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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  01.04-06 ।।

।। अध्याय 01. 04 -06 ।।

श्रीमद्भगवद्गीता 1.4-6

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि

युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥4।।

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः ॥5।।

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥6।।

“atra śūrā maheṣv-āsā,

bhīmārjuna-samā yudhi..I

yuyudhāno virāṭaś ca,

drupadaś ca mahā-rathaḥ।।4।।”

“dhṛṣṭaketuś cekitānaḥ,

kāśirājaś ca vīryavān..I

purujit kuntibhojaś ca

śaibyaś ca nara-puńgavaḥ।।5।।”

“yudhāmanyuś ca vikrānta,

uttamaujāś ca vīryavān..I

saubhadro draupadeyāś ca,

sarva eva mahā-rathāḥ।।6।।”

भावार्थ : 

इस युद्ध में भीम तथा अर्जुन के समान अनेकों महान शूरवीर और धनुर्धर है, युयुधान, विराट और द्रुपद जैसे भी महान योद्धा  है। धृष्टकेतु, चेकितान तथा काशीराज जैसे महान शक्तिशाली और पुरुजित्, कुन्तीभोज तथा शैब्य जैसे मनुष्यों मे श्रेष्ठ योद्धा भी है। युधामन्यु जैसे महान पराक्रमी तथा उत्तमौजा जैसे अत्यन्त शक्तिशाली, सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के पुत्रों सहित ये सभी महान योद्धा हैं॥ ४-६॥

Meaning:

This army has mighty archers such as Yuyudhaana, King Viraata and Drupada who are equal to Bheema and Arjuna in battle. Other powerful warriors include Dhrishtaketu, Chekitaana, the gallant king of Kashi, Purujit, Kuntibhoja, Yuyudhaana, Uttamauja, Abhimanyu and all the sons of Draupadi.

Explanation:

Duryodhana continued his attempt to incite Drona to fight aggressively against the opposing army by calling out the mighty warriors on the other side. He chose each name carefully to elicit a reaction from Drona, since each of these warriors had a history with Drona. The names of the warriors are not important to understanding the Gita, so no need to worry if you cannot remember these names.

First he described how powerful they are by comparing them with Bhim and Arjun and called them shura and maheshvasa. One who can hold vielding powerful bows and hold arrow are called Mahaeshvasa and who can single handed fight with 10000 soilders called Sura. According to each chairot, warrior is called rathi and maharathi.

Yuyudhaana was Arjuna’s top student, and Duryodhana wanted to point out that although Arjuna’s top student was fighting on his teacher’s side, Drona’s top most liked student Arjuna was fighting against his teacher. Drupada also was someone that Drona disliked, as was pointed out earlier. Dhristaketu’s father had been killed by Krishna, yet he was on the side of the Pandavas. Chekitaana was the only Yadava warrior not taking the side of the Kauravas.

The king of Kashi was an exceptionally gallant warrior, and took the side of the Pandavas. Yudhamanyu and Uttamauja were exceptional warriors from the Paanchaala kingdom. Purujit and Kuntibhoja were Kunti’s maternal brothers who were also related to the Kauravas, but chose the side of the Pandavas. Shaibya was Yudhishtira’s father-in-law, similarly related to the Kauravas. Abhimanyu, Arjuna’s son, was well versed in the art of breaking military formations. Duryodhana disliked Draupadi immensely, so her sons were pointed out as well.

We begin to see how interrelated the warring parties were. Some were friends who turned into enemies, some were relatives who chose sides, and some like Drona were equally loving to both sides, but had to choose one based on their duty to the throne and the kingdom.

It is a reminder that nothing in our lives stays the same. A relationship that gives you lot of joy today, could in a matter of seconds turn into a sorrowful relationship at some point.

।। हिंदी समीक्षा ।।

यह आवश्यक नही की गीता के इन योद्धाओं के नाम आप को याद हो या आप गीता पढ़ने के लिए इन्हे याद रखे, किन्तु जब वक़्त बदलता है तो अपने ही अपने विरुद्ध और अपने ही साथ, यह सब अपनी ही जान पहचान के लोग होते है। घर, समाज, व्यापार आदि में स्वार्थ, मोह, क्रोध आदि से जो झगड़े आदि होते है, वह अपनो के बीच में होते है।

