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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  06.15 ।। Additional II

।। अध्याय    06.15  ।। विशेष II

।। ध्यान योग और चक्र साधना – भाग – 1 ।। विशेष 6.15 ।।

सांख्य योग में शरीर की व्याधियों की तुलना उस उबड़ – खाबड़ खेत से है जिसे फसल लगाने से पहले समतल करना आवश्यक है। गीता कर्मयोग पर विशेष बल देती है जिस से ज्ञान से पूर्व भक्ति एवम समपर्ण से शरीर-इन्द्रिय- मन – बुद्धि को एक रूप और समरस करने के लिये ध्यान की विधि बताई है। इस मे ध्यान से पूर्व ही कर्तृत्त्व- भोक्तत्व आसक्ति एवम कामना के संकल्प त्याग करने के लिये निष्काम कर्म को हेतु बताया गया। इस लिये मन को वश में करने पर विशेष बल दिया है, जिस से समभाव हुआ जाए। इसलिये ध्यान के लिये योगारूढ़ होने को कहा गया है।

पातंजलि ध्यान की प्रक्रिया सांख्ययोग में हठयोग एवम राजयोग से मिलती है,जिस में निर्वाण के लिये चार चरण समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद बताये है, इन को प्राप्त करने के लिये यम, नियम, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा और समाधि अष्टांग योग के बताए गए है। अतः पातंजलि योगसूक्त गीता है ध्यान योग में प्रत्यक्ष न भी होते हुए भी गीता द्वारा मान्यता प्राप्त है।

हम ध्यान में शरीर- इन्द्रिय – मन एवम बुद्धि को समतल भूमि जैसे तैयार करते है जिस से कामना- आसक्ति एवम अहम को त्याग कर सत चित्त आनन्द की स्थिति को प्राप्त कर सके। इस के ध्यान के माध्यम से शरीर के विभिन्न चक्र खुलने लगते है। प्रस्तुत दो भागो में हम अतिरिक्त इन चक्र की प्राथमिक जानकारी से भी अवगत होने की चेष्टा करते है।

शरीर के सात चक्रों को जागृत करने का जरिया है ध्यान, हर चक्र के जागने से खास शक्ति मिलती है ।

मूलाधार से सहस्रार चक्र तक मानव शरीर में सात चक्र हैं।

शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर ध्यान केंद्रित कर के इन की शक्ति को जगाया जाता है। अध्यात्म के अनुसार यह विभिन्न भावनाओं के ऊर्जा केंद्र है और यदि मनुष्य योग से इन ऊर्जा केंद्रों को नियंत्रित और पूर्ण रूप संचालित कर लेता है तो प्रकृति के गुणों पर उस का नियंत्रण हो जाता है। जिसे हम सरल भाषा में कह सकते है कि प्रकृति जिस योगमाया से इस संसार को संचालित करती है, जीव उस योगमाया को समझ जाता है। इन से भौतिक सुख से आध्यात्मिक दर्शन तक सारे लाभ मिलने हैं।

हमारे शरीर में यह सात चक्र होते हैं, मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार। नवरात्रि में हर दिन एक विशेष चक्र को जाग्रत किया जाता है, जिससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। हम अगर इस ऊर्जा का ठीक प्रबंधन कर लें तो असाधारण सफलता भी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। सामान्यत: हमारी सारी ऊर्जा मूलाधार चक्र (कामेंद्रियों के ऊपर) होती है। योगीजन नवरात्रि में ध्यान के माध्यम से मूलाधार में स्थित अपनी ऊर्जा को सहस्त्रार तक लाते हैं। सांसों के नियंत्रण और ध्यान से इस ऊर्जा को ऊपर खींचा जा सकता है। जैसे-जैसे हम ऊर्जा को एक-एक चक्र से ऊपर उठाते जाते हैं, हमारे व्यक्तित्व में चमत्कारी परिवर्तन दिखने लगते हैं। 

