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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  15.13 II Additional II

।। अध्याय      15.13 II विशेष II

।। हिंग्स बोसोन, बिग बैंग और गॉड पार्टिकल और सनातन धर्म में वेद ।। विशेष – गीता 15.13 ।।

अध्याय 13.29 के विशेष में हम ने नासदिय सूक्त को पढ़ा था। यह नासदिय सूक्त ब्रह्म के विषय और ओजस को लेकर है, जिस से इस सृष्टि की रचना हुई। NASA में इन सूक्तों से स्पेस अध्ययन करने के सूत्र मिले। बिग बैंग, हिंग्स बोसोन और GOD Partical के विचार और सिद्धांत भी इन्ही सूक्तों से मिलते है। इसलिए हम अपने ऋषि मुनियों को जिस स्वरूप में सोचते है वे उस से अधिक वैज्ञानिक और दार्शनिक थे। उन की पुस्तके जो हमे वेद, उपनिषद और स्मृति ग्रंथ में प्राप्त हुई है, वे अध्ययन कर के ज्ञान प्राप्ति का स्त्रोत है। किंतु हम आस्था और विश्वास में अध्ययन की बजाय, चमत्कार पर विश्वास करते है और पश्चिम देश उस का अध्ययन कर के अन्वेषण और खोज करते है। फिर जब वे किसी वस्तु को खोज लेते है, तो हमे भी पता चलता है, यह ज्ञान हमारी ही पुस्तकों से उन्हें प्राप्त हुआ है।

आज भी सामान्य सनातन धर्मी हिंदू स्वार्थ और लोभ में अपने ज्ञान को दुनिया में नहीं देता और इस से वह लुप्त होता जा रहा है। अब समाज में जो ज्ञान बटता है, वह सुन सुनाया या चिंतन रहित पढ़ा हुआ है। इसलिए ज्ञानी सभी है परंतु चिंतन और निदिध्यासन के अभाव में वह चरित्र का भाग भी नहीं है और उस से किसी को लाभ भी नही है। अतः हमारे शास्त्रों के अध्ययन के विषय में गंभीरता से अध्ययन प्रणाली का होना आवश्यक है।

बिग बैंग

1927 में जॉर्जिस लेमाइटर ने बिग बैंग के सिद्धांत का प्रस्ताव रखा था। 1929 में ऐडविन हबल नाम के वैज्ञानिक ने इस सिद्धांत का विश्लेषण और अध्ययन किया। स्टीफन हॉकिंग ने इसे यूं समझाया, करीब 15 अरब साल पहले पूरा ब्रह्मांड एक बिंदु के रूप में सिमटा हुआ था या यूं समझ लीजिए कि पूरी दुनिया की रचना जिन कणों और ऊर्जा के कारण संभव हुई, वह एक छोटे से गेंद जैसी चीज में समाए हुए थे। फिर अचानक से एक घटना हुई और बिंदु में मौजूदा कण हर तरफ फैल गए। ये कण तेजी से एक-दूसरे से दूर भागने लगे। इस घटना को ही बिग बैंग के नाम से जाना जाता है। वैसे बिग बैंग को कुछ लोग महाविस्फोट समझ लेते हैं और कहते हैं कि एक महाविस्फोट से दुनिया का जन्म हुआ है। लेकिन यह सही नहीं है। हकीकत यह है कि अचानक ब्रह्मांड के सिमटे हुए बिंदु का विस्तार शुरू हो गया था जो अब तक जारी है।

वेदों में यह कहा गया है कि वह अकेला ही अव्यक्त स्वरूप में था और फिर उस में एक से अनेक होने का संकल्प आया और इस सृष्टि की रचना हुई।

हिग्स बोसोन

हिग्स बोसॉन (Higgs boson) एक मूल कण है जिसकी प्रथम परिकल्पना 1964 में दी गई। और इसका प्रायोगिक सत्यापन 14 मार्च 2013 को किया गया। इस आविष्कार को एक ‘यादगार’ कहा गया क्योंकि इससे हिग्स क्षेत्र की पुष्टि हो गई। कण भौतिकी के मानक मॉडल द्वारा इसके अस्तित्व का अनुमान लगाया गया है। वर्तमान समय तक इस प्रकार के किसी भी कण के विद्यमान होने का ज्ञान नहीं है। हिग्स बोसॉन को कणो के द्रव्यमान या भार के लिये जिम्मेदार माना जाता है। प्रायः इसे अंतिम मूलभूत कण माना जाता है।

कर्णाद ऋषि के न्यायिक शास्त्र का परमाणुवाद का ही सिद्धांत है। वेदांत जिसे परमात्मा कहता है, जो संपूर्ण सृष्टि का आधार है, उस की परिकल्पना अव्यक्त और सूक्ष्मतम कण से ही की गई है।

