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% - Shrimad Bhagwat Geeta

।। Shrimadbhagwad Geeta ।। A Practical Approach  ।।

।। श्रीमद्भगवत  गीता ।। एक व्यवहारिक सोच ।।

।। Chapter  06.12 ।। Additional II

।। अध्याय    06.12  ।। विशेष II

।। गीता अध्ययन – अध्याय 6.12 ।।

।। मन एवम बुद्धि की कार्य प्रणाली – भाग 3 – मन कैसे कार्य करता है ।।

पूर्व दो भागों में मष्तिष्क के बारे में पढ़ने से हमे शरीर के स्नायु तंत्र की कार्य प्रणाली का ज्ञान हो जाता है कि किसी प्रकार ज्ञानेंद्रियां सूचना इकठ्ठा करती है, मष्तिष्क में भेजती है एवम मष्तिष्क उन को अपने पूर्व सूचनाओ के आधार पर समझता है और निर्णय ले कर निर्देश देता है। मष्तिष्क शरीर के प्रत्येक अवयव से जुड़ा है और शरीर की सम्पूर्ण क्रियात्मक कार्य प्रणाली को नियंत्रित करता है। विज्ञान में मष्तिष्क के काम न करने को ही मृत्यु माना गया है किंतु एक और अवयव है हृदय, जो सभी अंगों को रक्त का संचरण करता है। जन्म से अंत तक यही धड़कता रहता है और मृत्यु का अर्थ इस का बन्द होना ही माना गया है।

मष्तिष्क और हृदय की कार्य प्रणाली काफी कुछ वैज्ञानिक है इसलिये कंप्यूटर की खोज की गई जो मष्तिष्क की कार्यप्रणाली में कार्य करता है और ह्रदय का इलाज या replacement भी किया जाता है।

किंतु इन के अतिरिक्त विचार, चेतना, ज्ञान, इच्छाए, अनुभव, अनुभूति, भावनाएं – प्रेम, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या, प्रेरणा आदि ऐसे तत्व है जो मष्तिष्क के ज्ञान-विज्ञान से परे है। फिर पुर्नजन्म, कर्मफल, कर्मबन्धन, संस्कार  आदि सिंद्धांत है जो मन को मष्तिष्क की कार्य प्रणाली से अलग रखता है। किन्तु शरीर के विज्ञान में स्नायु तंत्र इन सब से मष्तिष्क के माध्यम से ही जुड़ा है। यह बिल्कुल हृदय के समान है जो एक शरीर का हिस्सा है और एक सूक्ष्म प्रकृति का।

मन शरीर के साथ आत्मा की अभिव्यक्ति का माध्यम है जब कि मष्तिष्क एवम हृदय जगत के साथ आत्मा के कर्म के लिये शारीरिक साधन भी है। मष्तिष्क में अलग अलग भाग है, किन्तु मन विभिन्न प्रकार का होता है।

अतः स्थूल शरीर के भाग में मस्तिष्क और स्थूल हृदय है जो विभिन्न संवेदनाओं को और रक्त को पूरे शरीर में प्रवाहित भी करता है और शरीर के विभिन्न अंगों को कार्य निर्देश भी देता है। उच्च प्रबंध यदि शिक्षित, ज्ञानी और आदर्श विचारो से परिपूर्ण होगा तो जीवन की शैली भी उतनी ही स्वास्थ्य वर्धक, शांत, कर्मठ, दृढ़ निश्चय और मनन शील होगी। किंतु यह संवेदना और कार्य प्रणाली में इच्छाएं, आसक्ति और मोह, लोभ आदि आ जाने से शरीर का प्रबंध बिगड़ जाता है। अतः यह सब का संचालन करने वाले सूक्ष्म तत्व मन, हृदय और बुद्धि है। सूक्ष्म हृदय मानव मन की कोमल भावनाओं के रूप में जाना जाता है जिस में प्रेम प्रमुख है।

मन, मष्तिष्क, ह्रदय को शरीर से जोड़ने के कार्य चेतना करती है। चेतना को आत्मशक्ति, प्राण या ऊर्जा के नाम से भी जान सकते है। शारीरिक मष्तिष्क एवम हृदय तभी तक कार्य करता है, जब तक शरीर मे चेतना या प्राण है। चेतना का न होने का अर्थ बस राम नाम सत्य है।

