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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  18.70 II

।। अध्याय      18.70 II

॥ श्रीमद्‍भगवद्‍गीता ॥ 18.70

अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः ।

ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः॥

“adhyeṣyate ca ya imaḿ,

dharmyaḿ saḿvādam āvayoḥ..।

jñāna- yajñena tenāham,

iṣṭaḥ syām iti me matiḥ”..।।

भावार्थ: 

जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनों के संवाद रूप गीताशास्त्र को पढ़ेगा, उसके द्वारा भी मैं ज्ञानयज्ञ (गीता अध्याय 4 श्लोक 33 का अर्थ देखना चाहिए।) से पूजित होऊँगा- ऐसा मेरा मत है ॥७०॥

Meaning:

And he who will study this sacred conversation between the two of us, by him I shall be worshipped through the sacrifice of knowledge. This is my opinion.

Explanation:

These two verses 70 and 71 are śiṣya sthuthi or śiṣya mahimā. And Lord Krishna divides the students into two categories. One is a qualified and serious student of the Gītā; Serious means committed student, And the second type of student is unprepared and therefore only a casual student. So, the one whose approach to the Gītā is a casual approach, such a student is the inferior is the second one

-and the study of the qualified student, Krishna calls adhyāyanam;

-and the study of the unqualified student Krishna calls śr̥avaṇam.

Adhyāyanam means serious systematic study, śr̥avaṇam means casual hearing, with the simple of thought of let some noble thoughts come to me; etc. so that is also another approach; casual, hobbish approach.

Shree Krishna had repeatedly told Arjun to surrender his intellect to him (verses 8.7, 12.8). This does not imply that we stop using the intellect; rather it means we utilize our intellect to the best of our ability in fulfilling his will for us. From the message of the Bhagavad Gita we understand what his will is. Hence, those who study this sacred dialogue worship God with their intellect.

Now, when a sincere student studies this conversation between Shri Krishna the teacher, and Arjuna the student, such a student gains the same insight and understanding that Arjuna would, provided he is qualified. When this happens, a sacrifice of knowledge, a jnyaana yajnya takes place. As we have seen in an earlier chapter, the sacrifice of knowledge is considered the foremost type of sacrifice that anyone can undertake. Study of the Gita, then, becomes the highest kind of sacrifice.

।। हिंदी समीक्षा ।।

जो भी कोई, जो मनुष्य, हम दोनों के संवादरूप इस धर्मयुक्त गीता ग्रन्थ को पढ़ेगा, उसके द्वारा यह होगा कि मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊँगा, विधियज्ञ, जपयज्ञ, उपांशुयज्ञ और मानसयज्ञ, इन चार यज्ञों में ज्ञानयज्ञ मानस है इसलिये श्रेष्ठतम है। अतः उस ज्ञानयज्ञ की समानता से गीता शास्त्र के अध्ययन की स्तुति करते हैं अथवा यों समझो कि यह फल विधि है यानी इसका फल देवता दिविषयक ज्ञानयज्ञ के समान होता है। उस अध्ययन से मैं ( ज्ञानयज्ञद्वारा ) पूजित होता हूँ, ऐसा मेरा निश्चय है।

ये दो श्लोक 70 और 71 शिष्य स्थूति या शिष्य महिमा हैं। और भगवान कृष्ण विद्यार्थियों को दो श्रेणियों में विभाजित करते हैं। एक गीता का योग्य और गंभीर विद्यार्थी है; गंभीर का अर्थ है प्रतिबद्ध विद्यार्थी, और दूसरे प्रकार का विद्यार्थी अप्रशिक्षित है और इसलिए केवल आकस्मिक विद्यार्थी है। इसलिए जो गीता के प्रति आकस्मिक दृष्टिकोण रखता है, ऐसा विद्यार्थी दूसरे प्रकार का हीन है

-और योग्य विद्यार्थी के अध्ययन को कृष्ण अध्ययनम कहते हैं;

