।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 03.28।। Additional II
।। अध्याय 03.28 ।। विशेष II
।। जीव–प्रकृति और रोबोट।।विशेष 3.28।।
श्लोक 3.28 को ज्यादा अच्छे से समझने के लिए हम एक उदाहरण से समझते है।
आप ने रोबोट देखा या सुना होगा। उस मे गति, मेमोरी, कार्य करने के प्रोग्राम आदि सभी कुछ होता है। उस को संचालन करने के लिए चेतना यानी एनर्जी भी दी जाती है। आप उस का प्रोग्राम artifical intelligency द्वारा भी तय करते है। उस को operate व्यक्ति अपने नियम एवम कार्यक्रम द्वारा संचालित करता है।
रोबोट में एनर्जी, प्रोग्राम एवम artificial intelligency होने से वो कुछ कार्य स्वतः भी करता है।
किन्तु सभी जानते है कि रोबोट नित्य नही है। रोबोट स्वयं को कर्ता मान ले तो भी गलत होगा क्योंकि उस की हर गति विधि उस को संचालित करने वाला व्यक्ति करता है।
अतः रोबोट व्यक्ति यानि जीव है, संचालित करने वाला प्रकृति। उस का निर्माण करने वाला साक्षी यानि ब्रह्म है जो कर्ता नही है किंतु जो रोबोट को उस के equipment एवम प्रोग्राम बना कर बार बार उस को प्रकृति के लिए उपयोगी बनाता रहता है और यह सिलसिला तब तक चलेगा जब तक रोबोट के पार्ट काम करते रहेंगे। रोबोट का शरीर पंच महाभूत है।
प्रकृति में नित्य कुछ भी नही है, इसलिए जन्म, विकास, संतति, कर्म, क्षय और मृत्यु का चक्कर चलता ही रहता है। जो यह समझता है कि वह शरीर है तो वह अज्ञानी है।
यह उदाहरण प्रकृति एवम जीव से सम्बंध के लिए उचित है किंतु कर्मयोग एवम सांख्य योग में मुक्त भाव के लिए नहीं। क्योंकि यहां आर्टिफीसियल intelligency अभी सीमित है जब की वास्तविक रोबोट यानि मनुष्य में यह असीमित, पूर्ण ब्रह्म के समान है, इस को ही जानना मुक्त होना है। मन, बुद्धि और अहंकार इस के ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर है। इंद्रियां और मस्तिष्क एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर है। शरीर हार्डवेयर है। यह सॉफ्टवेयर में कार्य -कारण के नियमो से क्रियाएं होती है।
जीव और प्रकृति 25 तत्व का निर्माण है जिन्हें हम विस्तार से आगे पढ़ेंगे। जीव नित्य, अकर्ता, साक्षी एवम परमब्रह्म का अंश है जिस का संयोग प्रकृति से होने से उसे यह शरीर प्राप्त हुआ। प्रकृति अपना कार्य करती है और जीव जब यह समझने लगता है कि वह कर रहा है तो उस का सम्बंध प्रकृति से जुड़ जाता है। इस को समझने के संसाधन मन एवम बुद्धि भी प्रकृति के ही है अतः जब तक जीव आत्मचिंतन में गुरु द्वारा ज्ञान प्राप्त कर के आत्मनिष्ठ नही होता उसे यह ज्ञात ही नही होता। यही ज्ञान गुरु अर्थात भगवान श्री कृष्ण आगे स्पष्ट करेंगे, जिस की यह अभी तक भूमिका के रूप में प्रस्तुत है।
इसके लिये अब एकाग्रता एवम मनन की अत्यंत आवश्यकता है जो सुभाषित वचन पढ़ने या लिखने से प्राप्त नही होगा।
।। हरि ॐ तत सत ।। विशेष 3.28 ।।
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