।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 09.17 II Additional II
।। अध्याय 09.17 II विशेष II
।। जीव और परमात्मा के तेरह सम्बंध ।। गीता विशेष 9.17 ।।
जीव अर्थात आत्मा के परमात्मा से 13 सम्बन्ध बताए गए है। जो इस प्रकार है।
1) माता
2) पिता
3) धाता
4) पितामह
5) गति- जीव प्रापक एवम ब्रह्म प्राप्य है।
6) भर्ता एवम पत्नी- परमात्मा पति एवम जीव पत्नी है
7) स्वामी एवम सेवक
8) साक्षी एवम साक्ष्य – ब्रह्म साक्षी एवम जीव साक्ष्य
9) आधार एवम आधेय – ब्रह्म आधार एवम जीव (संसार) आधेय है।
10) शरण एवम शरण्य – ब्रह्म रक्षक एवम जीव रक्ष्य – बिना प्रभु की शरण गए मुक्ती नही मिल सकती।
11) मित्र या सखा
12) गुरु एवम शिष्य
13) अंश एवम अंशी – जीव परमात्मा का ही अंश है।
गीता में वर्णित भगवान के जीव के साथ यह तेरह तरह के सम्बंध हम समय समय मे पढेंगे। चार सम्बन्ध अभी हम ने देखे है।
परमात्मा के संकल्प से परा एवम अपरा प्रकृति का जन्म हुआ। परा प्रकृति अर्थात जीव अनन्तः परमात्मा के स्वरूप या अंश है, जिस के कारण वह भी नित्य, अकर्ता एवम साक्षी है। उस का मूल सम्बन्ध परमात्मा से ही है, किन्तु भ्रमित हो कर कर्तृत्व एवम भोक्तत्व भाव से वह प्रकृति से अपना सम्बन्ध मान बैठा है। यही भ्रम उस के कार्य-कारण के सिंद्धान्त के कारण उसे कर्म फल का दायित्व देता है और वह जन्म-मरण के चक्कर मे फस जाता है। अध्याय 9 उस को परमात्मा के स्वरूप एवम सम्बन्ध को बता रहा है।
सामान्य तौर पर किसी से एक भी सम्बन्ध हो तो हमे वो कितना अधिक प्रिय हो जाता है फिर परमात्मा से तेरह तरह के सम्बंध होने के बावजूद जीव का अहम परमात्मा से उसे जुड़ने नही देता। यदि अहम न हो तो परमात्मा से अधिक प्रिय कोई नही।
।। हरि ॐ तत सत ।। विशेष 9.17 ।
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