मन मष्तिष्क में कार्य भी करता है और मष्तिष्क को धारण भी। मन जब मस्तिष्क की भूमिका में होता है वह मनोमय और जब मस्तिष्क के अनुसार मन होता है तो वह अवस्था विज्ञानमय है। यह मनुष्य के कर्म फलों, संस्कारों एवम प्रारब्ध का धारक भी है जो मृत्यु के बाद लिंग स्वरूप में आत्मा से जुड़ा रहता है और आत्मा को कर्मफलों के अनुसार नए जन्म में ले जाता है।

मानव मष्तिष्क का अग्रिम भाग प्रमष्तिष्क कहलाता है जिस में करोड़ो-अरबो न्यूरॉन्स neurons होते है। यही मष्तिष्क के क्रियाशील होने ही मुख्य भूमिका में कार्य करते है। जितने अधिक सक्रिय न्यूरॉन्स उतना अधिक मनुष्य बुद्धिमान होता है। इसलिए ध्यान की आस्था में दोनो भोहों के मध्य ध्यान एकाग्रतीत करने  को कहा जाता है।

अतः मन और हृदय दिमाग या मष्तिष्क से भिन्न है और यह आज भी कैसे काम करता है यह विज्ञान की खोज का हिस्सा है। इंद्रियां स्वयं में कुछ भी ज्ञान या आभास नहीं रखती। वे जो देखती, सुनती, सूंधती, स्पर्श या स्वाद महसूस करती है, वह मन को कहती है। मन उस को अपने पूर्व के संग्रहित ज्ञान के आधार पर समझता है। इसलिए एक ही वस्तु के बारे में विभिन्न विचार होते हैं।

मन और हृदय को हम मष्तिष्क अर्थात दिमाग और रक्त संचालन करने वाले हृदय से भिन्न निम्न रूप में मान सकते है।

मन पूरे शरीर को आदेश देता है और द्वारा शरीर काम करता है जबकि दिमाग चीजों को समझने और याद रखने में प्रयोग किया जाता है.

मन में फीलिंग, सोचना, चेतना, ज्ञान, इच्छाएं, अनुभव, अनुभूतियाँ आदि होती हैं जिन के द्वारा मन काम करता है जबकि दिमाग एक प्रकार का यंत्र है जो शरीर के विभिन्न अंगों में तंत्रिका यंत्र द्वारा सुचना का आदान प्रदान करता है.

मन को सूक्ष्म शरीर के रूप माना गया है और दिमाग को स्थूल शरीर का रूप माना गया है।

‌‌‌यदि हम मन की परिभाषा दें तो सीधी और सरल परिभाषा तो यह होगी कि यह सूचनाओं का संग्रह ही है और इस का विभाजन इस के अंदर मौजूद सूचनाओं की क्रियाशीलता के आधार पर ही किया जाता है।

सरल भाषा मे समझे तो भगवान धन्वंतरी ने कहा ज्यादा तीखा, मीठा, खारा और बासा भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि ज्यादा तीखा या मीठा खाना रोगों को दावत देने जैसा है । वास्तव में आप की जीभ का स्वाद ही आप के दिमाग की इच्छा है । आप की जीभ की नसें सीधे दिमाग तक जाती है, तत्पश्चात दिमाग बताता है कि ये तीखा मीठा क्या है और कितना चाहिए। ये धारणा हम दिमाग में बनाते है तब ही परिणाम आता है ।

ये सर्वविदित है पर इस में देखने जैसी एक चीज है कि इस फैसले को लेने के लिए हमने जिस माध्यम का इस्तेमाल किया उसमें मन सबसे पहले है । बुद्धि अपनी राय देती है और विवेक उसे तोलकर सही गलत बताता है। परन्तु मन कैसे माने उसकी बात ।

अगर मन ही मान ले बात बुद्धि और विवेक की तो झगड़ा क्या, कुछ भी तो नहीं । इसमें एक बारीक़ बात छुपी है जिसे हम हमेशा नजरअंदाज करते है वह है करने और न करने का फैसला । जैसे हमारे सामने रसगुल्ला रखा गया, मन कहता है खा, बुद्धि ने समझाया मन को कि नहीं । पर मन बुद्धि पर भारी है । अब कहा बुद्धि ने चलो एक खा लो । मन फिर कहता है कि एक से क्या होगा, दो खा परन्तु इसी बीच हमारा विवेक कहता है नहीं ये ठीक नहीं, मत खा मधुमेह हो जायेगा ।