मूलाधार चक्र – शक्ति का केंद्र

मूलाधार या मूल चक्र प्रवृत्ति, सुरक्षा, अस्तित्व और मानव की मौलिक क्षमता से संबंधित है। यह केंद्र गुप्तांग और गुदा के बीच अवस्थित होता है। हालांकि यहां कोई अंत:स्रावी अंग नहीं होता, कहा जाता है कि यह जनेनद्रिय और अधिवृक्क मज्जा से जुड़ा होता है और अस्तित्व जब खतरे में होता है तो मरने या मारने का दायित्व इसी का होता है। इस क्षेत्र में एक मांसपेशी होती है, जो यौन क्रिया में स्खलन को नियंत्रित करती है।  शुक्राणु और डिंब के बीच एक समानांतर रूपरेखा होती है, जहां जनन संहिता और कुंडलिनी कुंडली बना कर रहता है। मूलाधार का प्रतीक लाल रंग और चार पंखुडिय़ों वाला कमल है। इसका मुख्य विषय काम—वासना, लालसा और सनक में निहित है। शारीरिक रूप से मूलाधार काम-वासना को, मानसिक रूप से स्थायित्व को, भावनात्मक रूप से इंद्रिय सुख को और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।

1. कैसी होती है इसकी प्रकृति?  

काम प्रधान/ सिर्फ देह ही दिखती है। 

2. आध्यात्मिक प्रभाव क्या?

हम वासना से घिरे रहते हैं। 

3. प्रोफेशनल प्रभाव क्या? 

टीमवर्क और टीम भावना बढ़ेगी। 

स्वाधिष्ठान च्रक – कमिटमेंट और साहस बढ़ाता है

स्वाधिष्ठान चक्र त्रिकास्थि (कमर के पीछे की तिकोनी हड्डी) में अवस्थित होता है और अंडकोष या अंडाश्य के परस्पर के मेल से विभिन्न तरह का यौन अंत:स्राव उत्पन्न करता है, जो प्रजनन चक्र से जुड़ा होता है। स्वाधिष्ठान को आमतौर पर मूत्र तंत्र और अधिवृक्क से संबंधित भी माना जाता है। त्रिक चक्र का प्रतीक छह पंखुडिय़ों और उससे परस्पर जुदा नारंगी रंग का एक कमल है। स्वाधिष्ठान का मुख्य विषय संबंध, हिंसा, व्यसनों, मौलिक भावनात्मक आवश्यकताएं और सुख है। शारीरिक रूप से स्वाधिष्ठान प्रजनन, मानसिक रूप से रचनात्मकता, भावनात्मक रूप से खुशी और आध्यात्मिक रूप से उत्सुकता को नियंत्रित करता है।

1. कैसी होती है प्रकृति?  

देह के अलावा मन भी दिखेगा। 

2. आध्यात्मिक प्रभाव क्या?

विचार नियंत्रित, शुद्ध होना शुरू भर होगा। 

3. प्रोफेशनल प्रभाव क्या? 

कमिटमेंट और करेज बढ़ेगा। 

मणिपुर चक्र – संतुष्टि का भाव

मणिपुर या मणिपुरक चक्र चयापचय और पाचन तंत्र से संबंधित है। ये चक्र नाभि स्थान पर होता है। ये पाचन में, शरीर के लिए खाद्य पदार्थों को ऊर्जा में रूपांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसका प्रतीक दस पंखुडिय़ों वाला कमल है। मणिपुर चक्र से मेल खाता रंग पीला है। मुख्य विषय जो मणिपुर द्वारा नियंत्रित होते हैं, ये विषय है निजी बल, भय, व्यग्रता, मत निर्माण, अंतर्मुखता और सहज या मौलिक से लेकर जटिल भावना तक के परिवर्तन, शारीरिक रूप से मणिपुर पाचन, मानसिक रूप से निजी बल, भावनात्मक रूप से व्यापकता और आध्यात्मिक रूप से सभी उपादानों के विकास को नियंत्रित करता है।

1.कैसी होती है प्रकृति?  

हृदय दिखेगा। 

2.आध्यात्मिक प्रभाव क्या?

कभी-कभी विचारशून्य होंगे। 

3.प्रोफेशनल प्रभाव क्या? 

लीडरशीप बढ़ेगी। 

अनाहत – भय और तनाव दूर करता है

अनाहत या अनाहतपुरी या पद्म-सुंदर बाल्यग्रंथि से संबंधित है, यह सीने में स्थित होता है। बाल्यग्रंथि प्रतिरक्षा प्रणाली का तत्व है, इसके साथ ही यह अंत:स्त्रावी तंत्र का भी हिस्सा है। यह चक्र तनाव के प्रतिकूल प्रभाव से भी बचाव का काम करता है। अनाहत का प्रतीक बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है। अनाहत हरे या गुलाबी रंग से संबंधित है। अनाहत से जुड़े मुख्य विषय जटिल भावनाएं, करुणा, सहृदयता, समर्पित प्रेम, संतुलन, अस्वीकृति और कल्याण है। शारीरिक रूप से अनाहत संचालन को नियंत्रित करता है, भावनात्मक रूप से अपने और दूसरों के लिए समर्पित प्रेम, मनासिक रूप से आवेश और आध्यात्मिक रूप से समर्पण को नियंत्रित करता है।

1. कैसी होती है प्रकृति?  