दुनिया में मौजूद सभी चीजों का निर्माण कणों से हुआ है। कणों ने मिलकर चीजों को बनाया। बात इस तरह से है, हमारे ब्रह्मांड में मौजूद सभी चीजें ऐटम से मिलकर बनी हैं। एक ऐटम इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन नाम के तीन कणों से बना होता है। ये कण भी सबऐटॉमिक पार्टिकल से मिलकर बने होते हैं जिनको क्वार्क कहा जाता है। इन कणों का द्रव्यमान अब तक रहस्य बना रहा है। प्रोटॉन और न्यूट्रॉन जैसे कणों में द्रव्यमान यानी वजन होता है जबकि फोटॉन में नहीं होता है। यह एक गुत्थी थी कि आखिर कुछ कणों में वजन होता है जबकि कुछ में नहीं। आखिर ऐसा क्यों होता है, इस गुत्थी को पीटर हिग्स और पांच अन्य वैज्ञानिकों ने साल 2012 में सुलझाने की कोशिश की। उन्होंने हिग्स बोसोन का सिद्धांत दिया। उनके सिद्धांत के मुताबिक, बिग बैंग के तुरंत बाद किसी भी कण में कोई वजन नहीं था। जब ब्रह्मांड ठंडा हुआ और तापमान एक निश्चित सीमा के नीचे गिरता चला गया तो शक्ति की एक फील्ड पूरे ब्रह्मांड में बनती चली गई। उस फील्ड के अंदर बल था और उसे हिग्स फील्ड के नाम से जाना गया। उन फील्ड्स के बीच कुछ कण थे जिनको पीटर हिग्स के सम्मान में हिग्स बोसोन के नाम से जाना गया। इसे ही गॉड पार्टिकल भी कहा जाता है। उस सिद्धांत के मुताबिक, जब कोई कण हिग्स फील्ड के प्रभाव में आता है तो हिग्स बोसोन के माध्यम से उसमें वजन आ जाता है। जो कण सबसे ज्यादा प्रभाव में आता है, उसमें सबसे ज्यादा वजन होता है और जो प्रभाव में नहीं आता है, उसमें वजन नहीं होता है। उस समय तक सिर्फ यह अनुमान था कि हिग्स बोसोन नाम का कण ब्रह्मांड में मौजूद है लेकिन जुलाई 2012 में स्विटजरलैंड में वैज्ञानिकों ने हिग्स कण के खोजने की घोषणा की।

गॉड पार्टिकल क्यों अहम है?

हमारी इस दुनिया की रचना में भार या द्रव्यमान का खास महत्व है। भार या द्रव्यमान वह चीज है जिसको किसी चीज के अंदर रखा जा सकता है। अगर कोई चीज खाली रहेगी तो उसके परमाणु अंदर में घूमते रहेंगे और आपस में जुड़ेंगे नहीं। जब परमाणु आपस में जुड़ेंगे नहीं तो कोई चीज बनेगी नहीं। जब भार आता है तो कण एक-दूसरे से जुड़ता है जिससे चीजें बनती हैं। ऐसा मानना है कि इन कणों के आपस में जुड़ने से ही चांद, तारे, आकाशगंगा और हमारे ब्रह्मांड की अन्य चीजों का निर्माण हुआ है। अगर कण आपस में नहीं मिलते तो इन चीजों का अस्तित्व नहीं होता और कणों को आपस में मिलाने के लिए भार जरूरी है।

यूं नाम पड़ा गॉड पार्टिकल

अमेरिका के एक वैज्ञान लेऑन लीडरमैन ने 1993 में एक पुस्तक लिखी थी। उस पुस्तक में उन्होंने कणों के द्रव्यमान और परमाणु के बनने की प्रक्रिया को समझाया था। उन्होंने किताब का नाम The Goddamn Particle रखा था। लेकिन प्रकाशक को यह नाम पसंद नहीं आया तो उन्होंने इसका नाम बदलकर The God Particle कर दिया। इस तरह से इसको गॉड पार्टिकल कहा जाने लगा। इसका भगवान से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल इंग्लिश के शब्द Goddamn को गुस्सा या चिड़चिड़ाहट व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसी चीज को ध्यान में रखते हुए लीडरमैन ने गॉडडैम का इस्तेमाल किया ताकि वह यह दिखा सके कि इस कण को खोजने में कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा।

यदि हम वेद के ज्ञान से पढ़ कर समझे तो परब्रह (जिसे अभी हम गीता पुरुषोत्तम योग में पढ़ रहे है), वर्षों पहले ही ऋषि मुनियों ने खोज के अपनी वाणी में व्यक्त किया। वेद एवम उपनिषद पूर्णतः प्रमाणित ग्रंथ है, जिसे हम अध्यात्म से ज्यादा एवम वैज्ञानिक या अनुसंधान की दृष्टि से कम पढ़ते है। इस ज्ञान पर अनुसंधान की पूर्ण आवश्यकता है। धर्म का मार्ग आस्था, श्रद्धा, विश्वास ही नही ज्ञान एवम विवेक भी है। इस के अभाव में आस्था, श्रद्धा एवम विश्वास मात्र कर्मकांड एवम अंधविश्वास बन जाता है। इसलिये गीता विवेक का ज्ञान भी है जो अर्जुन को मोह, अंधविश्वास से मुक्त करती है। शंकराचार्य रचित विवेक चूड़ामणि विवेक विचार किस प्रकार करना चाहिये, के लिये एक उत्तम पुस्तक है।