अब ये तीनों अवस्थाएं सामने है हमारे । बात ये है कि हम माने किसकी । एक तो यह है, और दूसरा यह है कि हम माने तो मन की पर साथ ही उसकी व्यर्थता को भी साबित कर दें । सही मायने में इच्छा को रोकने की तुलना में व्यर्थता साबित करना ठीक है । जैसे हमने पेट भर खाए रसगुल्ले, मानी मन की इतनी ज्यादा कि अति हो जाये जिससे । इतना खाए कि सहा न जाये पर उसके बाद जो होगा, उसे सोचकर ही जीवन भर आप कभी न करोगे ये क्योंकि अति ने आपके सामने व्यर्थता को उपस्थित कर दिया और निजात मिल गयी इससे आपको।

इसमें एक देखने जैसी बात यह है कि इन्द्रियां वश में करनी है और इन्द्रियों को वश में करे बिना मोक्ष नहीं मिल सकता, पर इन्द्रियों को वश में करने का तरीका क्या होगा इसको परिभाषित कौन करे ।

लोग अपने आपको जलते अंगारों पर चलाते है, बाल नोचवाते है, हिमालय में चले जाते है पर प्रश्न यह है कि क्या हिमालय में जाने से संसार छूटा, इन्द्रियां वश में हुई, काम वश में आया, क्रोध वश में आया, लोभ हटा, मोह हटा ? नहीं, बल्कि सच तो यह है कि एकांत में ये ज्यादा सताते है क्योंकि अंदर अभी भी यही चल रहा है हटा नहीं । आपको बता दूँ आज भी ९०% संन्यासी बनते है सिर्फ इसलिए कि कुछ है ही नहीं पास ।  हिमालय चले गये पर मन संसार में ही है और एक कोटि और भी है कि हिमालय में रहकर, इस संसार में रहकर परलोक की, स्वर्ग की कामना करे यहाँ भी सौदेबाजी है । इन्द्रियों को वश में करने के लिए हमें हठधर्मिता छोडनी होगी और प्रयोग धर्मी बनना होगा हमें। अपने चित्त को भी समझाना होगा कि यह व्यर्थ है तुरंत छूटेगा यह नहीं तो आप जीवन भर लड़ते ही रहोगे मन से एक ऐसी लड़ाई जिसका कोई अंत नहीं । यही कारण है कि ध्यान योग से पूर्व भगवान श्री कृष्ण मनुष्य को कर्तृत्त्व एवम भोक्तत्व भाव से योगारूढ़ हो कर ध्यान के लिये कहते है। ज्ञान के लिये ध्यान ही माध्यम है जिस से जीव शरीर, इन्द्रीय,मन एवम बुद्धि को समरस करते हुए परमज्ञान को प्राप्त कर सकता है।

आज ने अनेक ज्ञानी व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर घूम रहे है। जिन के आचरण, विचार और कर्म व्हाट्सएप पर भेजे संदेश से मेल नहीं खाते। टीवी पर अक्सर बहस देखते है। ज्ञान और बुद्धि जिसे गलत भी समझ चुकी है, उसे जब स्वीकार नहीं करते हुए, अपनी पार्टी और अपने अहम के लिए बहस होती है। अतः मन, हृदय और बुद्धि के साथ अहम का प्रभाव हमारे कार्य पर अधिक पड़ता है।

हमारे विषय और भोग में जब तक इंद्रियों को बहिमुख से अंतर्मुख न किया जाए, ध्यान की प्रक्रिया शुरू नही हो सकती। इसलिए ध्यान के समय मुंह को बंद, कानो को कुछ भी न सुने, इसलिए शांत स्थान, एकाकी स्पर्श से बचने के लिए, साफ और पवित्र स्थान गंध के लिए और आंखों को बंद कर के ध्यान शुरू होता है। फिर भी मन तो मन ही है। जैसे व्हाट्सएप के किसी विषय विशेष ग्रुप में कोई भी कुछ भी संदेश डाल देता और यदि ग्रुप का एडमिन सख्त न हो तो ग्रुप खिचड़ी हो जाता है, वैसे भूत और भविष्य घटनाएं, चिंताएं ध्यान के समय घुस कर ध्यान को भंग करती रहती है। इसलिए मन का वश में होना अति आवश्यक है। यह अभ्यास से ही संभव होता है।

ध्यान की प्रक्रिया में अहम को, कामना, आसक्ति, लोभ, मोह, राग द्वेष आदि को त्याग कर निर्लिप्त और निष्काम भाव से बैठना होता है। यदि यह साथ में रहते है तो ध्यान प्रकृति और विषय भोग का होता है। इसलिए चाहे कितनी भी देर बैठ कर ध्यान लगाया जाए, व्यक्ति के गुण, दोष और विचार नहीं बदलते और ध्यान से उठने के बाद, वह पूर्ववत व्यवहार ही करता है।

