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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  10.30 II

।। अध्याय      10.30 II

॥ श्रीमद्‍भगवद्‍गीता ॥ 10.30

प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्‌ ।

मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्‌॥

“prahlādaś cāsmi daityānāḿ,

kālaḥ kalayatām aham..।

mṛgāṇāḿ ca mṛgendro ‘haḿ,

vainateyaś ca pakṣiṇām”..।।

भावार्थ: 

मैं सभी असुरों में भक्त-प्रहलाद हूँ, मै सभी गिनती करने वालों में समय हूँ, मैं सभी पश

हूँ, और मैं ही पक्षियों में गरुड़ हूँ। (३०)

Meaning:

Among the demons I am Prahalaad and among the systems of counting I am time. Among animals I am the lion and among the birds I am Vainateya.

Explanation:

The story of Prahalaad is found in the Srimad Bhaagavatam. Son of the demon-king Hiranyakashipu, he was an ardent devotee of Lord Naaraayana. So firm was his devotion that Lord Naaraayana appeared in the form of the half lion half man Narasimha to save Prahalaad from the atrocities committed by his father. Praising the strength of devotion, Shri Krishna says that Ishvara is found in Prahalaad among demons.

I remember the names of all the great bhakthās; and the top most one is Prahlāda; By birth he is asura jāthi; by character he is satva guṇa. From this we also another important thing; jāthi does not make a person great, it is the guṇa that makes a person great; And therefore we can never look down a person based on jaathi, the caste system became notorious because we started looking down upon people purely based on janma; and those people see the so-called brahmanas; who are born from brāhmaṇās; and who are given to lot of vices and I respect a brāhmaṇās, just because he is born a brāhmaṇās, even though he does not have any character, there is something irrational in it; And therefore, jati does not make a person great, but character; and what is the example, Prahlāda was born asura; Rāvaṇa was a brāhmaṇā; Also, it drives home the message that we can change our destiny no matter what kind of family we are born into.

Next, Shri Krishna takes up the systems of counting. Even today there are various forms of such systems including the metric system, the imperial system and so on. The most accurate system, however, is that of time. Everything and everyone in the universe is under the influence of time and cannot escape its impact. So among the counting systems, Ishvara’s foremost expression is that of time.

For those of us who have seen a lion up close, it is no surprise that Shri Krishna finds the lion as prominent among the animals. The king of the jungle is magnificent even if found in a cage. His roar subdues animals that are much larger than he is. The majestic lion is the king of the jungle, and amongst the animals the power of the Lord indeed reveals itself in the lion.

Among the birds, it is Vainateya, also known as Garuda the eagle, who is Ishvara’s finest expression. Garuda was the son of sage Kashyapa and Vinata. He is Lord Vishnu’s mount, emanating the Vedas from his wings as he flies.

So whenever we see someone succeeding despite their weaknesses, when we observe the passage of time, whenever we see animals or birds, we should remember that everything is Ishvara only.

।। हिंदी समीक्षा ।।

पर + आह्लाद अर्थात जो दूसरों के लिये प्रेम करे वो प्रह्लाद मै ही हूँ। आसुरी सम्पद में सर्वथा विपरीत परिस्थितियों में विभिन्न संकट के रहते हुए भी परमात्मा के प्रति दृढ़ निष्ठा रखने वाले हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को परमात्मा ने अपना स्वरूप बताया। कश्यप मुनि की पत्नी  दिति से जो उत्पन्न हुए हैं, उनको दैत्य कहते हैं। उन दैत्यों में प्रह्लादजी मुख्य हैं और श्रेष्ठ हैं। ये भगवान् के परम विश्वासी और निष्काम प्रेमी भक्त हैं। इन्होंने कभी किसी का बुरा नही सोचा, यहां तक इन पर अत्याचार करने वालो तक का भला चाहा। अतः जो भक्त विपरीत परिस्थिति में भी परमात्मा में दृढ़ विश्वास के साथ सात्विक मार्ग पर चलना नही छोड़ता और इस के लिये वह सांसारिक रिश्तों तक का भी यानि कुमार्ग पर चलने वाले पिता की शिक्षा को भी नही स्वीकार करता। ऐसा भक्त जिस का योगक्षेम स्वयं परमात्मा वहन करते है, वह महान विभूति भक्त योगी  प्रह्लाद हो सकता है। इसलिये भगवान् ने इनको अपनी विभूति बताया है।

वर्ण व्यवस्था में यदि जन्म या जाति का आधार रहता तो ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाला रावण असुर और तामसी गुण से युक्त हो कर भी परमात्मा की विभूति कहलाता, किंतु सत्यता यह नहीं है। सत्व गुण से युक्त होने के जन्म और जातीय व्यवस्था को वर्ण व्यवस्था में कोई स्थान नहीं था। जीव अपने ज्ञान, आचरण और अभ्यास से सत्व गुण को धारण कर के भी परमात्मा की विभूति हो जाता है। इस का प्रहलाद एक प्रत्यक्ष उदाहरण है।