-और अयोग्य विद्यार्थी के अध्ययन को कृष्ण श्रवणम कहते हैं।

अध्ययनम का अर्थ है गंभीर व्यवस्थित अध्ययन, श्रवणम का अर्थ है आकस्मिक श्रवण, जिसमें केवल यह विचार होता है कि मेरे पास कुछ अच्छे विचार आएं; आदि। इसलिए यह भी एक अन्य दृष्टिकोण है; आकस्मिक, शौक़ीन दृष्टिकोण।

श्रीकृष्ण बार-बार दोहराते हुए अर्जुन से कहते हैं कि वह अपनी बुद्धि उन्हें समर्पित कर दे (श्लोक 8.7, 12.8)। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग बंद कर दें। बल्कि इसका विपरीत अर्थ यह है कि हम अपनी उत्कृष्ट क्षमता के साथ-साथ अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हैं, हमारे लिए जो भगवान की इच्छा है, उसका परीक्षण करेंगे, इसे हम भगवदगीता के संदेश से समझ सकते हैं। इसलिए वे जो इस पवित्र संवाद का अध्ययन करते हैं वे अपनी बुद्धि के साथ भगवान की पूजा करते हैं।

गीता के समस्त उपदेष्टाओं को गौरवान्वित करने के पश्चात्, अब भगवान् श्रीकृष्ण उन विद्यार्थियों की भी प्रशंसा करते हैं, जो इस पवित्र भगवद्गीता का पठन करते हैं। अनन्तस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण और परिच्छिन्न जीवरूप अर्जुन के इस संवादरूप जीवन के तत्त्वज्ञान का अपना एक प्रबल आकर्षण है। जो लोग केवल इसका सतही पठन करते हैं, वे भी शनै शनै इस की पावन गहराइयों में खिंचे चले जाते हैं। ऐसा पाठक अनजाने में ही आत्मदेव की तीर्थयात्रा पर चल पड़ता है और फिर स्वाभाविक ही है कि ज्ञानयज्ञ के द्वारा वह आत्मविकास प्राप्त करता है, कर्मकाण्ड की यज्ञविधि में, एक यज्ञकुण्ड में अग्नि प्रज्वलित करके उस में अग्नि देवता का आह्वान किया जाता है। तत्पश्चात् यजमान उसमें द्रव्यरूप आहुतियाँ अर्पण करता है। इसी साम्य से, गीता में इस मौलिक शब्द ज्ञानयज्ञ का प्रयोग किया गया है। अध्यात्मशास्त्रों के अध्ययन तथा उनके तात्पर्यार्थ पर चिन्तन मनन करने से साधकों के मन में ज्ञानाग्नि प्रज्वलित होती है। इस ज्ञानाग्नि में एक विवेकी साधक अपने अज्ञान, मिथ्या धारणाएं एवं दुष्प्रवृत्तियों की आहुतियाँ प्रदान करता है। रूपक की भाषा में प्रयुक्त इस शब्द ज्ञानयज्ञ का यही आशय है। इसलिए, जो साधक गण श्रवण, मनन और निदिध्यासन के द्वारा प्रज्वलित ज्ञानाग्नि में अपने अहंकार, स्वार्थ एवं अन्य वासनाओं की आहुतियां देकर शुद्ध हो जाते हैं, वे पुरुष निश्चय ही ईश्वर के महान पूजक और भक्त है। वे सर्वथा अभिनन्दन के पात्र हैं।

गीता में वेदों तथा उपनिषदोंका सार और भगवान् के हृदयका असली भाव है, जिस को धारण करने से मनुष्य भयंकर से भयंकर परिस्थिति में भी अपने मनुष्य जन्म के ध्येय को सुगमतापूर्वक सिद्ध कर सकता है। प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति आने पर भी घबराये नहीं, प्रत्युत प्रतिकूल परिस्थिति का आदर करते हुए उसका सदुपयोग करे अर्थात् अनुकूलता की इच्छा का त्याग करे क्योंकि प्रतिकूलता पहले किये पापों का नाश करने और आगे अनुकूलता की इच्छा का त्याग करने के लिये ही आती है। अनुकूलता की इच्छा जितनी ज्यादा होगी, उतनी ही प्रतिकूल अवस्था भयंकर होगी। अनुकूलता की इच्छा का ज्योंज्यों त्याग होता जायगा,  त्योंत्यों अनुकूलता का राग और प्रतिकूलता का भय मिटता जायगा। राग और भय, दोनों के मिटने से समता आ जायगी। समता परमात्मा का साक्षात् स्वरूप है। गीता में समता की बात विशेषता से बतायी गयी और गीता ने इसी को योग कहा है। इस प्रकार कर्मयोग, ज्ञानयोग भक्तियोग, ध्यानयोग, प्राणायाम आदि की विलक्षण विलक्षण बातों का इस में वर्णन हुआ है।