धर्म का आधार श्रद्धा, भक्ति, प्रेम और विश्वास होता है किंतु जब यह श्रद्धा, भक्ति, प्रेम और विश्वास ज्ञान से परिपूर्ण न हो तो इस का दुरुपयोग होने भी देरी नहीं होती। ज्ञान, विज्ञान, अनुभव एवम प्रमाणिकता के आधार पर को हमे स्वीकार करने और पालन करने को ब्रह्मसंध या तत्वविद महान ऋषि – मुनियों ने कहा है, उसे हम मात्र श्रद्धा और विश्वास में बिना अभ्यास और अध्यास के करते रहे तो समस्त क्रियाएं कर्मकांड और अंधविश्वास में परिवर्तित हो जाती है। परमात्मा कहते है जो मुझे अनन्य भाव से पूजते है उन को ज्ञान मैं देता हुं। किंतु जब लोग भक्ति और पूजा स्वार्थ और कामना में करते है तो यह अंधविश्वास और कर्मकांड हो जाता है। हम यह अवश्य कह सकते है कि कुछ नही करने से धीरे धीरे ही सही, जो इस मार्ग में कदम रखता है, वह परमात्मा की अनुकंपा से कभी भी मोह, राग – द्वेष से मुक्त हो सकता है।

सनातन धर्म किसी व्यक्ति विशेष के पूजन या समर्पण का धर्म न हो  कर, वर्षो के ऋषि – मुनियों के दार्शनिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और प्रामाणिक दर्शन और विचारो। का संग्रह है। इस में प्रत्येक विचार को समान सम्मान देने से, इस का विस्तार भी होता गया। इसलिए इस धर्म में निर्माण, समाज, विज्ञान, संगीत, नृत्य, औषधि, रसायन आदि समस्त विषय का अध्ययन किया जाता है। आधुनिक युग में GOD PARTICAL का सिद्धांत से ले कर पूर्व के बैटरी, रॉकेट, विमान आदि समस्त की जानकारी वेदों में उपलब्ध है,किंतु हम सरल जीवन के आदि होने से, इन का गहन अध्ययन नही करते।

हमारे ग्रंथो को हम ने अध्ययन की पुस्तक न समझते हुए, पूजन की विषय वस्तु बना दिया। कालांतर में राग – द्वेष में हमारे प्रबुद्ध वर्ग ने अपने वर्ण के अनुसार अपने दायित्व का पालन न करते हुए, स्वार्थ, लोभ और अपनी जातीय शत्रुता से आक्रमणकारियो को इस देश की संस्कृति पर हमला कर के गुलामी में जकड़ दिया। सैकड़ों शताब्दियों की गुलामी ने हमारी विचारधारा को कुंठित कर के हमे ज्ञान के विषय में शिक्षित होने नही दिया और ज्ञान का अर्थ हम समाज में आर्थिक निर्भरता ही समझने लग गए। फिर भी अध्यात्म एक स्वाभाविक मानसिक दशा है, इसलिए सात्विक विचार धारा हमे प्रभावित करती है और हम उस के विचार आदान प्रदान करते रहते है। पश्चिम देशों में हमारे बचे हुए प्राचीन ग्रंथो को अध्ययन का विषय बनाया और उस पर शोध करते हुए, हम से कही आगे निकल गए।

गॉड पार्टिकल का पता लगाने के लिए दुनियाभर के 111 देशों के हजारों वैज्ञानिक पिछले 40 सालों से जद्दोजहद कर रहे हैं। ये वैज्ञानिक फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर जेनेवा में सबसे बड़ी प्रयोगशाला में काम कर रहे हैं। यह प्रयोगशाला जमीन के 300 फीट नीचे बनी है। प्रयोग 27 किमी लंबे लार्ज हेड्रोन कोलाइडर (एलएचसी) में चल रहा है। एलएचसी प्रोजेक्टी पर 10 अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं।

वैज्ञानिक ‘बिग बैंग’ थ्योरी की सच्चाई जानने की कोशिश कर रहे हैं। अब तक माना जाता है कि 13.7 खरब साल पहले हुए महा विस्फोट (बिग बैंग) से ब्रह्मांड अस्तित्व में आया। इसी दौरान एक कण का जन्म हुआ, जिसे हिग्स बोसॉन का नाम दिया गया। हिग्स बोसॉन से ही सभी चीजों की उत्पत्ति हुई है। एलएचसी में कृत्रिम तरीके से महा विस्फोट की स्थिति पैदा की गई। एलएचसी में आयनों की टक्कर से 10 खरब सेल्सियस का तापमान पैदा किया गया। यह सूरज के केंद्र में मौजूद तापमान से भी लाखों गुना ज्यादा है।

और आश्चर्य यह की यह सब ऋग्वेद के नसदीय सुक्त जिन को हम पहले पढ़ चुके है, के आधार पर है, जिसे हम नही जानते।

।। हरि ॐ तत सत ।। विशेष गीता 15.13 ।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

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