आधुनिक विज्ञान में काल की गणना के आधुनिक साधन होते हुए भी, ऋषि मुनियों द्वारा उस एक के संकल्प-विकल्प से ब्रह्मांड की रचना की जो खोज करते हुए, काल की गणना की, वह आज भी सार्थक है। मैं गणना करने वालों में काल हूँ। भारत के दार्शनिकों में नैय्यायिकों का अपना विशेष स्थान है। वे सृष्टि की विविधता को सत्य स्वीकार करते हुए ईश्वर के अस्तित्व का निषेध करते हैं। केवल बौद्धिक तर्कों के द्वारा वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि काल ही नित्य तत्त्व है। व्यष्टि मन और बुद्धि ही काल के विभाजक हैं, जो उसमें भूत, वर्तमान और भविष्य की कल्पनायें करते हैं। उनके मत के अनुसार मन का यह खेल ही काल का विभाजन इस प्रकार करता है कि मानो काल कोई खण्डित और परिच्छिन्न तत्त्व हो। सम्भवत, इसी सिद्धांत को ध्यान में रखकर, महर्षि व्यास ने बहुविध सृष्टि के अनन्त अधिष्ठान को दर्शाते के लिए इस उदाहरण को यहाँ दिया है।कुछ व्याख्याकार हैं, जो प्राय इसे एक सरल कथन के रूप में स्वीकार करते हैं उनके अनुसार, अनादि अनन्त काल ही इस जगत् की वस्तुओं की अन्तिम गति है। ज्योतिषशास्त्र में काल (समय) से ही आयु की गणना होती है। इसलिये क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास, वर्ष आदि गणना करने से साधनों में काल भगवान् की विभूति है। टाइम मशीन की कल्पना करने वाले लेखक एवम पूर्वज ऋषि मुनि भी मानते है कि काल नित्य एवम अनन्त है, इस मे कुछ भी नष्ट नही होता। हम काल मे गति को प्राप्त होते है। यदि हम पीछे जा सके तो भूतकाल और आगे जा सके तो भविष्य काल को देख सकते है। यह सिनेमा में दिखने वाली रील की तरह है, जो वर्तमान पर्दे पर दर्शाती है और जिस के भूत और भविष्य रील में सिमटा रहता है। किंतु सभी तय गति से होता है। ऐसे अनन्त, नित्य एवं सतत काल को परमात्मा ने अपना स्वरूप बताया है।

काल अनंत है, असीमित है और इस का कोई आदि और अंत नही। फिर जीव अपने भौतिक शरीर से काल की गणना करता है परंतु वह अज्ञान में भूल जाता है कि वह इस शरीर के पहले भी था और बाद में भी रहेगा। प्रकृति के योगमाया के अज्ञान में जीव का अहम और भौतिक शरीर ही जन्म और मृत्यु का सूचक है और इसीलिए अहम में जीव प्रकृति की योगमाया से वशीभूत हो कर अज्ञान में जीवन और अमृतत्व खोजता है, यानि जो मिथ्या है, उस को सत्य समझ कर मनुष्य जीवन को नष्ट कर देता है। मुझे आश्चर्य तब अधिक होता है जब आत्मज्ञान उपलब्ध होने के बाद भी जीव अज्ञान में भटकना पसंद करता है।

बाघ, हाथी, चीता, रीछ आदि जितने भी पशु हैं, उन सबमें सिंह बलवान्, तेजस्वी, प्रभावशाली, शूरवीर और साहसी है। यह सब पशुओं का राजा है। इसलिये भगवान् ने सिंह को अपनी विभूति बताया है।

गरुड़ पक्षियों में सर्वश्रेष्‍ठ माने गए हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार, वह भगवान विष्णु के वाहन हैं. उनकी मां विनिता थीं, जो कि प्रजापति कश्यपजी की पत्नी थीं. गरुड़ एक विशाल, अतिबलिष्‍ठ और अपने संकल्‍प को पूरा करने वाले हैं. उनके मन में अपने लिए कोई लालसा नहीं थी, उनसे प्रसन्‍न होकर भगवान ने उन्‍हें अमृत्‍व प्रदान किया। गरुड़ अमृत लेने स्‍वर्ग में इसलिए गए थे, ताकि अपनी मां को सर्पों की मां कद्रू की दासता से मुक्ति दिला सकें. कद्रू ने यह शर्त रखी थी कि तुम यदि मेरे पुत्रों के लिए अमृत ला दोगे तो तुम्‍हारी मां दासत्‍व से मुक्‍त हो जाएगी. तब गरुड़ उड़कर स्‍वर्ग पहुंचे. उन्‍होंने देवताओं को हराया और अमृत को छीन लाए।

इंद्रादि सभी देवताओं ने उन्‍हें रोकने की खूब कोशिश की लेकिन, गरुड़ उन्‍हें मात देकर धरती की ओर चल पड़े. रास्ते में भगवान विष्णु प्रकट हुए. भगवान ने देखा कि, गरुड़ के मुंह में अमृत कलश होने के बाद भी उसने खुद अमृत नहीं पीया, जरा भी लालच नहीं था. भगवान ने खुश होकर गरुड़ को वर दिया. तब गरुड़ ने कहा, ‘भगवन् मुझसे भी कुछ मांगिए’. गरुड़ की बात सुनकर भगवान विष्णु ने कहा, ‘आप मेरे वाहन हो जाओ!’

विनता के पुत्र गरुड़जी सम्पूर्ण पक्षियों के राजा हैं और भगवान् के भक्त हैं। ये भगवान् विष्णु के वाहन हैं और जब ये उड़ते हैं, तब इन के पंखों से स्वतः सामवेद की ऋचाएँ ध्वनित होती हैं। इसलिये भगवान् ने गरुड़ को अपनी विभूति बताया है।

परमात्मा की विभूतियां अनगिनत है किन्तु मानव मन हमेशा श्रेष्ठता की ओर देखता है, इसलिये भक्ति की अक्षुण्ण निष्ठा, समय या काल जिसे लोग सब से ताकतवर मानते है  एवम जिस को जीत नहीं सकते, पशुओं में तेज, ताकतवर, फुर्तीला सिंह एवम पक्षियों में सब से ताकतवर पक्षी द्वारा परमात्मा अपनी विभूतियो को प्रकट करते है।

।।हरि ॐ तत सत।।10.30।।

Complied by: CA R K Ganeriwala (+91 9422310075)

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