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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  11.07 II

।। अध्याय      11.07 II

॥ श्रीमद्‍भगवद्‍गीता ॥ 11.7

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्‌ ।

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि ॥

“ihaika-sthaḿ jagat kṛtsnaḿ,

paśyādya sa- carācaram..।

mama dehe guḍākeśa,

yac cānyad draṣṭum icchasi”..।।

भावार्थ: 

हे अर्जुन! तू मेरे इस शरीर में एक स्थान में चर-अचर सृष्टि सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को देख और अन्य कुछ भी तू देखना चाहता है उन्हे भी देख। (७)

Meaning:

Behold this entire universe now, with moving and non- moving (entities), in one place. Also, besides this, O Gudaakesha, see whatever else you desire in my form.

Explanation:

After hearing Shree Krishna’s instructions to behold his form, Arjun wonders where to see it. So Shree Krishna states that it is within the body of the Supreme Divine Personality. There, he will see infinite universes with all their moving and non-moving entities. Every entity exists in the universal form, and so do the events of the past and the future. Arjun will thus be able to see the victory of the Pandavas and the defeat of the Kauravas as an event that is a part of the unfoldment of the cosmic plan for the universe.

Nowadays, it is common for families to capture a wedding with a video as well as with photographs. So when a guest drops by a family that has just concluded a wedding, he is hit with a barrage of photos and a DVD of the wedding that could last three to four hours. The guest cannot refuse this demand because the family wants him to experience the entire wedding “right here, right now”.

So by using the words “now” and “in one place”, Shri Krishna is pointing out the power of the Vishwa roopa or cosmic form. Arjuna is able to view the entire universe in one place, without leaving his chariot. Moreover, he is also able to view events that take millions of years in a split second. And what is he able to view? Everything including entities that move, and entities that are stable.

Now, if someone were to offer us the outcome of all the events that were to take place tomorrow, and if our favourite team was contesting a match tomorrow, we would be most interested in learning the outcome of the match. Knowing that Arjuna was most interested in the outcome of the Mahabharata war, Shri Krishna suggested that even that would be visible in his cosmic form. He refers to Arjuna as “Gudaakesha”, one who has conquered sleep, so that Arjuna would remain alert while watching the cosmic form.

However, with all this going on, there seemed to be no response from Arjuna. What could be the reason? We shall see next.

।। हिंदी समीक्षा ।।

पूर्व श्लोक में 33 कोटि देवताओ और उनचास मरुतगणों का वर्णन करने के पश्चात अर्जुन को विराट विश्वरूप में उन विभूतियो और परमात्मा के एक अंश से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को देखने की इच्छा को ध्यान में रखते हुए, परमात्मा ने उस को अपना सम्पूर्ण स्वरूप दिखाने का आव्हान किया, जिस का वर्णन पूर्व अध्याय में किया गया था।

तू निरालस्य हो कर सावधानी से मेरे विश्वरूप को देख । मैं सम्पूर्ण जगत् को एक अंश से व्याप्त करके स्थित हूँ। मेरे इस शरीर के एक देश (अंश) में चरअचर सहित सम्पूर्ण जगत् को देख। एक देश में देखने का अर्थ है कि तू जहाँ दृष्टि डालेगा, वहीं तेरे को अनन्त ब्रह्माण्ड दीखेंगे। तू मनुष्य, देवता, यक्ष, राक्षस, भूत, पशु, पक्षी आदि चलने फिरनेवाले जङ्गम और वृक्ष, लता घास, पौधा आदि स्थावर तथा पृथ्वी, पहाड़, रेत आदि जडसहित सम्पूर्ण जगत् को अद्य अभी, इसी क्षण देख ले, इस में देरी का काम नहीं है।

ब्रह्माण्ड को केवल धूल का एक गुबार समझें,  व्यास में लगभग एक मीटर, वह कहते हैं कि धूल के एक गुबार की कल्पना करें, जिसका व्यास एक मीटर है;  ठीक है।  व्यास में लगभग एक मीटर.  धूल का हर कण;  एक मीटर में कितने दाने होंगे;  उसमें प्रत्येक धूल कण एक आकाशगंगा है;  वह कहता है कि यह एक आकाशगंगा है;  आप जानते हैं कि आकाशगंगा क्या है;  आकाशगंगा तारों का एक समूह है;  जिसकी दूरी लाखों प्रकाश वर्ष है।  और आप जानते हैं कि प्रकाश वर्ष क्या होता है;  यह एक वर्ष में प्रकाश द्वारा तय की गई दूरी है;  और क्या आप जानते हैं कि प्रकाश एक सेकंड में कितनी दूरी तय करता है;  3 लाख किलोमीटर;  मील नहीं;  3 लाख किलोमीटर;  एक सेकंड में.  तो एक साल में;  जाओ और गणना करो और फिर ऐसे ही इतने प्रकाश वर्ष;  एक आकाशगंगा की दूरी है;  जैसे कि अरबों आकाशगंगाएँ हैं;  कल्पना कीजिए कि वह धूल है।

