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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  01.21-22 ।।

।। अध्याय 01. 21-22  ।।

श्रीमद्भगवद्गीता 1.21-22

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।। 21 ।।

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे 22।।

arjuna uvāca,

“hṛṣīkeśaḿ tadā vākyam,

idam āha mahī-pate”..I

“senayor ubhayor madhye.

rathaḿ sthāpaya me ‘cyuta”II21 II

yāvad etān nirīkṣe ‘haḿ,

yoddhu-kāmān avasthitān..I

kair mayā saha yoddhavyam,

asmin raṇa-samudyame”..II22II

भावार्थ :

कि हे अच्युत! कृपा करके मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खडा़ करें। जिस से मैं युद्धभूमि में उपस्थित युद्ध की इच्छा रखने वालों को देख सकूँ कि इस युद्ध में मुझे किन-किन से एक साथ युद्ध करना है।॥ २१-२२॥

Meaning:

Arjuna said: O infallible one, in preparation for combat, position my chariot between the two armies till I have surveyed those battle-hungry warriors with whom I have to fight.

Explanation:

And so begins the conversation between Arjuna and Shri Krishna. At this point, Arjuna was firmly in control of the situation, and like any determined warrior, he commanded his charioteer to carry out his instructions.

As a pure devotee of the Lord, Arjuna had no desire to fight with his cousins and brothers, but he was forced to come onto the battlefield by the obstinacy of Duryodhana, who was never agreeable to any peaceful negotiation. Therefore, he was very anxious to see who the leading persons present on the battlefield were.

Although there was no question of a peacemaking endeavor on the battlefield, he wanted to see them again, and to see how much they were bent upon demanding an unwanted war.

Similar to the analysis of Duryodhana’s emotional state from the previous verses, let us analyze Arjuna’s state. Here, it is clear that he was charged up for war, his warrior instincts had kicked into high gear, and he was bursting with self-confidence.

Another point to consider here is how much, like Arjuna, we rely on our sense organs to deliver the right information to our brain so that we can take the right decision and carry out the necessary action that a situation demands. Our sense organs comprise our eyes, ears, nose, tongue and skin. Any information that we process must necessarily come from one of these organs. Arjuna was located at some distance from the opposing army, so he knew that he needed to get a better look at the opposing army, and therefore have all the information he needs to make his battle plans.Sense organs and understanding how they function is a topic that will be discussed at great length in the rest of the Gita.

।। हिंदी समीक्षा ।।

यहाँ हम अर्जुन को पूरे आत्मबल और संयत रूप में एक सेना नायक के समान रथ सारथि को आदेश देते हुए देखते हैं कि उसका रथ दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा कर दिया जाय जिस से वह विभिन्न योद्धाओं को देख और पहचान सके जिन के साथ उसे इस महायुद्ध में लड़ना होगा। क्योंकि उस के रथ के सारथी भगवान श्री कृष्ण है, इसलिये आदेश का स्वरूप आज्ञा का न हो कर प्रार्थना का है, ” हे अच्युत!” ।

इस प्रकार शत्रु सैन्य के निरीक्षण की इच्छा व्यक्त करते हुये वीर अर्जुन अपने साहस शौर्य तत्परता दृढ़ निश्चय और अदम्य शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है। कथा के इस बिन्दु तक महाभारत का अजेय योद्धा अर्जुन अपने मूल स्वभाव के अनुसार व्यवहार कर रहा था। उस में किसी प्रकार की मानसिक उद्विग्नता के कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे।

अर्जुन युद्ध भूमि में दुर्योधन की समझोता नही करने की जिद्द के कारण परिस्थिति जन्य आया था। जिस में समझौता स्वयं भगवान कृष्ण भी नही करवा पाए। अतः यह युद्ध एक व्यक्ति की जिद्द, लोभ, अहंकार, द्वैष और अपरिपक्वता के कारण हो रहा था।

विचार योग्य बात यह है कि कृष्ण स्वयं ईश्वर होते हुए भी भक्त की अधीनता स्वीकार कर रहे है, ईश्वर सभी को मार्ग दिखाता है और कभी भक्त भी ईश्वर को मार्ग दिखाने के कहे तो भी समझो कि कुछ अच्छा ही होने वाला है।

