।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 10.26 II Additional – 1 II
।। अध्याय 10.26 II विशेष – 1 II
।। अश्वस्थ अर्थात पीपल ।। विशेष 1- 10.26।।
अश्वत्थ,पीपल का संस्कृत नाम है। हिन्दू लोग इसे पवित्र वृक्ष मानते हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसका बहुत उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में इसे पीपल कहा गया है। बौद्ध ग्रन्थ इसे ‘बोधि वृक्ष’ कहते हैं।
अश्वत्थ वृक्ष को कुछ स्थान में बरगद भी कहा गया है क्योंकि बरगद के वृक्ष के नीचे बैठने वालों को शीतलता का आभास होता है। यह वृक्ष घना होता है और विस्तृत क्षेत्र में ठण्डी छाया प्रदान करता है। यह अपनी वायवीय जड़ों को नीचे पहुँचा कर फैलाता है। महात्मा बुद्ध को बरगद के वृक्ष के नीचे ध्यान लगाते हुए ज्ञान प्राप्त हुआ था। हम इसे पीपल से वृक्ष ही नामंकित करते है।
भारतीय संस्कृति में पीपल देववृक्ष है, इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। स्कन्द पुराण में वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं।
पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप है। भगवान कृष्ण कहते हैं- समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ।
स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।
पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं। पीपल वृक्ष की प्रार्थना के लिए अश्वत्थस्तोत्र में पीपल की प्रार्थना का मंत्र भी दिया गया है।
प्रसिद्ध ग्रन्थ व्रतराज में अश्वत्थोपासना में पीपल वृक्ष की महिमा का उल्लेख है। अश्वत्थोपनयनव्रत में महर्षि शौनक द्वारा इसके महत्त्व का वर्णन किया गया है। अथर्ववेदके उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र, जप और ध्यान तथा सभी प्रकार के संस्कारों को शुभ माना गया है। श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। यज्ञ में प्रयुक्त किए जाने वाले ‘उपभृत पात्र’ (दूर्वी, स्त्रुआ आदि) पीपल-काष्ट से ही बनाए जाते हैं। पवित्रता की दृष्टि से यज्ञ में उपयोग की जाने वाली समिधाएं भी आम या पीपल की ही होती हैं। यज्ञ में अग्नि स्थापना के लिए ऋषिगण पीपल के काष्ठ और शमी की लकड़ी की रगड़ से अग्नि प्रज्वलित किया करते थे।
ग्रामीण संस्कृति में आज भी लोग पीपल की नयी कोपलों में निहित जीवनदायी गुणों का सेवन कर उम्र के अंतिम पडाव में भी सेहतमंद बने रहते हैं।
पीपल में अदभुत जिजीविषा (जीने की चाह) का गुण है। आप उसे उखाड़ कर फेंक दीजिए, वह कहीं भी फिर से उग आएगा। मिट्टी तो मिट्टी वह पत्थर पर भी उग आता है। आपके घर की दीवारों को तोड़ कर उग आता है। भगवान श्रीकृष्ण मानव को यह संदेश देते हैं कि हे मनुष्य तुम सभी में पीपल के समान ही जिजीविषा होनी चाहिए! स्थान को पकड़कर मत बैठो! जहां भी संभावना हो, जैसी भी परिस्थिति हो- तुम्हारे अंदर जीने की चाह बनी रहनी चाहिए! तुम्हारी जड़ें कहीं भी फूट सकती हैं, खुद को ऐसा बनाओ! आखिर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी जड़ों को मथुरा से उखाड़, द्वारका नगरी को बसाया ही था।
पीपल का दूसरा गुण भी जीवन देने से जुड़ा है! सभी वृक्षों में सबसे अधिक ऑक्सीजन पीपल का वृक्ष ही देता है। इतना ही नहीं, पीपल एक मात्र वृक्ष है, जो दिन के समान रात में भी ऑक्सीजन देता है। अन्य वृक्ष रात में कार्बनडॉयऑक्साइड छोड़ते हैं, जिसके सन्निकट रात में रहना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है। लगातार, अनवरत आप ध्यान समाधि में एक मात्र पीपल के वृक्ष के नीचे ही बैठे रह सकते हैं। अन्य वृक्षों के पास से आपको रात के समय उठना पड़ेगा। सनातन धर्म ने इसी कारण पीपल पर ब्रह्म का वास बताया है। ब्रहृम अर्थात सृष्टि! सृष्टि जिस दिन अपनी जिजीविषा छोड़ देगी, मानव ही नहीं, पूरे प्राणी जगत का विनाश हो जाएगा!
गीता में भी श्रीकृष्ण ने पीपल को श्रेष्ठ कहा है। भविष्य पुराण में ऐसे कई पेड़ों का उल्लेख है जो पापनाशक माने गए हैं। वृक्षायुर्वेद में पेड़ों के औषधीय महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी है।
वनस्पति जगत में पीपल ही एकमात्र ऐसा वृक्ष है जिसमें कीड़े नहीं लगते हैं। यह वृक्ष सर्वाधिक ऑक्सीजन छोड़ता है जिसे आज विज्ञान ने स्वीकार किया है।
।। हरि ॐ तत सत ।। गीता विशेष 1- 10.26 ।।
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