व्यक्ति जब अपना आत्म विस्वास खो चुका होता है तो अपने साथ खड़े लोगो को अपने विरुद्ध खड़े लोगो के प्रति उसकाने का काम करता है। दुर्योधन की मानसिक स्थिति कुछ ऐसी ही है। दुर्योधन के साथ देने और अर्जुन के साथ देने वाले लोगो के मध्य आपसी कोई दुश्मनी चाहे न भी, किंतु आप के साथ खड़ा व्यक्ति आप को आप के विरुद्ध खड़े व्यक्ति के पुराने प्रसंग या आप की भावनाओ के आधार पर आप को उन के विरुद्ध और अधिक भड़काता है। इस का कारण उस का भय है कि जिस के साथ में खड़ा हूं कहीं यह पाला न पलट कर उस तरफ न खड़ा हो जाए।

जिन से  बाण चलाये जाते हैं, फेंके जाते हैं उनका नाम इष्वास अर्थात् धनुष है। ऐसे बड़े बड़े इष्वास (धनुष) जिनसे पास हैं वे सभी महेष्वास हैं। तात्पर्य है कि बड़े धनुषों पर बाण चढ़ाने एवं प्रत्यञ्चा खींचने में बहुत बल लगता है। जोर से खींचकर छोड़ा गया बाण विशेष मार करता है। ऐसे बड़े बड़े धनुष पास में होने के कारण ये सभी बहुत बलवान् और शूरवीर हैं। ये मामूली योद्धा नहीं हैं। युद्ध में ये भीम और अर्जुन के समान हैं अर्थात् बल में ये भीम के समान और अस्त्रशस्त्र की कला में ये अर्जुन के समान हैं।

युयुधान(सात्यकि) ने अर्जुन से अस्त्रशस्त्र की विद्या सीखी थी। इसलिये भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा दुर्योधन को नारायणी सेना देने पर भी वह कृतज्ञ होकर अर्जुन के पक्ष में ही रहा दुर्योधन के पक्ष में नही गया। द्रोणाचार्य के मन में अर्जुन के प्रति द्वेषभाव पैदा करने के लिये दुर्योधन महारथियों में सब से पहले अर्जुन के शिष्य युयुधान का नाम लेता हैं। तात्पर्य है कि इस अर्जुन को तो देखिये इस ने आप से ही अस्त्रशस्त्र चलाना सीखा है और आपने अर्जुन को यह वरदान भी दिया है कि संसार मे तुम्हारे समान और कोई धनुर्धर न हो ऐसा प्रयत्न करूँगा । इस तरह आप ने तो अपने शिष्य अर्जुन पर इतना स्नेह रखा है पर वह कृतघ्न होकर आप के विपक्ष में लड़ने के लिये खड़ा है जबकि अर्जुन का शिष्य उसी के पक्ष में खड़ा है।

युयुधान महाभारत के युद्ध में न मर कर यादवों के आपसी युद्ध में मारे गये थे।

विराटश्च   जिस के कारण हमारे पक्ष का वीर सुशर्मा अपमानित किया गया आप को सम्मोहन अस्त्र से मोहित होना पड़ा और हम लोगों को भी जिस की गायें छोड़कर युद्ध से भागना पड़ा वह राजा विराट आप के प्रतिपक्ष में खड़ा है।

राजा विराट के साथ द्रोणाचार्य का ऐसा कोई वैरभाव या द्वेषभाव नहीं था परन्तु दुर्योधन यह समझता है कि अगर युयुधान के बाद मैं द्रुपद का नाम लूँ तो द्रोणाचार्य के मन में यह भाव आ सकता है कि दुर्योधन पाण्डवों के विरोध में मेरे को उकसा कर युद्ध के लिए विशेषता से प्रेरणा कर रहा है तथा मेरे मन में पाण्डवों के प्रति वैरभाव पैदा कर रहा है। इसलिये दुर्योधन द्रुपद के नाम से पहले विराट का नाम लेता है जिस से द्रोणाचार्य मेरी चालाकी न समझ सकें और विशेषता से युद्ध करें।

राजा विराट उत्तर श्वेत और शंख नामक तीनों पुत्रों सहित महाभारतयुद्ध में मारे गये।

आप ने तो द्रुपद को पहले की मित्रता याद दिलायी पर उस ने सभा में यह कह कर आप का अपमान किया कि मैं राजा हूँ और तुम भिक्षुक हो अतः मेरी तुम्हारी मित्रता कैसी तथा वैरभाव के कारण आप को मारने के लिये पुत्र भी पैदा किया वही महारथी द्रुपद आप से लड़ने के लिये विपक्ष में खड़ा है।

राजा द्रुपद युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये।

यह धृष्टकेतु कितना मूर्ख है कि जिस के पिता शिशुपाल को कृष्ण ने भरी सभा में चक्र से मार डाला था उसी कृष्ण के पक्ष में यह लड़ने के लिये खड़ा है। 