मन कितने प्रकार

यह हम पहले भी discuss कर चुके है, किन्तु मन मे आ गया, इसलिये पुनः दोहराते है।

चेतन मन (Conscious Mind)

‌‌‌चेतन मन को समझना बहुत ही आसान होता है। चेतन मन वर्तमान सूचना है जिसका आप उपयोग कर रहे हैं।यह अभी का नाम है। आप अभी जो कुछ भी कर रहे हो वह चेतन मन के  द्वारा होता है। और आपके शरीर को कोई भी आदेश चेतन मन के द्वारा ही मिलता है। आपके मन मे विचार आता है चलो आप चलने लगते हो आपके मन मे विचार आता है ‌‌‌बैठो , आप बैठ जाते हो । मतलब की चेतन मन उस सूचना को अपने पास रखता है। जिस पर आप अभी काम कर रहे हो ।

‌‌‌तो चेतन मन का मतलब है अभी आप जो कुछ कर रहे हो वही । आपने 3 मिनट पहले किया वो चेतन मन के अंदर नहीं आता है।इसी लिए कहा कि चेतन मन वर्तमान काल की तरह होता है। उसमे आप वर्तमान मे कुछ करते हो । ‌‌‌चेतन मन के अंदर वे सभी विचार , भावनाएं , कल्पनाएं और सब कुछ आता है जो आप अभी कर रहे हो ।

‌‌‌चेतन मन पानी के उपर तेरता हुआ टुकड़ा होता है। मतलब यह आपके मन की सबसे उपर परत होती है। और यही परत हम काम मे लेते हैं सबसे अधिक ।

‌‌‌एक चेतन मन को बेहतर तरीके से समझने के लिए एक कहानी के बारे मे जानते हैं।

प्राचीन काल के अंदर एक ऐसा व्यक्ति था जिसका सिर्फ चेतन मन काम करता था।वह सदैव वर्तमान के अंदर जी सकता था। वह कुछ भी याद नहीं कर सकता था। ‌‌‌उसे हर बार चीजों को बताना पड़ता था। क्योंकि उसके दिमाग के अंदर गहरे विकार थे । फिर उसके माता पिता परेशान होकर उसे एक योगी के पास लेकर गए । योगी ने उसे पूछ तुम्हारा नाम क्या है ? वह पहले ही भूल चुका था। उसके बाद योगी ने उसके चेहरे को छुआ और पूछा तुम्हारा नाम क्या है ?

‌‌‌उसके बाद उस व्यक्ति ने फटाक से अपना नाम बता दिया । योगी ने कहा कि आप इस व्यक्ति को मेरे पास कुछ दिन रहने दें । इसके मन की परते काम नहीं कर रही हैं। यह सिर्फ वर्तमान की सूचना को याद रखता है और कुछ समय बाद उसे भी भूल जाता है। इसके अवचेतन मन से वह सूचना वापस नहीं आ पाती है।

‌‌‌तो चेतन मन वह है जो केवल कुछ मात्रा मे ही सूचना को स्टोर कर सकता है। यह कम्प्यूटर के केज मैमोरी की तरह होती है। ‌‌‌जब यह नई सूचना पर काम करता है तो पूरानी सूचना को भूला देता है या मन के दूसरी परत के अंदर भेज देता है। क्योंकि इसके पास स्पेस नहीं है।

अवचेतन मन (Subconscious Mind)

‌‌‌अवचेतन मन के अंदर वे सभी सुचनाएं संग्रहित होती हैं जिनको हम आसानी से याद कर सकते हैं। आपने सुबह क्या पढ़ा था , किस से बात की थी ,आपकी पत्नी का नाम क्या है ? आपके गांव का नाम क्या है ? आपके देश का नाम ? इसी तरह की तमाम सूचनाओं को आपका अवचेतन मन स्टोर करता है।

‌‌‌सीधी भाषा के अंदर कहें तो अवचेतन मन के अंदर वे सूचनाएं होती हैं जिनको आप कभी भी याद कर सकते हैं। या उनके चेतन मन के अंदर ला सकते हैं। जो सूचनाएं चेतन मन के अंदर आप नहीं ला सकते हैं वे चेतन मन का हिस्सा नहीं होती हैं।