आत्मा दिखेगी। 

2. आध्यात्मिक प्रभाव क्या?

मन प्रसन्न रहने लगेगा। 

3. प्रोफेशनल प्रभाव क्या? 

ह्यूमिलिटी और ऑनेस्टी आएगी।

विशुद्धि चक्र – वाणी में प्रभाव देता है

यह चक्र गलग्रंथि, जो गले में होता है, के समानांतर है और थायरॉयड हारमोन उत्पन्न करता है, जिससे विकास और परिपक्वता आती है। इसका प्रतीक सोलह पंखुडिय़ों वाला कमल है। विशुद्ध की पहचान हल्के या पीलापन लिये हुए नीले या फिरोजी रंग है। यह आत्माभिव्यक्ति और संप्रेषण जैसे विषयों, जैसा कि ऊपर चर्चा की गयी हैं, को नियंत्रित करता है। शारीरिक रूप से विशुद्ध संप्रेषण, भावनात्मक रूप से स्वतंत्रता, मानसिक रूप से उन्मुक्त विचार और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।

1. कैसी होती है प्रकृति?  

परमात्मा की हल्की झलक। 

2. आध्यात्मिक प्रभाव क्या?

चेहरे पर तेज, शांति। 

3. प्रोफेशनल प्रभाव क्या? 

वेल्यूज को समझेंगे।

आज्ञा चक्र – मानसिक दृढ़ता और क्षमा भाव देता है

आज्ञा चक्र दोनों भौहों के मध्य स्थित होता है। आज्ञा चक्र का प्रतीक दो पंखुडिय़ों वाला कमल है और यह सफेद, नीले या गहरे नीले रंग से मेल खाता है। आज्ञा का मुख्य विषय उच्च और निम्न अहम को संतुलित करना और अंतरस्थ मार्गदर्शन पर विश्वास करना है। आज्ञा का निहित भाव अंतज्र्ञान को उपयोग में लाना है। मानसिक रूप से, आज्ञा दृश्य चेतना के साथ जुड़ा होता है। भावनात्मक रूप से, आज्ञा शुद्धता के साथ सहज ज्ञान के स्तर से जुड़ा होता है।

1. कैसी होती है प्रकृति?  

परमात्मा की झलक अधिक समय के लिए। 

2. आध्यात्मिक प्रभाव क्या?

अज्ञात भय से मुक्ति। 

3. प्रोफेशनल प्रभाव क्या? 

एग्रेसिवनेस और फीयरलेसनेस

सहस्त्रार चक्र – परमात्मा के होने का अहसास

सहस्रार को आमतौर पर शुद्ध चेतना का चक्र माना जाता है। यह मस्तक के ठीक बीच में ऊपर की ओर स्थित होता है। इसका प्रतीक कमल की एक हजार पंखुडिय़ां हैं और यह सिर के शीर्ष पर अवस्थित होता है। सहस्रार बैंगनी रंग का प्रतिनिधित्व करती है और यह आतंरिक बुद्धि और दैहिक मृत्यु से जुड़ी होती है। सहस्रार का आतंरिक स्वरूप कर्म के निर्मोचन से, दैहिक क्रिया ध्यान से, मानसिक क्रिया सार्वभौमिक चेतना और एकता से और भावनात्मक क्रिया अस्तित्व से जुड़ा होता है।

1. कैसी होती है प्रकृति?  

प्रकृति और जीवों में परमात्मा की झलक। 

2. आध्यात्मिक प्रभाव क्या?

हर सांस में परमात्मा का नाम/गुरु मंत्र सुनाई देने लगेगा। 

3. प्रोफेशनल प्रभाव क्या? 

सफलता के साथ शांति। 

आगे विश्लेषण में इस को कैसे प्राप्त कर सकते है, पढ़ते है।

।। हरि ॐ तत सत ।। विशेष 6.15 ।।

Complied by: CA R K Ganeriwala ( +91 9422310075)

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