हम एक साधारण तारे के पास रहते हैं; लाखों आकाशगंगाओं के बीच;  एक आकाशगंगा है जिसे मिल्की वे कहा जाता है;  और आकाशगंगा में लाखों तारे हैं और हमारा सूर्य एक साधारण तारा है;  जो एक सामान्य आकाशगंगा का सदस्य है।  धूल के गुबार में कहीं नगण्य।  हर रात हमें दिखाया जाता है कि ब्रह्मांड की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन हममें से ज्यादातर लोग इसे जाने बिना ही अंधेरे पर पछतावा करते हैं, उसका उपयोग करते हैं या उसका आनंद लेते हैं;  यह ज्ञान लाता है.  यदि आप अंधेरे से सीखने के इच्छुक हैं, तो वे कहते हैं;  यद्यपि इतने सारे तारे हैं;  तारों के बीच एक विशाल खालीपन है।  तो फिर ब्रह्माण्ड का आकार कितना होगा;  जो इन सभी आकाशगंगाओं और सितारों को समायोजित करता है।  और विशाल शून्यता और आकाशगंगाओं वाला यह ब्रह्मांड अंतरिक्ष में समाया हुआ है।  तो स्थान का आकार क्या होना चाहिए;  और वह स्थान भगवान का आकार है।

यदि धूल के बवंडर में उड़ती धूल एक एक आकाश गंगा है, तो परमात्मा का विराट स्वरूप भी उसी प्रकार अनन्त है, जिस में असंख्य आकाश गंगा है, जब हम एक ही आकाश गंगा को नही देख सकते तो असंख्य आकाश गंगा को झांक पाना असंभव है। किन्तु अर्जुन की इच्छा की पूर्ति हेतु परमात्मा अपने सम्पूर्ण स्वरूप को उसे दिखाने के लिये तैयार है। किन्तु मानवीय सीमाओं और उत्सुकता को भी परमात्मा जानते है। इसलिये विराट स्वरूप में वह अर्जुन को अपने स्वरूप को देखने के लिये उत्साहित करते है और एक अंश में सम्पूर्ण सृष्टि देखने को कहते है।

परमात्मा काल से भी परे है। वह काल से नही बंधा है क्योंकि वो काल का भी कर्ता है। इसलिये परमात्मा के लिये काल की कोई गणना नही होती। वह सब का आदि, मध्य और अंत भी है, इसलिये समस्त काल की गणना परमात्मा में एक ही समय मे विद्यमान रहती है। परंतु मनुष्य या जीव का काल खंड पुनर्जन्म, पूर्वजन्म, भूतकाल वर्तमान काल एवम भविष्य काल होता है। हर जीव में जो कुछ भी वो करता है उस का भविष्य जानने की आकांक्षा होती है, इसलिये भगवान् कहते हैं कि तू पूर्वजन्म, पुनःजन्म, भूत, भविष्य, वर्तमान और भी जो कुछ देखना चाहता है, वह भी देख ले। अर्जुन और क्या देखना चाहते थे अर्जुन के मन में सन्देह था कि युद्ध में जीत हमारी होगी या कौरवों की। इसलिये भगवान् कहते हैं कि वह भी तू मेरे इस शरीर के एक अंश में देख ले।

केवल इतना ही नहीं और भी जो कुछ जय पराजय आदि दृश्य जिस के लिये तू हम उन को जीतेंगे या वे हम को जीतेंगे इस प्रकार शङ्का करता था, वह सब या अन्य जो कुछ यदि देखना चाहता हो तो देख ले।

किन्तु अर्जुन विस्मित है, स्तब्ध है, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण उस के गुरु, सखा, सारथी और परमात्मा के रूप पिछले तीन श्लोक में अपने की शरीर मे पश्य कहते हुए विश्वरूप दिखा रहे है और उसे अपने सामने बैठे सारथी कृष्ण के अतिरिक्त कुछ नही दिखता।

भगवान कृष्ण अर्जुन को गुडाकेश कहते है, गुडाकेश यानि जिस ने निंद्रा पर विजय प्राप्त की, मनुष्य को तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता पर भी विजय प्राप्त कर लेना चाहिए। भगवान का यह कथन हमे बताता है कि

प्रथम तो भगवान् उत्साही साधक के साहसी मन को इसके लिए प्रशिक्षित करते हैं कि उसमें जानने की उत्सुकता रूपी अक्षय धन का विकास हो। तत्पश्चात् उनका प्रयत्न है कि यह उत्सुकता तीव्र उत्कण्ठा या जिज्ञासा में परिवर्तित हो जाये। इसके लिए ही वे विश्वरूप में दर्शनीय रूपों का उल्लेख करते हैं। इस युक्ति से साधक का मन पूर्ण उत्कटता से एक ही स्थान पर केन्द्रित हो जाता है। यही इस श्लोक का प्रयोजन है।

द्वितीय, प्रारम्भ मे अर्जुन का प्रयत्न समस्या के समाधान को देखने के लिए अधिक था और अनेकता में व्याप्त एकत्व का साक्षात्कार करने के लिए कम।  विभूतियोग के अध्याय में एक परमात्मा को सब में दिखाया गया था और यहाँ सब को एक परमात्मा में दिखाया जानेवाला है।

अर्जुन जो कुछ भी देखना चाहते थे उस का वर्णन पश्य शब्द के करते हुये परमात्मा ने कर दिया किन्तु जड़ पदार्थ से प्राप्त नेत्र उतने सक्षम नही हो सकते कि वो परमात्मा को देख सके। सारथी के रूप में परमात्मा सभी के साथ  है किंतु उन का दर्शन आत्मा के दिव्य नेत्रों से ही हो सकता है, इसलिये परमात्मा आगे क्या कहते है, पढ़ने के लिये तैयार हो जाये।

।। हरि ॐ तत सत।। 11.07।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

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