।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 10.33 II Additional -2 II
।। अध्याय 10.33 II विशेष -2 II
।। समास ।। विशेष 2 – गीता 10.33 ।।
परमात्मा ने समास में द्वंद समास में अपनी विभूति को देखने को कहा तो द्वंद समास भी समझना जरूरी है।
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि “समास वह क्रिया है, जिसके द्वारा कम-से-कम शब्दों मे अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट किया जाता है।
समास का शाब्दिक अर्थ है- ‘संक्षेप’। समास प्रक्रिया में शब्दों का संक्षिप्तीकरण किया जाता है।
समास के भेद या प्रकार – समास के छ: भेद होते है-
अव्ययीभाव समास – (Adverbial Compound)
तत्पुरुष समास – (Determinative Compound)
कर्मधारय समास – (Appositional Compound)
द्विगु समास – (Numeral Compound)
द्वंद्व समास – (Copulative Compound)
बहुव्रीहि समास – (Attributive Compound)
अव्ययीभाव समास: जिस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे – यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इन में यथा और आ अव्यय हैं।
कुछ अन्य उदाहरण –
आजीवन – जीवन-भर
यथासामर्थ्य – सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम – क्रम के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
हररोज़ – रोज़-रोज़
हाथोंहाथ – हाथ ही हाथ में
रातोंरात – रात ही रात में
प्रतिदिन – प्रत्येक दिन
बेशक – शक के बिना
निडर – डर के बिना
निस्संदेह – संदेह के बिना
प्रतिवर्ष – हर वर्ष
अव्ययीभाव समास की पहचान – इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे – ऊपर के समस्त शब्द है।
तत्पुरुष समास: जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे – तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
कर्म तत्पुरुष
(गिरहकट – गिरह को काटने वाला)
करण तत्पुरुष
(मनचाहा – मन से चाहा)
संप्रदान तत्पुरुष
(रसोईघर – रसोई के लिए घर)
अपादान तत्पुरुष
(देशनिकाला – देश से निकाला)
संबंध तत्पुरुष
(गंगाजल – गंगा का जल)
अधिकरण तत्पुरुष
(नगरवास – नगर में वास)
तत्पुरुष समास के प्रकार
नञ तत्पुरुष समास: जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे -असभ्य, अंत, अनादि
संभवकर्मधारय समास: जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे –
चंद्रमुख -चंद्र जैसा मुख
कमलनयन -कमल के समान नयन
दहीबड़ा – दही में डूबा बड़ा
द्विगु समास : जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे –
नवग्रह – नौ ग्रहों का समूह
दोपहर – दो पहरों का समाहार
त्रिलोक- तीन लोकों का समाहार
चौमासा – चार मासों का समूह
नवरात्र – नौ रात्रियों का
द्वंद्व समास: जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे-
पाप-पुण्य – पाप और पुण्य
अन्न-जल – अन्न और जल
सीता-राम – सीता और राम
खरा-खोटा – खरा और खोटा राधा-कृष्ण – राधा और कृष्ण
बहुव्रीहि समास: जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे
दशानन – दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना – सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीतांबर – पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदर – लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर; कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे – नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे – नील+कंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।.
पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण-
पूर्वपद प्रधान – अव्ययीभाव
उत्तरपद प्रधान – तत्पुरुष, कर्मधारय, द्विगु
दोनों पद प्रधान – द्वंद्व
दोनों पद अप्रधान – बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)
संधि और समास में अंतर: संधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे – देव+आलय = देवालय। समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे – माता-पिता = माता और पिता।
।। हरि ॐ तत सत ।। विशेष 2 – गीता 10.33 ।।
Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)