धृष्टकेतु द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये।

सब यादव सेना तो हमारी ओर से लड़ने के लिये तैयार है और यह यादव चेकितान पाण्डवों की सेना में खड़ा है।चेकितान दुर्योधनके हाथ से मारे गये।

यह काशिराज बड़ा ही शूरवीर और महारथी है। यह भी पाण्डवों की सेना में खड़ा है। इसलिये आप सावधानी से युद्ध करना क्योंकि यह बड़ा पराक्रमी है।

काशिराज महाभारतयुद्ध में मारे गये।

यद्यपि पुरुजित् और कुन्तिभोज ये दोनों कुन्ती के भाई होने से हमारे और पाण्डवों के मामा हैं तथापि इनके मन में पक्षपात होने के कारण ये हमारे विपक्ष में युद्ध करने के लिये खड़े हैं।

पुरुजित् और कुन्तिभोज दोनों ही युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये।

यह शैब्य युधिष्ठिर का श्वशुर है। यह मनुष्यों में श्रेष्ठ और बहुत बलवान् है। परिवार के नाते यह भी हमारा सम्बन्धी है। परन्तु यह पाण्डवों के ही पक्ष में खड़ा है। 

पाञ्चालदेश के बड़े बलवान् और वीर योद्धा युधामन्यु तथा उत्तमौजा मेरे वैरी अर्जुन के रथ के पहियों की रक्षा में नियुक्त किये गये हैं। आप इन की ओर भी नजर रखना।

रात में सोते हुए इन दोनों को अश्वत्थामा ने मार डाला।

यह कृष्ण की बहन सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु है। यह बहुत शूरवीर है। इस ने गर्भ में ही चक्रव्यूहभेदन की विद्या सीखी है। अतः चक्रव्यूहरचना के समय आप इस का खयाल रखें।

युद्ध में दुःशासनपुत्र के द्वारा अन्यायपूर्वक सिर पर गदा का प्रहार करने से अभिमन्यु मारे गये।

युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल और सहदेव इन पाँचों के द्वारा द्रौपदी के गर्भ से क्रमशः प्रतिविन्ध्य सुतसोम श्रुतकर्मा शतानीक और श्रुतसेन पैदा हुए हैं। इन पाँचों को आप देख लीजिये। द्रौपदी ने भरी सभा में मेरी हँसी उड़ाकर मेरे हृदयको जलाया है उसी के इन पाँचों पुत्रों को युद्ध में मार कर आप उस का बदला चुकायें। 

रात में सोते हुए इन पाँचों को अश्वत्थामा ने मार डाला।

ये सब के सब महारथी हैं। जो शास्त्र और शस्त्रविद्या दोनों में प्रवीण हैं और युद्ध में अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओं का संचालन कर सकता है उस वीर पुरुष को महारथी कहते हैं   ऐसे बहुत से महारथी पाण्डवसेनामें खड़े हैं।

गीता की पृष्ठभूमि में प्रथम अध्याय में अनेक वीरो का परिचय एवम युद्ध भूमि का वर्णन क्यों किया गया। तो हमे ज्ञात होना चाहिए कि हर योद्धा असामान्य किसी न किसी निपुणता से परिपूर्ण था, इसलिये जीवन के संघर्ष में हमारे साथ कौन है और कौन नही, क्या इस के भी कोई मायने होते है?

दुर्योधन राजसी-तामसी वृति का व्यक्तित्व था, अतः उस को समझना और जानना भी गीता में जरूरी था, जब कि अर्जुन सात्विक-राजसी प्रवृति का व्यक्तित्व था। अतः दोनो युद्ध को किस प्रकार देखते है, इस को समझे बिना हम गीता को नही समझ सकते।

द्रोणाचार्य के मन में पाण्डवों के प्रति द्वेष पैदा करने और युद्ध के लिये जोश दिलाने के लिये दुर्योधन ने पाण्डवसेना की विशेषता बतायी। दुर्योधन के मन में विचार आया कि द्रोणाचार्य पाण्डवों के पक्षपाती हैं ही अतः वे पाण्डवसेना की महत्ता सुनकर मेरे को यह कह सकते हैं कि जब पाण्डवों की सेना में इतनी विशेषता है तो उन के साथ तू सन्धि क्यों नहीं कर लेता ऐसा विचार आते ही दुर्योधन आगे के तीन श्लोकों में अपनी सेना की विशेषता बताता है।

।। हरि ॐ तत सत।। 01.4-6।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

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