कि उनके केंद्रों में परमाणु संलयन हो गया। ये पहले सितारे थे. वे हमारे सूर्य से 30 से 300 गुना अधिक विशाल और लाखों गुना अधिक चमकीले थे। कई सौ मिलियन वर्षों में, पहले तारे पहली आकाशगंगाओं में एकत्रित हुए।
शिशु ब्रह्मांड का ताप मानचित्र
ब्रह्मांडीय माइक्रोवेव पृष्ठभूमि की इस विस्तृत, संपूर्ण आकाशीय छवि को बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने नासा के विल्किंसन माइक्रोवेव अनिसोट्रॉपी जांच के नौ साल के डेटा का उपयोग किया। छवि 13.8 अरब वर्ष पुराने तापमान में उतार-चढ़ाव (विभिन्न रंगों के रूप में दिखाया गया है) को दर्शाती है – बीज जो विकसित होकर आकाशगंगाओं में बदल गए जिन्हें हम आज देखते हैं।
पुनर्आयनीकरण
सबसे पहले, तारों का प्रकाश दूर तक नहीं जा सका क्योंकि यह पहले तारों के आसपास अपेक्षाकृत घनी गैस द्वारा बिखरा हुआ था। धीरे-धीरे, इन तारों द्वारा उत्सर्जित पराबैंगनी प्रकाश, गैस में हाइड्रोजन परमाणुओं को उनके घटक इलेक्ट्रॉनों और प्रोटॉन में तोड़ दिया, या आयनित कर दिया। जैसे-जैसे यह पुनर्आयनीकरण आगे बढ़ा, तारों का प्रकाश अधिक दूर तक चला गया और अधिक से अधिक हाइड्रोजन परमाणुओं को तोड़ता गया। जब ब्रह्मांड 1 अरब वर्ष पुराना था, तब तक तारों और आकाशगंगाओं ने लगभग सभी गैसों को बदल दिया था, जिससे ब्रह्मांड प्रकाश के लिए पारदर्शी हो गया था जैसा कि हम आज देखते हैं।
भविष्य
कई वर्षों तक, वैज्ञानिकों ने सोचा कि ब्रह्मांड का वर्तमान विस्तार धीमा हो रहा है। लेकिन वास्तव में, ब्रह्मांडीय विस्तार तेज़ हो रहा है। 1998 में, खगोलविदों ने पाया कि कुछ सुपरनोवा, चमकीले तारकीय विस्फोट, अपेक्षा से कमज़ोर थे। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ऐसा तभी हो सकता है जब सुपरनोवा अनुमान से अधिक तेज गति से दूर चला गया हो।
वैज्ञानिकों को संदेह है कि एक रहस्यमय पदार्थ जिसे वे डार्क एनर्जी कहते हैं, तेजी से विस्तार कर रहा है। भविष्य के शोध से नए आश्चर्य सामने आ सकते हैं, लेकिन ब्रह्मांड विज्ञानियों का सुझाव है कि यह संभावना है कि ब्रह्मांड हमेशा के लिए विस्तारित होता रहेगा।
आधुनिक विज्ञान और वेदांत
वेदों और उपनिषदों में ब्रह्म और परब्रह्म का वर्णन और ब्रह्मांड के विषय में जितनी भी जानकारी मिलती है, उस में ऋग्वेद के नासदिय सूक्त भी है जो यह बताता है कि भारतीय दर्शन विज्ञान में चाहे आज के समान साधन युक्त नही भी हो, किंतु जो भी जानकारी श्रुतियों में उपलब्ध है, वह काल्पनिक नहीं हो कर सटीक है। क्योंकि वेदांत दर्शन और नालंदा विश्व विद्यालय के नष्ट होने जो कुछ भी अभी उपलब्ध है, वह टुकड़े टुकड़े में है। उसे राजनीतिज्ञों ने अपभ्रंश और नष्ट भी किया है, इसलिए उस समय का संपूर्ण ज्ञान उपलब्ध भी नही है। इसलिए हमारे ऋषि मुनि कितने साधन संपन्न रहे होंगे, यह पता नही।
।। हरि ॐ तत् सत् ।। विशेष 9. 07 ।।
Complied by: CA R K Ganeriwala ( +91 9422310075)