गीता का पाठ जो नही समझता है, वह भी यदि करता है तो उस के लाभ को हम एक प्रसंग से समझते है। विदेश में किसी जगह एक जलसा हो रहा था। उस में बहुत से लोग इकट्ठे हुए थे। एक पादरी उस जलसे में एक लड़के को ले आया। वह लड़का पहले नाटक में काम किया करता था। पादरी ने उस लड़के को दस पन्द्रह मिनट का एक बहुत बढ़िया व्याख्यान सिखाया। साथ ही ढंग से उठना, बैठना, खड़े होना, इधर उधर ऐसा ऐसा देखना आदि व्याख्यान की कला भी सिखायी। व्याख्यान में बड़े ऊँचे दर्जे की अंग्रेजी का प्रयोग किया गया था। व्याख्यान का विषय भी बहुत गहरा था। पादरी ने व्याख्यान देने के लिये उस बालक को मेज पर खड़ा कर दिया। बच्चा खड़ा हो गया और बड़े मिजाज से दायें बायें देखने लगा और बोलने की जैसी जैसी रिवाज है, वैसे वैसे सम्बोधन देकर बोलने लगा। वह नाटक में रहा हुआ था, उस को बोलना आता ही था अतः वह गंभीरता से, मानो अर्थों को समझते हुए की मुद्रा में ऐसा विलक्षण बोला कि जितने सदस्य बैठे थे, वे सब अपनी अपनी कुर्सियों पर उछलने लगे। सदस्य इतने प्रसन्न हुए कि व्याख्यान पूरा होते ही वे रुपयों की बौछार करने लगे। अब वह बालक सभा के ऊपर ही ऊपर घुमाया जाने लगा। उस को सब लोग अपने अपने कन्धों पर लेने लगे। परन्तु उस बालक को यह पता ही नहीं था कि मैंने क्या कहा है वह तो बेचारा ज्यादा पढ़ालिखा न होने से अंग्रेजी के भावों को भी पूरा नहीं समझता था, पर सभावाले सभी लोग समझते थे। इसी प्रकार कोई गीता का अध्ययन करता है, पाठ करता है तो वह भले ही उस के अर्थ को, भावों को न समझे, पर भगवान् तो उसके अर्थ को, भावों को समझते हैं। इसलिये भगवान् कहते हैं कि मैं उस के अध्ययनरूप, पाठरूप ज्ञानयज्ञ से पूजित हो जाता हूँ। सभा में जैसे बालक के व्याख्यान से सभापति तो खुश हुआ ही, पर उस के साथ साथ सभासद् भी बड़े खुश हुए और उत्साहपूर्वक बच्चे का आदर करने लगे, ऐसे ही गीता पाठ करनेवाले से भगवान् ज्ञानयज्ञ से पूजित होते हैं तथा स्वयं वहाँ निवास करते हैं, साथ ही साथ प्रयोग आदि तीर्थ, देवता, ऋषि, योगी, दिव्य नाग, गोपाल, गोपिकाएँ, नारद, उद्धव आदि भी वहाँ निवास करते हैं। अतः गीता कहने वाले से ज्यादा धन्य वो लोग है, जो गीता को अपनी साम्य बुद्धि से समझते है।

अब इस ज्ञान के श्रोता की भी प्रशंसा करते हुए उसे प्राप्त होने वाले फल को बताते हैं।

।। हरि ॐ तत सत ।। गीता – 18.70 ।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

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