‌‌‌अवचेतन मन के अंदर बहुत सारे डेटा का संग्रहण होता है ।इसी डेटा की मदद से आप अपने जीवन के सारे महत्वपूर्ण काम कर पाते हैं। अवचेतन मन और चेतन मन एक दूसरे के लिए कड़ी का काम करते हैं। बिना चेतन मन के अवचेतन मन किसी काम का नहीं है। और बिना अवचेतन मन के चेतन मन किसी काम का नहीं है।

‌‌‌चेतन मन की मदद से आप सूचनाओं के अंदर सुधार करने मे सक्षम होते हैं लेकिन अवचेतन मन के अंदर आप सूचनाओं मे सुधार करने मे सक्षम नहीं होते हैं या शायद यह कम ही संभव है।

‌‌‌यदि आपके पास कम्प्यूटर है तो उसके अंदर हार्डडिस्क भी आप रखते हैं।वह हार्डडिस्क आपके अवचेतन मन के ही समान होती है। उसके अंदर जो कुछ भी स्टोर होता है आप उसको आसानी से देख सकते हैं। और समझ भी सकते हैं।

‌‌‌यदि एक इंसान के पास यह दो मन हैं तो काम चल जाता है। क्योंकि बहुत से लोग मन की दूसरी अन्य परतों को छूनें मे सक्षम नहीं होते हैं।

‌‌‌हालांकि अचेतन मन के अंदर आप जो सूचना स्टोर करते हैं उस के अंदर भी आप आसानी से बदलाव कर सकते हैं। सीखने की प्रक्रिया के अंदर आप का अवचेतन मन बहुत अधिक उपयोगी होता है। इस के अंदर भी कुछ सूचनाएं डिलिट हो जाती हैं और दूसरी अचेतन मन के अंदर भेज जाती हैं।

अचेतन मन (Unconscious Mind)

‌‌‌अचेतन मन का विचार तो फ्रायड ने नहीं दिया था लेकिन इस को लोकप्रिय बनाने का काम उस ने किया । फ्रायड (1900, 1905) मे फ्रायड ने एक मॉडल दिया था जिसके अंदर उसने मन के 3 स्तरों के बारे मे जिक्र किया था। ‌‌‌अचेतन मन के अंदर ऐसी भावनाएं और विचार मौजूद हैं जिन को आसानी से चेतन मन के अंदर नहीं लाया जा सकता है।

मतलब कुछ विचार और भावनाएं दब जाती हैं और हम उन को आसानी से याद नहीं कर पाते हैं या उस स्म्रति को ट्रिगर नहीं कर पाते हैं क्योंकि उसके लिए सही शब्द नहीं मिलते या फिर यह आसान नहीं होता है।

‌‌‌कई बार आप के साथ भी ऐसा हुआ होगा कि हम कुछ ऐसे लोगों से मिलते हैं जिन के बारे मे हमे पता होता है कि हम उन को जानते हैं लेकिन उन के नाम और अन्य जानकारी हमे याद नहीं रहती है। लेकिन असल मे ऐसा नहीं होता है कि वह हमारे मन से निकल गई है। ‌‌‌जब वे ही अपना परिचय देते हैं तो सब कुछ हमे याद आ जाता है।

ऐसी सूचनाएं जो समय पर नहीं मिल पाती, वे अचेतन मन  में समाप्त नहीं होती और  अचेतन मन से अवचेतन मन में और फिर चेतन मन में कभी भी और कहीं भी क्लिक हो जाती है।

‌‌‌अतिचेतन (Super Conscious Mind)

‌‌‌अतिचेतनता के बारे मे कुछ ज्यादा नहीं समझाया जा सकता है।क्योंकि इस का अनुभव केवल कुछ योगी लोग ही कर सकते हैं। मन की अतिचेतन अवस्था के तक पहुंचने के लिए ध्यान ,योग और तप जैसी क्रियाओं का सहारा लेना पड़ता है।

‌‌‌एक योगी जो अपनी आत्मा को उंचा उठाना चाहता है और स्व की भावनाओं से परे जाना जाता है। वही यहां तक पहुंच जाता है। मन की इस परत तक पहुंच जाने के बाद व्यक्ति के अंदर आश्चर्यजन क्षमताएं विकसित हो जाती हैं। यह मानव अस्तित्व का सार है जो हमें भौतिक दुनिया की सीमाओं और तर्क के जाल से परे जाने में सक्षम बनाता है।

पूर्वजन्म की सूचनाएं, बौद्धिक क्षमता और जीव के अहम स्वरूप से परिचय अतिचेतन मन की परत खुलने पर मिलना शुरू हो जाता है।