दुर्योधन की तुलना में अर्जुन पूर्ण आत्मविस्वास से भरा था किंतु वो जानता था कि यह युद्ध एक लोभी एवं स्वार्थी व्यक्ति की अनैतिक इच्छा के परिणामस्वरूप हो रहा था अतः उस की इच्छा थी वो देखे की इस युद्ध मे कौन कौन व्यक्ति है जिन के साथ उस को युद्ध करना पड़ रहा है।

व्यक्तिगत जीवन मे बहुत बार इसी प्रकार की दुविधाएं आती है जहां किसी को अपने हित के संघर्ष करना पड़ता है और खासतौर पर जब वो सही हो। संघर्ष के लिये तैयार व्यक्ति हमेशा यह जानने का इच्छुक रहता है कि कौन लोग जिन के साथ वो बड़ा हुआ आज उस के साथ नही है। हमारी मनोवृति एवम क्षमता का इस पर बहुत बड़ा प्रभाव रहता है एवम हमारे दृढ़ निश्चय में और हमारी कार्यकुशलता में हमारे साथ और विरुद्ध खड़े लोग का प्रभाव हमारे ही संस्कारो के कारण हम पर बहुत अधिक पड़ता है।

परिस्थितियां हमे किस मोड़ पर खड़ा करती है एवम भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है, इसे कोई नही जानता किन्तु जो स्वतः हो रहा है वह ऐसा नही लगता। कौन जानता था कि युद्ध से पूर्व महाभारत में अर्जुन की यह इच्छा या आज्ञा की उसे किन लोगों से युद्ध करना है, गीता के उपदेश का कारण बन जायेगा।

अच्छे संस्कारित लोगो मे धर्म, दया, स्नेह, आत्मिकभाव अक्सर उन के व्यक्तित्व का द्योतक है किंतु स्वार्थी, लोभी एवम दुष्ट व्यक्ति के लिये यह उन की कमजोरी एवम हथियार है। लोभी व्यक्ति हमेशा इस का लाभ ही उठाने की सोचता है, इसलिये वह स्वयं किसी भी सीमा तक जा सकता है किंतु उसे लगता है, सामने वाला भला व्यक्ति भविष्य की लड़ाई-झगड़े को टालने के लिये, समझौता कर लेगा और अपना अधिकार छोड़ देगा। इस से उसे बिना कुछ गवाएं, जिद्द में वह सब कुछ मिल जाएगा, जिस का वह अधिकारी नही है। आज के पारिवारिक जीवन मे अक्सर यह देखने को मिलता है। धृतराष्ट्र को पांडव से कुछ ऐसी ही  आशा थी।

न्याय – अन्याय, धर्म – अधर्म की कोई अनिश्चित परिभाषा नहीं है। इसलिए कुबुद्धि में भी अपने द्वेष, स्वार्थ, लोभ और अहंकार को ले कर मनुष्य न्याय और धर्म की नई परिभाषा गढ़ कर अपने को सही मानता है, उन का साथ देने वाले चाहे कितने भी बड़े ज्ञानी और सदधर्मी हो, अपनी मजबूरी को अपना धर्म मान कर उन का साथ भी निभाते है। इस परिस्थितियों में मोह, ममता, आसक्ति, भय, अहम,  आदर, और अच्छे संस्कार मनुष्य को यदि अधर्म का प्रतिकार करने से रोकता है, तो उस का कर्तव्य धर्म क्या हो?

गीता ब्रह्मज्ञान है जिस में अर्जुन जीव का प्रतीक है और भगवान श्री कृष्ण ब्रह्म के। इस इतिहासिक प्रसंग में  रूपात्मक स्वरूप का भी अर्थ हम आगे समझने की चेष्टा भी करेंगे।

गीता के अध्ययन के लिए यह स्थिति में अर्जुन की प्रतिक्रिया का महत्व बहुत अधिक है, जिसे हम आगे के श्लोकों में समझेगे।

।। हरि ॐ तत सत ।। 01.21-22।।

Complied by: CA R K Ganeriwala ( +91 9422310075)

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