।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach ।।
।। श्रीमद्भगवत गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।
।। Chapter 08.17 II Additional -1 II
।। अध्याय 08.17 II विशेष -1 II
।।काल की गणना गीता में बताए अनुसार ‘भारत’ एवम मनुस्मृति में है जिसे गीता में बताया गया है।। गीता विशेष 8.17 ।।
1) पृथ्वी का अपनी धुरी पर एक चक्र एक दिन एवम एक रात होता है।
2) सौर मंडल में पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर का एक चक्र एक वर्ष माना गया है।
3) हमारा एक वर्ष देवताओ का एक दिन माना गया है। इस प्रकार 360 वर्ष का एक दिव्य वर्ष कहलाता है।
4) ऐसे 12 हजार दिव्य वर्षों का एक दिव्य युग होता है जिसे महायुग और चतुर्युगी भी कहते है।
5) इस प्रकार से गणना करने से जिन चार युगों की हिन्दू धर्म मे बात की जाती है उन का परिमाण मनुष्य के वर्षों के हिसाब से इस प्रकार होगा।
क) कलि युग 432000 वर्ष
ख) द्वापरयुग 864000 वर्ष ( कलियुग से दुगना)
ग) त्रेतायुग- 1216000 वर्ष (कलि युग से तिगुना)
घ) सत्ययुग- 1728000 वर्ष (कलियुग से चौगुना )
कुल जोड़ – 43,20,000 वर्ष
अर्थात चतुर्युगी या दिव्य युग की गणना 43,20,000 वर्ष होगी।
6) ऐसे हजार दिव्य युग का ब्रह्मा का एक दिन होता है। अर्थात ब्रह्मा का एक दिन 4,32,00,00,000 (चार अरब 32 करोड़ वर्ष) का होता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प या सर्ग भी कहते है एवम रात्रि को प्रलय भी कहते है।
परमात्मा अपने सूक्ष्म रूप से अर्थात अव्यक्त रूप से व्यक्त रूप में प्रकट होता है जिसे ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना माना गया है यह ही ब्रह्मा का दिन है, कल्प है एवम जब परमात्मा पुनः अपने को अव्यक्त स्वरूप में समेट लेता है तो समस्त सृष्टि नष्ट हो कर परमात्मा में विलय हो जाती है, जिसे ब्रह्मा की रात्रि काल, प्रलय भी कहा गया है।
परमात्मा का अव्यक्त से व्यक्त होना या व्यक्त से पुनः अव्यक्त होना किसी भी धर्म, विचार धारा में स्पष्ट नही है क्यों परमात्मा अपने अव्यक्त स्वरूप से व्यक्त स्वरूप को प्रकट होता है और पुनः व्यक्त से अव्यक्त को प्राप्त करता है। जितने भी धर्म, संस्कृति, विचारधारा है वो परमात्मा के व्यक्त रूप का दर्शन शास्त्र मात्र है। गीता का दर्शन शास्त्र भी परमात्मा के व्यक्त स्वरूप का दर्शन शास्त्र ही है।
7) इस प्रकार ब्रह्मा के सौ वर्ष की ब्रह्मलोक की आयु है। अर्थात असीमित हो कर भी ब्रह्मलोक अनित्य ही है।
मनुस्मृति में काल की यह गणना कोई काल्पनिक या मिथक नही है। आज जब ‘GOD PARTICAL’ एवम बिंग बैंग के सिंद्धान्त पर कृतिम ब्रह्मांड की रचना का प्रयास अनुसंधानशाला में किया जा रहा है तो वैज्ञानिक भी काल की गणना कर रहे है जो इस से मिलती है। यह एक रोचक विषय है, जो गूगल पर सर्च करने से काफी साहित्य के रूप में उपलब्ध है।
।। हरि ॐ तत सत ।। विशेष 8.17 ।।
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