‌‌‌सामूहिक चेतन मन (Collective Conscious Mind)

Collective Conscious Mind तक यदि हम पहुंच जाते हैं तो हम अपने पिछले जन्म के संस्कारों को आसानी से जान सकते हैं। माना जाता है कि यहां पर हमारे जन्म जन्मांतर के संस्कार छिपे होते हैं। यदि किसी को अपना पिछला जन्म जानना होता है तो उसे इस तक पहुंचना होता है।

‌‌‌कुछ योगी लोग इस मन तक पहुंचनें की क्षमता रखते हैं और वे इस बात का पता लगा लेते हैं कि वे पिछले जन्म के अंदर क्या थे ?

स्वाभाविक मन (Spontaneous Mind)

‌‌‌स्वाभाविक मन के बारे मे कोई ज्यादा जानकारी नहीं है। योग के अंदर इस को हृदय के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति तक एक योगी ही पहुंच सकता है। यहां तक पहुंचने से पहले एक योगी को काफी मेहनत करनी होती है। निष्काम कर्म और विवेक से ही ‌‌‌इस मन का निर्माण होता है।

परम मन (Ultimate Mind)

‌‌‌यह मन की गहन परत होती है।इस परत तक केवल कुछ ही लोग पहुंच पाते हैं।यदि कोई मन की इस परत तक पहुंच जाता है तो वह अनलिमिटेड ताकतों का स्वामी हो जाता है। वह सब कुछ करने मे सक्षम हो जाता है। एक ही क्षण के अंदर हजारों किलोमिटर तक देख सकता है। अपनी आवाज को पहुंचा सकता है।

‌‌‌इतना ही नहीं किसी भी इंसान का भूत और भविष्य भी वह देख सकता है।लेकिन इस मन की परत को छूना आसान नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए आप को एक योग्य गुरू की आवश्यकता होगी ।

‌‌‌यह अवस्था परमज्ञान की अवस्था होती है। इस मे पहुंचने के बाद अज्ञान नहीं होता फिर तर्क वितर्क नहीं होता कोई संशय नहीं होता है। बस सदा आनन्द ही आनन्द होता है। यह परमानन्द की आवस्था होती है।

‌‌‌आप ने भी सुना होगा कि योगी हजारों सालों तक ध्यान के अंदर मगन रहते हैं । उन को इस बात का एहसास ही नहीं होता है कि उन का शरीर कहां है और क्या कर रहा है। माना जाता है कि मन की यही परत आत्मा के लिए उपयोगी है। इस परत को छू लेने के बाद एक योगी को संसार के अंदर कभी वापस नहीं आना पड़ता है।

‌‌‌यह वह स्थिति होती है जहां पर सब बुराइयां नष्ट हो जाती हैं। कुछ भी नहीं होता है। हर चीज शांत होती है।बस आनन्द के सिवाय कुछ नहीं होता है। एक योगी को इस समय सभी भौतिक चीजों के अंदर कोई रूचि नहीं रह पाती है। ‌‌‌सच तो यह है कि वह जो आनन्द का अनुभव करता है। वैसा आनन्द किसी भौतिक चीज कें अंदर है ही नहीं ।

‌‌‌हिंदु धर्म के अंदर मोक्ष की अवधारणा के बारे मे उल्लेख मिलता है।माना जाता है कि जो योगी मन के उच्चतम स्तर को छू लेता है। वह परमचेतना के संपर्क मे हो जाता है।और उसके बाद वह हमेशा हमेशा के लिए ब्रह्मलीन हो जाता है।

यद्यपि मन के तैयार जानकारी अभी भी अधूरी ही है। किंतु ध्यान की इस प्रक्रिया में चेतना शब्द को भी हम आगे पढ़ेंगे। गीता समस्त, वेदों एवम उपनिषद का सार है, अतः कुछ अतिरिक्त की विशेष में cover करने का भी मन ही होता है, पढ़ने एवम जानने वालों के मन का पता नही। किन्तु कहा यही गया है जो मन मे यदि न्यायोचित, उचित एवम सात्विक है तो मनुष्य को अवश्य करना चाहिये क्योंकि परब्रह्म हृदय में बसता है और मन के माध्यम से कर्म को प्रेरित करता है।

।। हरि ॐ तत सत ।। गीता 6.12 मन की कार्यप्रणाली – भाग 3 ।।

Complied by: CA R K Ganeriwala ( +91 9422310075)

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